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राहुल की ताजपोशी? क्या लोकतंत्र है?

राहुल की ताजपोशी? क्या लोकतंत्र है?

क्या ये ख़बर पहले पृष्ठ का मुख्य समाचार बनने लायक है? हम सभी जानते है की कांग्रेस नाम की कंपनी में पहला पद हमेशा नेहरू परिवार के लिए आरक्षित है। जो अपने पीछे गाँधी उपनाम लगा कर घुमते है। कांग्रेस के आधिकारिक रिकॉर्ड के अनुसार राहुल का राजनितिक जीवन 13 साल पुराना है जिसमे उसने 31 चुनावों ने कांग्रेस का नेतृत्व किया है और 23 चुनावो ने कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा। इस प्रदर्शन के बाद तो कोई दूसरी कोई पार्टी राहुल को एक कार्यकर्ता का पद ही देती पर कांग्रेस सिर्फ गाँधी उपनाम के कारण पार्टी का अध्यक्ष पद दे रही है। क्या मणिशंकर अय्यर, अहमद पटेल जैसे नेता जो क्रमशः 28 साल और 40 साल से कांग्रेस की सेवा कर रहे है वो इस पद के लायक नहीं है? 13 साल का अनुभव 40 साल पर भारी है? 23 चुनावी हार 1977 की जीत (इंदिरा विरोधी लहर के बावजूद) पर भारी है? क्या अनिल शास्त्री जो राहुल की तरह पूर्व प्रधानमंत्री के पुत्र है और 28 साल के अनुभवी है, वो योग्य नहीं है कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए? यही है असली वंशवाद। परिवारवाद। राहुल की मंदबुद्धि और बेवकूफ वाली छवि को तो कांग्रेस बीजेपी और संघ का सुनियोजित प्रचार बता कर ख़ारिज कर देती है, पर 23 चुनावी हारो का किस तरह से बचाव करेगी? कांग्रेस पहले अपनी पार्टी के अन्दर लोकतंत्र की स्थापना करे, फिर देश के लोकतंत्र की चिंता करे।

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