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वो एक दिन

में भी एक आम भारतीय नागरिक हु जो वाकियो की ही तरह अपने परिवार के लिए और उनकी खुशी और तमाम आराम के लिए सुबह से श्याम और धीरे धीरे अपनी पूरी जिंदगी सिर्फ पैसे कमाने में बिता देता है।

में उस दिन भी रोज़ की ही तरह काम से घर लौटा और क्योंकि आज मेरी पत्नी घर से बहार गयी हुए थी तो हमारी 6 साल की बेटी को मुझे ही सम्भालना था। “दिनभर काम करके आओ और फिर बच्चे को संभालना पड़े, हद होती है, यह निधि का जाना इतना क्या जरूरी था।” कुछ देर गुस्सा  तो रहा पर कब उस नन्ही सी परी की मुस्कन ने और उसकी बचकानी शरारतों ने मेरे पुरे दिन की थकान मिटा दी पता ही नही चला। में पिछले 8 साल से job कर रहा हु और शायद पिछले 4 या 5 सालो से मेरी जिंदगी का ज्यादातर वक़्त office के काम और उसकी tension में ही बीता है, पिछले कुछ वक्त से मेरे रिश्तेदार भी मुझे कहते है, “तू तो बड़ा मस्तीखोर था तुझे पता नही क्या हो गया है इतनी गंभीरता कहा से आ गयी।” शायद वो मजाक में कहते हो पर मेरा दिल कहीं न कहीं इस को मानता है।

मेरी बेटी का नाम मेने बताया नही तो बता दू की उसका नाम अकांक्षा है और वो इसलिए की मेरी तब एक ख्वाहिश थी की मेरे पहले बेटी हो, और क्योंकि मेरी अकांक्षा पूरी हुई तो यही नाम सही लगा।अब छोटी है तो आकांक्षाएं तो अभी कम है पर जिद जरूर करती है और जिद भी एक ऐसी अजीब चीज़ है कोई बड़ा करे तो बेवक़ूफ़ लगता है और अगर बच्चा करे तो बेहद प्यारा लगता है और अकांक्षा तो वेसे भी बोहत प्यारी है ।अब अकांक्षा की जिद है कि चंदा मामा दूर क्यू जा रहे है उन्हें रोको।उसकी मासूमियत से भरी आंखें देख मेने फ़ौरन अपनी गाड़ी की चाबी ली और अगले 10 मिनट में हम सड़को पर बस युही उस चाँद का पीछा कर रहे थे जो कभी नही रुकेगा। वो हर उस पल car की खिड़की से चाँद को देख कर खुश हो जाती जब वो ठीक उसके ऊपर होता। इतना सुकून मुझे काफी वक्त से नही मिला था जो अब मिल रहा था। वो एक दिन ऐसा था जिसने मुझे यह सीख दिया की  चाहे कितने भी कमा लो पर जिंदगी में सुकून होना भी जरूरी है । में अपना बचपना जो शायद भूल चुका था मेरी बेटी ने मुझे वो वापस ला दिया। में उसके साथ ज्यादा वक्त बिता नही पाता पर आज जितना भी वक़्त मेने उसके साथ बिताया उसके बाद मुझे ख़ुशी तो बोहत है पर एक अफ़सोस भी है कि मैने कितना कुछ छोड़ दिया जो में शायद सिर्फ 1-2 घंटे उसके साथ खेल कर पा लेता। एक नई शुरुआत समझ कर मेने यह समझ लिया की एक जिंदगी वो है जो ऐश-ओ-आराम देती है और एक यह जो दिल को सुकून देती  है और यह भी की दोनों में तालमेल होगा तो ही सबसे बेहतर होगा।

 

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