ऐ दिल्ली ये तूने क्या किया । तेरे को ना तो पाकिस्तान हरा पाया और ना ही चीन, पर तुझे तो अपनों ने ही रुका दिया । ऐसा क्या चाहिए था लोगों को की उनको अपने दिल की भी परवाह नहीं थी | आज तू रो रही है और लोगों को आज बी फर्क नहीं पड़ता है, खुद के लिए एक मास्क खरीद लेंगे अमेज़न से पर तेरे लिए कुछ नहीं करेंगे | अभी भी वो बस अपनी सोच रहे है ना की तेरी | तू जो यूँ औंधे मुँह गिरी है की लगता है अब तू भी हार गयी है | साल का ये समय हम इंसानो को दिखा देता है की हमें ना तो खुदा मरेगा और ना ही कोई हमारा दुश्मन, पर हम खुद ही खुद को मार डालेंगे |
हम दिखावट में इतना ज्यादा व्यस्त हो गए की ये भूल ही गए की जीने के लिए सुध हवा चाहिए | ऐसी हवा जिसमे शहर की चका चौंध ना हो, हवा जो बचपन की तरह किलकारी मारती रहे, हवा जो अपनी चाल में मगन हो | मैंने ये कभी न सोचा था की इंसान हवा का भी वो हाल करेगा जो वो दूसरे इंसानो का करता है | मुझे लगता था की वो तो अमर है |
ऐ इंसान तूने हवा को भी उसके घुटनो पे ला दिया है, तूने उसको भी मर घट में पहुंचा दिया है, तूने उसके भी क्रिया करम की तैयारी कर ली है | पर ऐ इंसान सावधान हो जा उसकी उसकी आज़ादी दे दे, उसमे होनी आदतों का ज़हर ना घोल, अपनी विषैली चाल उसे ना सीखा वार्ना याद रख ये विष तेरे को ही पीना पड़ेगा और न तू नीलकंठ है और ना ही बन पाएगा |