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राहुल की ताजपोशी से हो पाएगी कांग्रेस की नैया पार?

2014 के लोकसभा चुनाव में मिली करारी हार के बाद से ही कांग्रेस में राहुल गांधी को अध्यक्ष बनाने की मांग चल रही थी लेकिन किसी न किसी व्यवधान की वजह से यह प्रक्रिया खटाई में पड़ जाती थी। लेकिन अब ऐसा लग रहा है कि गुजरात चुनाव से पहले ही राहुल गांधी की ताजपोशी कर दी जाएगी। दरअसल, कांग्रेस की केंद्रीय कार्यसमिति ने अध्यक्ष पद के लिए चुनावी प्रक्रिया का ऐलान कर दिया है और इसके लिए कार्यक्रम भी जारी कर दिया है। 4 दिसंबर को नामांकन प्रक्रिया शुरु होगी तो 11 दिसंबर नाम वापसी की आखिरी तारीख तय की गई है। यदि कोई प्रत्याशी राहुल के खिलाफ खड़ा होता है (जो काफी मुश्किल है) तो 16 दिसंबर को वोट डाले जाएंगे और 19 दिसंबर को इसके नतीजे आएंगे। लेकिन अगर किसी अन्य प्रत्याशी ने राहुल के खिलाफ पर्चा नहीं भरा तो गुजरात चुनाव से पहले ही राहुल की ताजपोशी की पूरी संभावना है।

तकरीबन बीते 2 दशक से काँग्रेस की कमान सोनिया गांधी के हाथों में तो है लेकिन 2014 के चुनाव के पहले से ही काँग्रेस किसी भी चुनाव में राहुल गांधी के ही नेतृत्व में उतर रही है।

राहुल गांधी वैसे तो काँग्रेस के उपाध्यक्ष पद पर आसीन हैं लेकिन चुनावी रणनीति और प्रचार में उनका ही नेतृत्व झलकता है। पार्टी कार्यकर्ताओं के बीच भी राहुल गांधी को अध्यक्ष बनाने की मांग उठती रही है, हालांकि ये अलग बात है कि राहुल के नेतृत्व में लड़े गए ज़्यादातर चुनावों में काँग्रेस को मुंह की खानी पड़ी है। ऐसे में काँग्रेस इस बात की उम्मीद कर रही है कि पार्टी की कमान पूरी तरह से राहुल के हाथ में देने पर शायद पार्टी को भविष्य में ज़्यादा फायदा हो।

बीजेपी और उसके शीर्षस्थ नेता भले ही काँग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी का मज़ाक उड़ाते हों लेकिन बीते कुछ समय के दौरान राहुल ने अपनी छवि एक गंभीर और मेहनती राजनेता के तौर पर स्थापित की है। मोदी सरकार के नोटबंदी और जीएसटी जैसे फैसले लेने के बाद राहुल ने जिस आक्रामक शैली में सरकार पर हमला बोला है और अपनी बात रखी है उसके बाद से लोगों के बीच उनकी स्वीकार्यता बढ़ी है और लोग उन्हें एक गंभीर नेता की तरह देखने लगे हैं।

एक तरफ जहां सोनिया गांधी अपने फैसले और निर्णयों के लिए ज़्यादातर अपने सलाहकारों पर निर्भर दिखती हैं उसकी तुलना में राहुल गांधी तेज़ी से फैसले भी लेते हैं और उन पर त्वरित क्रियान्वयन भी करते हैं। वर्तमान समय में राहुल ने युवाओं के बीच अपनी पैठ को काफी मज़बूत किया है और काँग्रेस इस बात का पूरा फायदा उठाने के मूड में दिख रही है। शायद यही वजह रही कि काँग्रेस ने अब राहुल की ताजपोशी का पूरा मन बना लिया है।

कुछ जानकारों की मानें तो राहुल की ताजपोशी सिर्फ और सिर्फ काँग्रेस का एक रणनीतिक दांव भर है।

बीते 22 सालों से गुजरात में सत्ता से दूर कांग्रेस की स्वीकार्यता गुजरात में बढ़ी है और पार्टी इस मौके को भुनाने के चक्कर में है। यदि गुजरात और साथ ही साथ हिमाचल के चुनावों में काँग्रेस का प्रदर्शन अच्छा रहता है तो इसका सारा श्रेय राहुल गांधी के सिर जाएगा और यदि नतीजे आशानुरूप नहीं भी रहे तो इसे बदलाव के तौर पर देखा जाएगा। यानी राहुल की ताजपोशी को चित भी मेरी और पट भी मेरी की तर्ज पर इस्तेमाल किया जाएगा।

वैसे राहुल गांधी की राह अध्यक्ष बनने के बाद इतनी आसान रहने वाली नहीं है। अध्यक्ष बनने के बाद राहुल के कंधों पर पार्टी के प्रदर्शन में सुधार लाने की ज़िम्मेदारी होगी। 2014 के लोकसभा चुनाव के बाद से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह देश को लगातार ये समझाने की कोशिश कर रहे हैं कि वो कांग्रेस मुक्त भारत की ओर बढ़ रहे हैं। बीते 3 सालों में ज़्यादातर जगहों में हुए चुनावों में कांग्रेस को करारी हार का सामना करना पड़ा है। यहां तक कि कुछ जगहों पर देश की सबसे पुरानी पार्टी एक पिछलग्गू की तरह नज़र आने लगी। इसलिए अध्यक्ष बनने के बाद राहुल के कंधों पर जो सबसे बड़ी जिम्मेदारी होगी वो पार्टी में हर स्तर पर सुधार की ही होगी।

राहुल ने अपनी टीम में ज्योतिरादित्य सिंधिया और सचिन पायलट जैसे अपेक्षाकृत चेहरों को तवज्जों देकर यह साफ कर दिया है कि वो युवाओं को साथ लेकर चलने वाले हैं। अध्यक्ष बनने के बाद राहुल को पार्टी में राष्ट्रीय स्तर पर सुधार के अलावा राज्य स्तर पर भी सुधार करने होंगे जिससे आगामी चुनावों में पार्टी किसी चेहरे के साथ मैदान में उतर सके। राहुल की ताजपोशी को कांग्रेस में एक नए युग की शुरुआत के रूप में देखा जा रहा है जो देश की सबसे पुरानी पार्टी को उसका पुराना स्थान फिर से वापस दिलाएगा क्योंकि 5 से भी ज़्यादा दशकों तक देश पर राज करने वाली कांग्रेस पार्टी आज महज़ गिनती के राज्यों तक ही सिमट कर रह गई है। वहीं बीजेपी वर्तमान में देश की 50 प्रतिशत से भी ज़्यादा आबादी पर राज कर रही है।

राहुल का अध्यक्ष बनना भले ही तय हो लेकिन काँग्रेस पार्टी इसे परिवारवाद का मुद्दा नहीं बनने देना चाहती। इसलिए पार्टी में विधिवत चुनाव प्रक्रिया का पालन किया जाएगा जिससे राहुल गांधी को लोकतांत्रिक तरीके से पार्टी की कमान सौंपी जा सके। इससे पहले काँग्रेस की कार्यसमिति ने राहुल को सर्वसहमति से अध्यक्ष बनाने का प्रस्ताव दिया था लेकिन राहुल ने कहा कि वो लोकतांत्रिक तरीके से ही पार्टी की कमान संभालना पसंद करेंगे। फिलहाल जो भी हो लेकिन इन सबके बीच एक बड़ा सवाल है और वो ये कि क्या राहुल के अध्यक्ष बनने के बाद कांग्रेस की नैया पार लगेगी?

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