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सितारे गर्दिश मै

जय हिन्द उम्मीद है पढकर जरूर शेयर करोगे उत्तर प्रदेश के किसी जिले में दंगल का आयोजन हो और दंगल करने से चूक जाये ऐसा तभी संभव है जब खबर मिलने के बाद आर्थिक तंगी उनकी मजबूरी बन जाए और उनके पास किराया आदि न हो फिरोजाबाद के गाँव अधमपुर के रहने वाले विक्रम पहलवान की गिनती अब प्रदेश के उभरते जाबाज़ पहलवानों में हो रही है दंगल पहुंचकर बाजी मारने से उसे अब कोई रोक नहीं पाता है लेकिन दुर्भाग्य यह की आज पूरा परिवार जब इस पहलवान के लिए संसाधन जुटा रहा है और आर्थिक तंगी सर चढ़कर बोल रही है तो वाह टूट रहा है पहलवानी से तिलांजलि देने की ठान लेता है और फिर अपने पिता की और निहारता है तो पुनः कसरत में जुट जाता है!विक्रम की विभिन्न जिलों में आयोजित दंगलों में होती जीत से पूरे प्रदेश में उसके चहेतों की संख्या दिनोदिनबढ़ती ही जा रही हैं और अब तो विक्रम की प्रतिभा को देख कई शुभचिंतक भी आगे आ रहें हैं जो विक्रम जैसे उभरते पहलवान के लिए प्रदेश की अखिलेश सरकार का ध्यानाकर्षण भी करने के लिए प्रयास शुरू कर चुके हैं क्यों की इसमें कोई दो राय नहीं विक्रम जैसा प्रतिभावान पहलवान का खेल अगर सरकार और समाज की उपेक्षा का शिकार हो दम तोड़ देगा तो प्रतिभाएं उभरेंगी कैसे आगे आयेंगी कैसे? खेल और खिलाड़ियों का हाल क्या होता हैं इस बात को विक्रम पहलवान से बेहतर कौन जानता होगा….? बचपन से ही पहलवानी का अभ्यास करते हुए विक्रम पहलवान अब अपने जिले के उगतेसूरज की संज्ञा से नवाजे जाने लगे हैं। फीरोजाबाद जिले के लोगों में अब विक्रम पहलवान एक जाना माना नाम है और आस पास के छोटे बड़े दंगलों में उसकी जोड़ का पहलवान यदा कदा ही देखने को मिलते हैं। हाँ प्रदेश के अन्य जनपदों वदूसरे प्रदेश से आये पहलवान ही विक्रम से टक्कर ले पाते हैं लेकिन अब विक्रम कुश्ती हारता नहीं और ऐसा भी नहीं होता हैं कि दर्शको का मनोरंजन भरपूर न हो दर्शक उसकी कुश्ती बेहद पसंद करते हैं।जिले व पड़ोसी जिलों के छोटे बड़े दंगलों में अब विक्रम पहलवान की कुश्ती कराये जाने की आवाज़ दर्शक भी जोरों से उठाने लगे हैं लेकिन इनाम की मात्रा नगण्य होने व खुराकी और कोच आदि पर अधिक व्यय होने के चलते विक्रम इतना टूट चुका है कि कई बार तो वह पहलवानी ही छोड़ देने का मन बना लेता है विक्रम बताते हैं की उसके परिवार ने खासकर पिता ने उसे पहलवानी के लिए हर स्तर पर मदद की, उसेअच्छा पहलवान बनाने के लिए ज़मीन भी बेच दी लेकिन अब जब पहलवानी को बरकरार रखने के खर्च व खुराकी की व्यवस्था में आर्थिक दिक्कतें आ रही तो वह टूट रहा है अब वह अपने पिता के सपनो को बरक़रार रखने के लिए दंगल भी ज्यादा से ज्यादा करता है लेकिन दंगल आयोजनों की कमी व इनाम राशि बहुत ज्यादा न होने से उसे लगातार आर्थिक संकटों का जूझना पड़ रहा है! शासन प्रशासन से पहलवानों के लिए किसीभी तरह का कोई सहयोग न होने के चलते भी वो काफी निराश है!विक्रमकी इस पीड़ा को जन जागरण मीडिया मंच लखनऊ के राष्ट्रीय महासचिव रिजवान चंचल ने प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को पत्र लिखकर अवगत करने का प्रयास किया था तथा अपील की है की मुख्यमंत्री कोष से आर्थिक सहायता प्रदान की जाये! श्री चंचल ने मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को लिखे पत्र में कहा था की एक ओर जहाँ बदलते परिवेश में कुश्ती का कल्चर धीरे धीरे ख़त्म सा होता जा रहा है वहीँ दंगलों के आयोजन भी न के बराबर हो रहें हैं ऐसे में जो युवा पहलवान इस क्षेत्रमें आगे आये हैं उन्हें आर्थिक तंगी के चलते खुराकी तक जुटा पाना मुश्किल हो रहा है यदि पहलवानों के लिए भी सरकार अन्य खेलों की तरह कोई ऐसी योजना तैयार करती है जिससे इन प्रतिभावान पहलवानों का इस खेल से जुडाव बना रहे तो संभव है की आने वाले दौर में ये पहलवान प्रदेश व देश का नाम रोशन कर सकें! श्री चंचल ने यह भी लिखा है की विक्रम अपना सब कुछ झोंक कर एक अच्छा पहलवान बन गया हैं इस बात को जनपद फिरोजाबाद की जनता से भी जाना जा सकता हैमेडल लाने के बाद तो खिलाड़ियों पर सरकारें पैसा बरसाती ही हैं लेकिन उससे पहले की हकीकत को सरकारें क्यों नहीं समझने का प्रयास करती क्यों नहीं सरकार के संज्ञान में आते विक्रम जैसे प्रतिभावान पहलवान ?बताते चलें की विक्रम पहलवान कई बार सैफई के खेल केंद्र (SAI–Centre) में ट्रायल दे कर पहले स्थान पर रहा हैं,लेकिन जब साई सेंटर के लिए खिलाड़ियों की लिस्ट लगती हैं तो विक्रम का नाम नहीं होता । विक्रम के पिता का आलम अब यह है की पांच बहनो के भाई विक्रम को पहलवान बनाने की लालसा अब उन्हें कष्टप्रद महसूस होने लगी हैं वे बताते हैं की खेती में पानी देने वाली बोरिंग मशीन, बोर में ही गिर कर नष्ट हो गई हैं किन्तु फसल के लिए पानी का इंतजामनहीं जुटा पा रहे हैं लड़कियों की जिम्मेदारी अलग मन को विव्हल करती रहती है विक्रम को बाहर पहलवानी के लिए बाहर भेजने का इंतजाम सारा जुटाना पड़ता है क्यों की बाहर तो सब कुछ चाहिए पहलवान का खाना, रहना सहना, और कोच फीस इत्यादि जो उनकी उलझनो को दिनोदिन बढाये जा रही हैं।साई सेंटर से भी फरमान हैं की बाहर का कोई पहलवान अंदर नहीं रह सकता ऐसे में यही रास्ता बचता है की विक्रम बाहरकमरा लेकर रहे। वहीँ खाये, पिए और साई सेंटर में अभ्यास कर के सीधा नेशनल के लिए ट्रायल दे विक्रम के पिता कहते है कि अब तक लाखों रूपये विक्रम को पहलवान बनाने में खर्च हो चुके हैं लेकिन अब उसकी व्यवस्था जुटाने में काफी दिक्कत हो रही है अब जब वह आसपास के जिलों चर्चित हो चुका है तो मैं पिता होने के नाते पूरी कोशिस कर रहा हूँ की वह टूटे ना बेटे की मन की पीड़ा को एक पिता ही समझ सकता है लगातार सरकार और खेलसंघों की अवहेलना झेल रहे विक्रम को घर से अगर सपोर्ट न मिल पायेगा तो उसका ह्रदय टूट जाएगा उसकी उम्मीदें दम तोड़ देंगी वो कहतें हैं की विक्रम के खेल से प्रभावित उसके समर्थक यदि प्रयास करेंतो शायद सरकार से कोई मदद मिल सके और वो आगे बढ़ सके बस इसी उम्मीद के साथ उसके लिए हर संम्भव जो हो सकता है वो करने में दिन रात जुटा रहता हूँ!

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