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बिहार में क्यों फ्लॉप हो गई गौरव लग्ज़री की मर्सीडीज़ बस सेवा?

पिछले साल एक रोज जब मैं राजधानी पटना स्थित परिवहन भवन के कैंपस में गया तो वहां गौरव लग्ज़री की दसियों मर्सिडीज़ बसें खंडहर हालत में धूल फांकती नज़र आईं। कभी बिहार की सड़कों का गौरव मानी जाने वाली इन बसों का यह हाल देखकर झटका लगा। महज़ चार -पांच साल पहले जब यह सेवा बदलते बिहार के स्लोगन के साथ धूम-धाम से शुरू हुई थी तो इस पर सवारी करना स्टेटस सिंबल माना जाता था। कहा जाता था कि इन आरामदेह और लग्ज़री बसों की यात्रा की शान-ओ-शौकत के सामने हवाई यात्रा भी फेल है। उस वक्त यह कहा गया था कि एक हज़ार से अधिक ऐसी बसें बिहार-झारखंड की सड़कों पर दौड़ेंगी।

मगर चार साल बाद सिर्फ 12-15 बसें ही संचालित हो रही हैं, ये बसें भी आधी ही भर पाती हैं। संचालक कंपनी परेशान हैं, कर्मचारी नौकरी छिनने की आशंका में डूबे हैं। बसों पर दी जाने वाली सुविधाएं एक-एक कर खत्म कर दी गई है। बिहार के स्वर्णिम दिनों की याद इस मर्सीडीज़ बस सेवा को आखिर किसकी नज़र लग गई? बिहार राज्य परिवहन निगम के सहयोग से बिहार-झारखंड के चप्पे-चप्पे में इस लग्ज़री बस सेवा के संचालन का सपना आखिर कहां गुम हो गया?

पैसेंजर की कमी नहीं थी, बस सरकार का सहयोग नहीं मिला : बस सेवा के मैनेजर

परिवहन भवन स्थित गौरव लग्ज़री बस सेवा के सीनियर मैनेजर विजय कुमार सिंह कहते हैं, यह ठीक है कि पिछले दिनों बिहार में हर जगह सड़कों का जाल बिछ गया, मगर फिर भी यहां की ज़्यादातर सड़कों की गुणवत्ता ऐसी नहीं है कि यहां मर्सीडीज़ और वॉल्वो की बसें चलाई जा सकें। इसी वजह से कई बसें बहुत कम समय में खराब हो जा रही हैं। इन बसों के पार्ट्स भी यहां नहीं मिलते, इसलिए ये कई दिनों तक खड़ी रहती हैं। हालांकि इस महत्वाकांक्षी बस सेवा का बिहार में सफल नहीं हो पाने की यह असली वजह नहीं है। और न ही यह कारण कि ये महंगी हैं और लोग इतना किराया देने में खुद को असमर्थ पाते हैं।

विजय सिंह कहते हैं, इन बसों को यात्रियों की कभी कमी नहीं रही। उस दौर में भी नहीं जब यहां से दर्जन भर बसें रोज़ रांची के लिए चलती थीं। मसला कुछ और है। इतना कह कर वे चुप हो जाते हैं। काफी दबाव डालने पर कहते हैं, सच यही है कि हमें सरकार का सहयोग नहीं मिला। 2011-12 में जब यह सेवा शुरू हुई थी, उस वक्त सरकार के साथ जो एग्रीमेंट हुआ था उस पर सरकार कायम नहीं रह सकी।

परमिट की उम्मीद में साल भर खड़ी रह गई 25 बसें

एग्रीमेंट के मुताबिक तय हुआ था कि बिहार में गौरव लग्ज़री 500 बसों का संचालन करेंगी, पहली किस्त में 45 बसें आईं, मगर सरकार ने सिर्फ 20 बसों को ही परमिट दिया। शेष बसें साल भर बेकार इसी कैंपस में खड़ी रह गई। इसी घटना ने कंपनी के ओनर हैदराबाद के उद्योगपति गौरव संघी और उनके परिवार वालों का उत्साह खत्म कर दिया। आप ही सोचिये, एक-एक बसे एक करोड़ 30 लाख की आती है। किसी बिज़नेस मैन का 32-35 करोड़ का इन्वेस्टमेंट ऐसे बेकार पड़ा रह जाए तो क्या उसे अखरेगा नहीं? कहां 500 बसों के परिचालन का एग्रीमेंट था, कहां 20 बसों को ही परमिट मिला।

20 फीसदी सब्सिडी दिये जाने का भी था वादा

वे कहते हैं, फिर बाद में हमने कुछ बसों का नेशनल परमिट लिया और कुछ बसों को वापस भेज दिया। तब से हम इन्हीं बसों को किसी तरह चलाने की कोशिश कर रहे हैं। अगर यहां 500 बसें चलती तो क्या सिर्फ संघी जी का फायदा होता? जो दस हज़ार से अधिक कर्मचारी इन बसों को चलाने के लिए काम करते उनका फायदा नहीं होता? सिर्फ ये ही नहीं हुआ, एग्रीमेंट की कई शर्तों का पालन नहीं हुआ। तय हुआ था निवेश का 20 फीसदी सब्सिडी के रूप में पांच किस्तों में राज्य सरकार वापस करेगी, वह भी नहीं दिया गया। बसें कई जगह तोड़-फोड़ और हिंसा का शिकार हो जाती हैं, मगर सरकार कोई सुरक्षा नहीं देती।

प्रतिस्पर्धी कराते हैं बसों पर हमले : कंपनी

विजय सिंह बताते हैं कि पिछले दिनों दो बसों का आग लगा दिया गया है। कोई ऐसा महीना नहीं होता जब बसों के 10-15 शीशे न टूटे हों।सर्वविदित है कि यह सब कंपिटीटर बस संचालक कराते हैं। हमलोग लगातार सरकार के अनुरोध करते हैं, मगर कोई कार्रवाई नहीं होती। इस पर से इस सेवा शर्त का कड़ाई से पालन होता है कि बस भरे न भरे, चले न चले, प्रति बस के हिसाब से फुल सीट के आखिरी स्टेशन तक के किराये का दस फीसदी विभाग को चुकाना पड़ता है। हालांकि हम इसका विरोध नहीं कर सकते, क्योंकि यह एग्रीमेंट की शर्त है। मगर आज इस सेवा की जो स्थिति है और यह स्थिति सरकार की वादा खिलाफी की वजह से है तो सरकार को भी इसमें छूट देना चाहिये।

दूसरे राज्यों के मुकाबले कम है किराया : विजय सिंह

किराया अधिक होने और सेवा सुविधा में कटौती किये जाने की बात पर विजय कुमार सिंह कहते हैं कि हमारा किराया दूसरे राज्यों में संचालित होने वाली मर्सीडीज़ बसों के मुकाबले कम ही है। दूसरे राज्यों में 2 रुपये प्रति किमी की हिसाब से किराया लिया जाता है, जबकि हमारा अधिकतम किराया डेढ़ रुपये प्रति किमी है। और सुविधा की कटौती इसलिए की गई कि कई बार कंबल चोरी होने, कंबल में सिगरेट बुझाने और वोमिटिंग बैग में पान और गुटखा थूकने जैसी शिकायतें मिलीं। ऐसे में इन सुविधाओं को जारी रखना मुमकिन नहीं था।

विभाग के अधिकारी देते हैं प्रक्रिया का हवाला

वहीं परिवहन विभाग के अधिकारी इस मसले पर कुछ भी स्पष्ट जानकारी नहीं देते। वे कहते हैं कि लाइसेंस और परमिट जारी करने की विभाग की प्रक्रिया है। हम उसी प्रक्रिया का पालन करते हैं, इस सवाल पर कोई अधिकारी कुछ बताने के लिए तैयार नहीं है कि बाहर से कारोबार करने के लिए आने वाले कारोबारियों से ऐसा बर्ताव होगा तो राज्य में कारोबार का माहौल कैसे विकसित होगा?


पुष्य मित्र बिहार के पत्रकार हैं और बिहार कवरेज नाम से ब्लॉग चलाते हैं। बिहार की कुछ ऐसी इंट्रेस्टिंग ज़मीनी खबरों के लिए उनके ब्लॉग का रुख किया जा सकता है।

फोटो आभार- गौरव बस सेवा वेबसाइट

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