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राजनीति में चमचे और हीरो

तुम तब तक चमचे ही रहोगे जब तक खुदपर यकीन करना नहीं सीख जाते,और तुम्हारे आका ये बात बखूबी जानते हैं ! इसीलिए वो तुम्हे आगे रखकर तुम्हारी भावनाओं से खेलते हैं,ताकि तुम्हे खुदके महात्वपूर्ण होने का भ्रम हो जाये और तुम दुगनी वफादारी से उनके लिए मेहनत करो I

राजनीति क्या है !

राजनेताओं की कभी आपस में बोलचाल बंद देखी है आपने?

कभी एक दूसरे के खुशी और गम में शामिल होने से इनकार करते देखा है?

क्या कभी आपने देखा है एक नेता ने दूसरे नेता को इस हद तक बर्बाद किया हो कि वो दोबारा ना खड़ा हो सके?

क्या कभी आपने सोचा है सत्ता से बाहर रहने पर जिन मुद्दों पर नेता चिल्लाते हैं सत्ता में आने पर वो मुद्दे क्यों नहीं हल कर दिये जाते?

क्या आपने ये देखा कि नोट बंदी में भी सिर्फ सत्ता पक्ष ही नहीं विपक्ष के ज्यादातर नेता और रसूखदार लोगों के खर्च में तंगी आई हो?

आपको क्या लगता है जो 80%-70% में नोट बदले गये उसकी खबर आप जैसे साधारण इंसान को थी पुलिस प्रशासन और नेताओं को नहीं?

कुल मिलाकर राजनीति का मतलब ही बस यही है,भेड़ चाल की आदी हो चुकी जनता को सोचने समझने का मौका दिये बिना भाषणों और खबरों के माध्यम से एक दूसरे में ही उलझा कर रखा जाये ! आप सोच कर देखिये अगर ऐसा ना हो और सारे नेता मेहनत करके आज के मौजूदा मुद्दों को हल कर दें तब क्या इस देश की राजनीति और मुश्किल नहीं हो जायेगी?? I

आज का राजनेता और व्यपारी एक बराबर चालाक है,उसे पता है इंसानी फितरत क्या है उसने इसका अध्यन नहीं किया पर उसने इस अध्यन को करने वालों को नौकरी पर लगा रख्खा है! वो बखूबी ये जानता है कब कहाँ और कैसे कौनसी खबर(सूचना)दिखानी है I

उसके पास इस पूरी थ्योरी है के जानकारों के समूह हैं कि इंसान कब कहाँ कौनसा रंग कौनसी भंगिमा कौनसा शब्द सुनकर कैसे रिऐक्ट करेंगे ! उसके इन माहिर जानकारों को मालूम है इंसानी दिमाग गणना के आधार पर ही फैंसले लेता है तो कब कहाँ और कैसे इसी दिमाग से अपनी मनचाही हरकत करवानी है I

जैसे एक बेहतर लेखक की मिसाल मैं आपको पहले ही बता चुका हूँ एक बेहतर लेखक वही है जो आपको वही देखने सोचने पर मजबूर कर दे जो वो चाहता है I

मैं बहोत दावे से कह सकता है बहोत से लेखक की कहानियाँ इस काबिल भी नहीं होंतीं कि उनपर समोसा भी खाया जाये पर वो कामयाब हो जाती हैं,इसके पीछे सीधा मनोविज्ञान है अगर लेखक ने आपको मनमष्तिष्क पर काबू कर रखा है तो आप उसे चार बार पढ़ेंगे और कोई ना कोई पॉजिटिव पोईन्ट ढूंढने की जी तोड़ कोशिश करेंगे और फिर ढूंढ भी निकालेंगे अक्सर जो लिखने वाले को भी मालूम नहीं होता I

ठीक यही राजनेताओं के साथ होता है ! किसी को हीरो बनाना इसीलिए घातक भी हो जाता है,क्योंकी तब आप कभी कभी चाहकर भी अपने हीरो का विरोध नहीं कर सकते I

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