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हर साल 2 पत्रकारों की हत्या क्यों?

देश दुनिया में क्या हो रहा है। आपके आस-पड़ोस में क्या हो रहा है। इसकी जानकारी आपको अखबार, रेडियो और टीवी चैनलों के माध्यम से ही मिलती है। इस बात से हर कोई देश-दुनिया की जानकारी रखने वाला व्यक्ति रखता है। लेकिन आज देश में पत्रकारों के साथ क्या हो रहा है। इसके बारे में षायद ही कोई जानता हो। इसका कारण भी साफ है क्योंकि पत्रकारों के साथ हो रहे सलूक के बारे में आपको न तो समाचार पत्र यानी अखबारों में पढ़ने को मिलेगा, न टीवी पर देखने को मिलेगा। न ही तो रेडियो चैनलों पर सुनने को मिलेगा। हां अगर किसी बड़े पत्रकार की हत्या हो जाती है तो मात्र निंदा शब्द को सुनने, पढ़ने के अलावा कुछ नहीं मिलेगा। आखिर ऐसा क्योंकि लोकतंत्र को चौथा स्तम्भ कहे जाने वाले वर्ग के साथ ऐसा क्यों हो रहा है यह बात समझ से परे है?

लोगों की मानसिकता ऐसी हो चुकी है कि उनमें संवेदनशीलता नाम की कोई चीज ही नहीं है। आखिर होगी भी क्यों नहीं इसका भी साफ कारण है क्योंकि कुछ तथाकथित लोग जो अपने आप को पत्रकार कहते हैं वह सरकारों की कठपुतली मात्र बन कर रह गए हैं। जो सरकार ने अच्छे काम किए उनको ही अपने समाचारों में स्थान देना जो प्रमुखता रह गई है। सरकार के गलत यानी जो जनविरोधी कार्य होंगे उनको नजरअंदाज किया जाएगा। उनको समाचार पत्रों में कम से कम स्थान दिया जाएगा। इसका कारण यह भी है कि विभिन्न सरकारों से इन पत्रकारों के समाचार पत्रों या चैनलों को सरकार की ओर से करोड़ों के विज्ञापन जो मिलते हैं। अगर सरकार के खिलाफ कुछ लिख दिया तो विज्ञापन बंद हो जाएंगे और पत्रकारों की आय बंद हो जाएगी। कई बार समाचार पत्र और चैनल सरकार की गलत नीतियों या यूं कहिए जनविरोधी निर्णयों को प्रमुखता के साथ स्थान देते हैं और इससे कई बार सरकार को अपने निर्णय वापिस लेने पड़ते हैं।

पत्रकारों की कई बार हत्या कर दी जाती है। पता क्यों? क्योंकि वह सरकार की जनविरोधी नीतियों के खिलाफ सख्ते लहजे में लिखते हैं। और सरकार को या सरकार के नेताओं को यह सब पसंद नहीं आता है क्योंकि वह नहीं चाहते हैं कि सरकार के खिलाफ कोई आवाज उठाए। सरकार के खिलाफ चाहे वह केंद्र सरकार या फिर किसी प्रदेश की सरकार कई बार पत्रकारों के सवालों से इस कदर घिर जाती हैं कि उनको सत्ता गवाने का डर सताने लगता है। क्योंकि एक पत्रकार ने सरकार को इस कदर सवालों के जाल में घेरा होता है कि सरकार किसी भी तरीके से बाहर निकलने में सक्षम होती है। अंततः एक रास्ता बचता है कि आवाज उठाने वाली की आवाज ही बंद कर दो। चाहे उसके लिए किसी निहत्थे की जान ही क्यों नहीं लेनी पड़ जाए। इससे भी सरकार में शामिल लोग पीछे नहीं रहते हैं और कर देते है ऐसे पत्रकारों की हत्या जो उनके लिए खतरा बना हो। अरे हां इसमें एक और बात सरकार ही नहीं किसी रईस व्यक्ति के काले चिट्ठे खोलने वाले पत्रकारों की भी हत्या कर दी जाती है। आखिर ऐसा क्यों हो रहा है कि किसी भी गलत काम को जनता के सामने लाने वाले व्यक्ति यानी पत्रकार के साथ ऐसा किया जा रहा है।

अभी तक 13 पत्रकार जिनकी तूती बोलती थी या यूं कहा जाए कि किसी भी व्यक्ति के काले कारनामों को जनता के बीच में लाते थे उनको मौत के घाट उतार दिया जाता है। लेकिन इन सबकी मौत होने के बाद भी सरकार पत्रकारों की सुरक्षा को लेकर कोई कानून नहीं बना पाई है। पत्रकारों की सुरक्षा का जिम्मा सरकार पर ही नहीं उन संस्थानों का भी है जिनके साथ वह पत्रकार जुड़े होते हैं।

इन 13 पत्रकारों की हुई है हत्या

रामचन्द्र छत्रपति, 2002
छत्रपति हरियाणा के सिरसा में अपना समाचार पत्र चलाते थे। साल 2002 में जब डेरा सच्चा सौदा प्रमुख पर साध्वियों के यौन उत्पीड़न को आरोप लगा था। उसमें एक गुमनाम साध्वी ने तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को एक चिट्ठी लिखकर इसकी षिकायत की थी। उसी चिट्ठी को छत्रपति ने हू-ब-हू अपने समाचार पत्र में प्रकाशित कर डेरा सच्चा सौदा के प्रमुख का पर्दाफाश किया था जो उनको नागवार गुजरा। कुछ दिनों बाद यानी 21 नवम्बर को उनको गोलियों से भूनकर मौत के घाट उतार दिया जाता है। अभी तक इस केस की सीबीआई जांच चल रही है।

ज्योतिर्मय डे, 2011
ज्योतिर्मय डे मिड डे समाचार पत्र के क्राइम रिपोर्टर थे। और इनके पास अंडरवर्ल्ड से जुड़ी कई जानकारियां थी। 11 जून 2011 को हत्या कर दी गई।

राजेश मिश्रा 2012
रीवा के एक स्कूल की धांधली का पर्दाफाश करने पर कुछ लोगों ने 1 मार्च 2012 इनकी हत्या कर दी। वह मीडिया राज के रिपोर्टर थे।

नरेंद्र दाभोलकर 2013
महारास्टृ्र के रहने वाले लेखक और पत्रकार नरेंद्र दाभोलकर की 20 अगस्त 2013 को एक मंदिर के सामने बदमाषों ने गोलियों को भूनकर हत्या कर दी।

राजेश वर्मा 2013
साल 2013 में मुजफ्फरनगर  दंगों के दौरान नेटवर्क 18 के पत्रकार राजेश वर्मा की गोली लगने से मौत हो गई।

तरूण कुमार 2014
ओडिसा के स्थानीय टीवी चैनल के स्ट्रिंगर तरूण कुमार की 27 मई 2014 को बेरहमी के साथ हत्या कर दी।

एमवीएन शंकर 2014
आंध्रप्रदेश के सीनियर पत्रकार एमवीएन शंकर की 26 नवम्बर 2014 को हत्या कर दी गई। कारण था कि वह आंध्रप्रदेश में तेल माफिया के खिलाफ लगातार खबरें लिख रहे थे।

जगेन्द्र सिंह 2015
उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर में पत्रकार जगेन्द्र सिंह को 2015 जिंदा जला कर मौत के घाट उतार दिया। कारण यही था कि उन्होंने उत्तर प्रदेश के पिछड़ा वर्ग कल्याण मंत्री के खिलाफ फेसबुक के माध्यम से खबरे लिखीं थीं।

संदीप कोठारी 2015
जून 2015 में मध्य प्रदेश के बालाघाट जिला से संदीप कोठारी को अपहरण कर लिया गया। और उसके बाद महाराट के वर्धा क्षेत्र में उनका डैडबॉडी बरामद हुई।

अक्षय सिंह 2015
मध्य प्रदेश के व्यापम घोटाले की कवरेज करने गए पत्रकार अक्षय सिंह की संदिग्ध परिस्थितियों में झाबुआ के पास मौत हो गई, लेकिन मौत के कारण का अभी तक कोई पता नहीं चल पाया है।

राजदेव रंजन 2016
सीवान में दैनिक हिंदुस्तान के पत्रकार राजेदव रंजन की 16 मई 2016 को गोली मार कर हत्या कर दी गई। सीबीआई अभी तक मामले की जांच में जुटी है कि आखिर रंजन की हत्या क्यों की गई।

साई रेड्डी
दैनिक समाचार पत्र देशबंधु के पत्रकार साई रेड्डी की छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित बीजापुर जिला में संदिग्ध हथियारबंद लोगों ने हत्या कर दी थी।

गौरी लंकेश 5 सितम्बर 2017
बेंगलूरू की इस सीनियर पत्रकार लेखक और सरकारों की आलोचक तथा सबसे बड़ा धब्बा इन पर हिंदुत्व विरोधी होने का है। गौरी लंकेश अपने सप्ताहिक समाचार पत्र लंकेश का संचालन करती थी और उसकी संपादक भी थी। मंगलवार 5 सितम्बर 2017 को 3 हथियारबंद अज्ञात लोगों ने इनको इनके घर में ही मौत के घाट उतार दिया।

तो पत्रकार को सच्चाई से पीछे हटना होगा?
इन सभी पत्रकारों की हत्या और संदिग्ध परिस्थितियों में मौत सिर्फ और सिर्फ इसलिए हुई क्योंकि इन्होंने सच्चाई को जनता के सामने लाने का काम किया था। लेकिन अब तो ऐसा प्रतीत हो रहा है कि जो सच कहेगा वो मौत के आगोश में खो जाएगा। जो सरकार के खिलाफ या किसी व्यक्ति विशेष के काले कारनामों को उजागर करने की हिम्मत करेंगा उसको भी मौत मिलेगी। कहीं सारेआम गोलियों से भून दिया जाएगा तो कहीं संदिग्ध परिस्थितियों में मारा जाएगा। अब तो ऐसा लग रहा है कि चौथे स्तम्भ को भी जन विरोधी नीतियों में सरकार के साथ हो जाना चाहिए। काले कारनामे करने वाले को सपोर्ट करने में भी पीछे नहीं रहना चाहिए। अगर ऐसा हुआ तो देश का भविष्य क्या होगा इसका सहजता से अंदाजा लगाया जा सकता है।

कौन आना चहेगा पत्रकारिता के क्षेत्र में
भारतीय संविधान में पत्रकारिता को यानी प्रैस को लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ का दर्जा दिया गया है। लेकिन चौथे स्तम्भ की मजबूत इंटें एक-एक करके खत्म की जा रही हैं। अगर किसी भी भवन के एक स्तम्भ को कमजोर कर दिया जाए तो उस भावना का आने वाला समय किसी खतरे से कम नहीं है। पिछले 7 सालों में 13 पत्रकारों की हत्या इस बात का प्रमाण देती है कि हर साल भारत में 2 पत्रकारों को मौत के घाट उतारा जा रहा है। कब तक यह चलता रहेगा, यह तो नहीं कहा जा सकता है। लेकिन जिस तरह से पत्रकारों की हत्याएं हो रही हैं उससे प्रतीत होता है कि आने वाले समय में पत्रकार देखने के लिए भी नहीं मिलेंगे। इन हत्याओं के डर से आने वाले समय में कोई भी व्यक्ति इस पेषे को अपनाने की हिम्मत नहीं करेगा क्योंकि कोई भी मरना नहीं चाहता है।

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