स्कूल से समाज और शिक्षा से व्यवहारिकता की ओर कहते हैं कि नींव जितनी मज़बूत होगी, मकान उतना ही सुदृढ़ होगा। वैसे ही हमारे विद्यालयों के बच्चों को हम जितना व्यावहारिक ज्ञान देंगे, जितना ही कर के सीखने का मौका देंगे उतनी ही उनकी जानकारी और अनुभव में ठोस और पक्की बातें शामिल होती जाएंगी। जिससे उनके सामाजिक सरोकार को बढ़ावा मिलेगा। यह तब ही सम्भवः जब वह अपने बाल्य काल से ही व्यवहारिक ज्ञान प्राप्त कर सकें। ऐसे में शिक्षक का दायित्व और भी बढ़ जाता है।
उपरोक्त शब्दों को निर्णायक ठहराते हुए बाल संसद के माध्यम से स्कूल परिवार अपने बच्चों को स्कूल से समाज और शिक्षा से व्यवहारिकता की ओर एक कदम चलवाती है। छात्रों का सर्वांगिन विकास शिक्षा का एकमात्र लक्ष्य है जिससे उनकी अभिव्यक्ति भी मुखर होगी और उनकी नेतृत्व क्षमता का विकास होगा। विद्यालयों में बाल संसद का गठन भी इसी हेतु के साथ किया गया कि छात्र-छात्राओं को ज़िम्मेदार नागरिक बनाया जाए। व्यक्तिगत कौशल के संवर्धन के लिये ‘बाल संसद’ का प्रयोग स्वस्थ प्रतियोगी भावना को विकसित करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन करता है।
बाल संसद का स्वरूप
बाल संसद में प्राथमिक एवं उच्चतर प्राथमिक विद्यालयों में क्रमशः पांच सदस्यीय मंत्रीमंडल एवं आठ सदस्यीय मंत्रीमंडल होता है जिसके अध्यक्ष प्रधानमंत्री होते हैं। हर एक मंत्री समूह में एक निश्चित छात्रों की टोली होती है जो स्टूडेंट्स की संख्या पर निर्भर करती है। हर एक मंत्री समूह के सरंक्षक के तौर पर एक शिक्षक होते हैं जो कार्य को सुचारू रूप से क्रियान्वित करने में मदद करते हैं।
बाल संसद का गठन एव मंत्री का दायित्व
बाल संसद के गठन की पूरी प्रक्रिया लोकतांत्रिक प्रणाली के अनुसार होती है। जैसे हमारे देश में लोकसभा, विधानसभा एव पंचायती चुनाव का क्रियान्वयन होता है ठीक उसी प्रकार से इसकी भी पूरी प्रक्रिया होती है। शिक्षक निर्वाचक पदाधिकारी के रोल में होते है। जो उम्मीदवार सुनिश्चित की गई उपस्थिति प्रतिशत, परीक्षा परिणाम का प्रतिशत इत्यादि पात्रता को पूर्ण करते हैं उनकी उम्मीदवारी निर्वाचक पदाधिकारी सुनिश्चित करते हैं। इसके पश्चात अपने पक्ष में छात्रों को गोलबंद करने के लिए प्रचार-प्रसार, वोटिंग और उसके बाद मतगणना की प्रक्रीया पूरी की जाती है। विजय घोषित विद्यार्थियों को उनके द्वारा विजित मंत्री पद के दायित्व से अवगत करवाया जाता है।
1) प्रधानमंत्री:- महीने में बाल संसद की बैठक आयोजित करना और मंत्रियों एवं उनकी टोली के द्वारा किये गए कार्यों का प्रतिदिन अवलोकन करना। जहां बच्चों की संख्या कम हो वहां अपनी सहभागिता देना।
2) शिक्षा मंत्री:- कक्षाओं में समय से शिक्षक की उपस्थिति हो एवं शैक्षणिक रूप से कमज़ोर छात्रों को सहयोग देना।
3) आरोग्य एवं स्वास्थ्य मंत्री:- स्कूल में छात्रों की अच्छी सेहत सुनिश्चित करना। आकस्मिक किसी छात्र की तबियत खराब हो जाये तो तत्काल शिक्षक को सूचित करना या छात्र को उनके पास ले जाना। इसके लिए आरोग्य एव स्वास्थ्य मंत्री समूह में हर एक कक्षा से विद्यार्थी होने चाहिए।
4) खेल एवं सांस्कृतिक मंत्री:- खेल-कूद को बढ़ावा देना एवं समय-समय पर शिक्षक के माध्यम से विभिन्न खेलों का आयोजन करवाना। स्कूल में आयोजित होने वाले सांस्कृतिक कार्यक्रमों में हर एक छात्र की सहभागिता सुनिश्चित कराना।
5) पर्यावरण मंत्री:- पर्यावरण के प्रति छात्रों की सकारात्मक सोच शिक्षक के माध्यम से बढ़ाना। बागवानी को बढ़ावा देना जिसमें सभी प्रकार के पौधों की संख्या हो जैसे औषधि। सही समय पर पौधों की सिंचाई एव कोढ़ाई हो।
6) स्वच्छता मंत्री:– शाला की साफ सफाई की समुचित व्यवस्था उनके टोली की ज़िम्मे होती है जो स्कूल शुरू होने से कुछ पहले आकर कक्षाओं एव परिसर में साफ सफाई करते हैं।
7) मध्याह्न भोजन एव पानी मंत्री:- विद्यालय में मिड डे मील योजना के तहत मिलने वाले खाद्य प्रदार्थ की जांच। जहां बच्चे खाने के लिए बैठक लगा रहे हैं उसकी साफ सफाई, खाने के पहले बच्चों को हाथ धोने के लिए प्रेरित करना एवं बच्चों को साफ पीने का पानी मिले इसके लिए नल-कल से आने वाले पानी की देख-रेख करना।
8) उपस्थिति एवं व्यवस्था मंत्री:- सभी विद्यार्थियों की उपस्थिति सुनिश्चित करना जिससे उनकी शिक्षा पर कोई प्रभाव नहीं पड़ पाये । कोई अव्यवस्था हो रही हो तो शिक्षक को जानकारी देना।
शिक्षा से व्यवहारिकता की ओर बढ़ते कदम में मुझे भी कुछ कार्य करने का मौका मिला। गुजरात राज्य अंतर्गत सूरत ज़िला में उमरपाडा तालुका के दो क्लस्टर स्कूलों, उच्चतर प्राथमिक विद्यालय उचवांन एवं सरवन फोकड़ी में बाल संसद गठन करने के कार्य में गांधी फेलो के तौर पर शिक्षक के सहायक के रूप में कार्य करना काफी आनंददायक रहा है। बाल संसद को क्रियान्वित करना आसान नहीं था, पहले तो शिक्षक तैयार ही नहीं हुए कि उन्हें इस तरह के प्रारूप की ज़रूरत भी है। जब हुए भी तो इसके गठन का पूरा ज़िम्मा हमारे कंधो पर दे दिया गया। जिसे आखिर में शिक्षक के सहयोग से ही मूर्त रूप देना था। जिसे आखिर में शिक्षक के सहयोग से मूर्त रूप तो दे दिया गया लेकिन इसके क्रियान्वयन में अभी भी कुछ कठिनाइयां आ रही हैं। जिससे शिक्षक थोड़े निराश हो जाते हैं कि गठन तो हो गया अब इसका वांछित परिणाम तो नहीं दिख रहा है, जिसके फलस्वरूप मैंने भी शिक्षक के साथ वार्ता कर उन्हें समझाने का प्रयास किया कि जिस तरह से हम बात करते हैं कि फला छात्र अपने परिवार का पहला छात्र है जो पढ़ने वाला है ठीक इसी तरह हम भी इस वर्ष बाल संसद को देखते हैं। बाल संसद की गठन से स्कूल का रौनक निखरा है। छात्रों की सक्रियता खेल के अलावा अन्य क्षेत्रो में भी बढ़ी है। और तो और हर बच्चों में ज़िम्मेदारी का अहसास बढ़ा है। स्कूल की पढ़ाई से लेकर हर व्यवस्था का ध्यान रखते हैं। विद्यालय परिसर में बागवानी एव साफ सुथरे बच्चे तथा साफ सुथरा विद्यालय दिख रहा है।