Site icon Youth Ki Awaaz

भीड़ और आतंक  

 हर सवेरे की तरह इस सवेरे भी मैं ५ बज उठ गया , फिर वही  दिनचर्या , पहले मस्जिद में जाकर नमाज़ पढ़ना, फिर रास्ते में पुजारी जी के बेटे राघव के साथ साइकिल पर नदी के किनारे जाना , वहाँ बैठकर खेलना और बातें करना फिर घर आकर स्कूल के लिए रवाना हो जाना, बस इतनी सी ही ज़िन्दगी थी मेरी | मेरे पूरे शहर में केवल ४- ५ ही दोस्त थे , सब अलग धर्मो के थे जिस कारण मेरे घर वाले मुझसे मुरझाये रहते थे | मेरे दादी हमेशा मुझे डाँटती और कहती रहती थी “दूर रहो उन लड़कों से , तुम भोले लड़के हो ,वो तुम्हे भी अपनी तरह बना देंगे “| कभी ऐसा लगता था कि कहीं यह सब सही तो नहीं कह रहे ? पर मेरी आत्मा तो उन दोस्तों में ही अटकी रहती थी | एक ८- ९ वर्ष के बच्चे से और क्या उम्मीद हो सकती है , उसके लिए केवल उसकी ख़ुशी का महत्व है , बाक़ी दुनिया से उसका कोई लेना देना नहीं था |

 मेरे अब्बा एक फ़ौजी थे, उनका नाम अनवर अली था | उनसे मुलाक़ात केवल तीन-चार महीनों में एक बार ही होती थी | यही कारण था कि मेरे माँ-बाप की कभी आपस में बनती नहीं थी | उन दिनों राघव जो मेरा प्रिय मित्र हुआ करता था,  वो भी पढ़ाई में व्यस्त रहने लगा था | एक दिन जब मैं मैदान में कबड्डी खेल रहा था ,तो यह खबर मिली कि  मेरे अब्बा पर राष्ट्राद्रोह का आरोप लगा है और उन्ह फ़ौज से निकाल दिया गया है, यह सुनते ही मैं घर की ओर दौड़ा और जब पहुँचा तो देखा कि घर पर रोना मचा हुआ है , दादी और अम्मी सर पीट-पीटकर रो रही है ,पड़ोसिओं ने हमारे घर को घेर लिया है और पथराव कर रहे है कि अचानक मुझे पुजारी जी के चिल्लाने  की आवाज़ सुनाई दी, परन्तु यह आवाज़ उन्होंने उन पड़ोसिओं के विरुद्ध उठाई थी , जो हम पर पत्थर मार रहे थे और गालियाँ दे रहे थे | राष्ट्रद्रोह का आरोप भले ही अब्बा पर लगा था परंतु चुकाना हुम सबको पड़ रहा था  | यह सोचकर मेरी आत्मा रो रही थी कि अब्बा अब कभी घर नही लौटेंगे, अब खुशियों का मेरे घर से कोई लेना देना नही | फिर अचानक रास्ते में अब्बा की फ़ौज के एक अफ़सर मिले, जो बताने लगे कि अनवर अली नाम के एक दुसरे व्यक्ति पर राष्ट्रद्रोह का आरोप लगा है, और जब मैंने उनसे अब्बा का पूछा तो कहने लगे- ” अनवर तो परसों निकल गया था, अब तक तो घर पहुँच चुका होगा | तुम लोग मेरे गाँव में क्या कर रहे हो ? “, मैंने उनको पूरी कहानी बताई तो वो हैरान और परेशान हो गए, उन्होंने अपनी सरकारी गाड़ी में हमें हमारे घर तक छोड़ा |

 जब मैं वहाँ पहुँचा तो पूरे गाँव में ऐसा सन्नाटा था जैसे कि कोई अनहोनी हो गयी हो,लोग अपने घरों में छिपे बैठे थे , जैसे-जैसे मैं घर के क़रीब जा रहा था , मेरे दिल की धड़कन बढ़ती जा रही थी | घर का दरवाज़ा खोलते ही मेरे ऊपर पुजारी जी की लाश गिर पड़ी , मैं चीखा- चिल्लाया , ज़ोर-ज़ोर से रोने लगा की आगे बढ़ते ही मुझे अपने अब्बा का जला हुआ शरीर मिला जिसके बाद मैं कुछ घंटो तक रोता रहा , मैं राघव के घर पहुँचा तो राघव बिस्तर पर ज़िंदा लाश की तरह पड़ा हुआ था | उसने रोते हुए बताया कि उसके पिताजी ने लोगों को रोकने और समझाने की बहुत कोशिश करी परंतु भीड़ ने उनकी एक न सुनी , और तलवारे लेकर टूट पड़े , मेरे अब्बा को ज़िंदा जलाने लगे तो वो  बचाने के लिए आगे बढ़ा लेकिन लोगों ने उसके पैर काट दिए | यह सुनकर मैं रोता रहा | मेरे अब्बा और पुजारी जी भीड़ के आतंक का शिकार हो गए , कहने को वो फौजी थे लेकिन कुछ देशवासियों ने ही उन्हें धोखा दिया, किसी और के कर्मोँ की सज़ा दो बेगुनाहों को भुगतनी पड़ी| लेकिन अब यह आंसू न पुजारी जी को वापस ला सकते हैं,  न मेरे अब्बा को | भीड़ का आतंक आज भी मुझे डराता है, इस आतंक में लोग एक दूसरे को बिना जाने-पहचाने मारने को दौड़ते हैं, वह भीड़ ही होती है, जिसके कारण सारे विवाद होते हैं, ऐसी भीड़ से बचें और सावधान रहे |

जय हिन्द

Exit mobile version