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बड़ी लड़की हूँ |

कुछ सतरंगी से दुनिया में बड़ी हुई हूँ | हर दिन एक सपने की तरह देखा है, हर गुजरते हुए इंसान में बस सच्चाई और अच्छाई  ही देखी है पर गज़ब की पैदायिश रही है और भी गज़ब रहा मेरा बढ़ना, चलना, गलियों में बहती हवाओं को चीरते हुए भागना ,एहसास हो जाना की बड़ी हो गयी हूँ | बड़ा होना थो ठीक था, पर ये अहसास होना की सिर्फ बड़ी नहीं एक बड़ी लड़की हो गयी हूँ , कैसे गुजरूं गलियों से? कैसे भागूं? पर ना! मैंने नहीं सोचा की मै बड़ी हुईं, लड़की हुईं ,युवती हुईं ,गली से गुजरी, हवाओ को चीरा, कुछ पढ़ा ,कुछ सुना ,कुछ कहा ,कुछ सुनाया| कुछ समय क लिए भूल गयी की बड़ी हुई हूँ, बड़ी लड़की हो गयी हूँ |

पर अब जब और बड़ी हो गयी हूँ तो बड़ी लड़की होने एहसास फिरसे हुआ, सड़क पर चलते समय, रेलगाड़ी में बैठते समय,  उठते समय, बस में बैठते समय, हर उस समय जब सोचना नहीं चाहा की बड़ी हूँ , बड़ी लड़की हूँ| घूरते हुए चेहरे , वो टिपण्णी देते हुए ,हस्ते हुए , छेड़ते हुए चेहरे वो गली से गुजरते वक़्त कुछ अजब सा चिल्ला के भाग जाने वाले अजीब से लोगो की आवाज़ों ने अहसास दिलाया है की सिर्फ बड़ी नहीं बड़ी लड़की हो गयी हूँ |
जब जोर से चिल्लाना चाहा, जब चाहा की इन हाथो को इस्तमाल करके, कुछ कर दिखाऊं , कुछ जवाब दूँ ,थोड़ा लड़ लूँ, थोड़ा सुना दूँ ,तब एहसास हुआ की बड़ी हूँ , बड़ी लड़की हूँ ,अकेली हूँ! तब दुबक के कोने में बैठ गयी ,सुन लिया ,माफ़ कर दिया यहीं सोच की बड़ी हूँ , बड़ी लड़की हूँ , इस प्रगतिशील ज़माने की आन हूँ , शान हूँ ,पर बड़ी लड़की हूँ |

सुन लेती हूँ ,भूल जाती हूँ ,
होता है, सब बड़ी लड़कियों के साथ होता है |

फिर याद आया की कुछ पढ़ा था, किताबो में, स्कूल में, कॉलेज में कहते थे हम उसे नारीवाद , सोच लेती हूँ कभी कभी की मै भी नारीवादी हूँ ! मेरा हक़ है बोलना ,लड़ना , हर गलत बात पर आवाज़ उठाना , पर सुनसान रास्तो में ,गलियों में ,रेलगाड़ी मे…

मै भूल जाती हूँ नारीवाद
सोचती हूँ की चुप रहती हूँ
आक्रोश निकालूंगी ,
बस आक्रोश से कह दूँगी नारी हूँ, नारीवाद पर विश्वास रखती हूँ ,नारीवादी हूँ |

पर ध्यान रखती हूँ की
बड़ी हूँ ,बड़ी लड़की हूँ!

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