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नेहरू को व्हाट्सएप्प, फेसबुक से नहीं, उनकी किताबों के ज़रिए जाना जा सकता है

मैंने जवाहरलाल नेहरू  को पहली बार तब जाना जब मैं तीसरी क्लास में पढ़ती थी। किताबों में तो पहली कक्षा से ही उनके बारे में पढ़ते आई हूं। उनके बारे में सुना था मम्मी से कि वह बच्चों से बहुत प्यार करते थे इसलिए उनके जन्मदिवस को बाल दिवस के रूप में मनाते हैं। बड़े होने तक कई दफा सुना- पढ़ा कि उन्होंने हमें आज़ादी दिलाई और देश को आज़ादी के बाद वापस उन्होंने कैसे संवारा।

फिर आठवीं में उनके द्वारा जेल में लिखी गई किताब ‘भारत की खोज’ कोर्स में पढ़ने का मौका मिला। वह पढ़ने पर मुझे समझ आया कि उन्हें हम महापुरुषों में क्यों शामिल करते हैं। आप अगर यह किताब पढ़ लें तो आपके मन के सारे पूर्वाग्रह जो नेहरू जी को लेकर हैं वह सब दूर हो जाएंगे। नेहरू शुरू से ही कट्टरपंथियों के निशाने पर रहे हैं। आपने जितना भी पढ़ा सुना उनके बारे में, घर में, वॉट्सअप पर, फेसबुक पर, आप खुद समझ सकेंगे उन लोगों की बातों में कितनी सच्चाई है। किसी भी इंसान के बारे में राय बनाने से पहले कम-से-कम हमें उन्हें एक बार पढ़ लेना चाहिए। उनकी किताब सिर्फ उनकी बुद्धिमत्ता ही नहीं बताती बल्कि हमें अपने भारत के प्रति गर्व का अहसास और बढ़ा देती है।

जिस स्थिति में ब्रिटिश हमारे देश को छोड़कर गए थे है वह बहुत ही गंभीर स्थिति थी। ब्रिटिशों द्वारा असंख्य समस्याएं भारतीयों के लिए छोड़ दी गई थीं। पंडित नेहरू को पता था कि भारत एक हज़ार साल से कृषि प्रधान देश है, इसलिए यह बहुत ज़रूरी था कि कृषि विकास औद्योगिक विकास के साथ आगे बढ़े। स्वतंत्रता के समय भारत में कोई बुनियादी ढांचा नहीं था, जो उद्योगों के लिए सहायक हो सकता है। औद्योगिक विकास की पहली और सबसे महत्वपूर्ण आवश्यकता थी भारत में बुनियादी ढांचे का विकास। नेहरू जी ने इसी ढांचे पर विचार किया।

नेहरू जिस माहौल में पले-बढ़े थे, उनकी शिक्षा जहां थी, वह पूरी ही लोकतांत्रिक ढांचे में हुई थी। उन्होंने ना सिर्फ भारतीय स्वंत्रता संग्राम में भाग लिया, उसके साथ-साथ उन्होंने ब्रिटिश सरकार के खिलाफ एक मजबूत विपक्ष के रूप में सामने आकर अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

नेहरू व्यक्तिगत स्वतंत्रता जैसे विचारों के प्रशंसक थे। उन्हें फासीवाद और नाजीवाद जैसे विचारधाराओं से घोर घृणा थी क्योंकि वह हिंसा के सख्त विरोधी थे। उसी प्रकार तानाशाही तरीके से कम्युनिस्टों का अपनी विचारधारा को थोपना  उन्हें उतना पसंद नहीं आया। इसलिए उन्होंने बहुत डेमोक्रेटिक सोशलिज़्म यानी लोकतांत्रिक साम्यवाद चाहा जो पॉलिटिकल लिबर्टी, समानता और सहनशीलता पर आधारित हो।

नेहरू कैपिटलिज़्म यानी पूंजीवाद के दुष्परिणामों और उससे उपजे हिंसा के भी खिलाफ थे और पूंजीवाद के खिलाफ खड़ी हुई आवाज़ यानी साम्यवाद से उपजी हिंसा और असहनशीलता के भी खिलाफ थे। इसलिए उन्होंने बीच का रास्ता चुना। उन्होंने मिक्स्ड इकोनॉमी को पूंजीवाद और साम्यवाद के अतिरिक्त विकल्प बताया। यह साम्यवाद और पूंजीवाद का ऐसा मेल था जिसमें दोनों विचारधाराओं की सकारात्मकता थी और नकारात्मकता को निकाल फेंका था। उनकी इस नीति के हिसाब से यह एक फ्री प्राइवेट एंटरप्राइज़ और स्टेट कंट्रोल इकोनॉमी का मिश्रण था।

सोवियत संघ ने आर्थिक रूप में जबरदस्त प्रगति की। भारत में राजनीतिक स्वतंत्रता प्राप्त करने के बाद नेहरू ने कहा कि आर्थिक आज़ादी के लिए सोवियंत संघ की नीतियों का पालन किया जाना चाहिए। नेहरू ने सोवियत अनुभव से प्रेरणा ली थी और उनका मानना था कि भारत की तेज़ी से आर्थिक विकास केवल आर्थिक नियोजन के ज़रिए संभव है। कई प्रतिस्पर्धात्मक उद्देश्यों के बीच संतुलन को रोकने के लिए योजना आवश्यक थी।

ना केवल उद्योग और कृषि, बल्कि अन्य क्षेत्र को भी कवर करने के लिए योजना आवश्यक थी। राष्ट्रीय स्वतंत्रता एक मजबूत औद्योगिक आधार पर निर्भर थी, इसके अलावा योजना के रूप में एक मजबूत विनियमन तंत्र होना चाहिए लेकिन सारी व्यवस्थाएं और नीतियां भारत में एक लोकतांत्रिक व्यवस्था के तहत तैयार की जा रही थी। नेहरू के अनुसार आर्थिक योजना वैचारिक प्रक्रिया की बजाय वैज्ञानिक तकनीक थी। यही था हमारे चाचा नेहरू के सपनों का भारत।

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