Site icon Youth Ki Awaaz

फाइटर प्लेन उड़ाने को तैयार तीनों महिला पायलट को देश का सलाम

नवबंर के महीने में भारतीय सेना महिला समानता की दिशा में नई इबारत लिखने जा रही है, क्योंकि मोहना सिंह, अवनि चतुर्वेदी और भावना कंठ जिनको पिछले साल एयर फोर्स में कमीशन दिया गया था अब वो फाइटर पायलट के रूप में फाइटर प्लेन भी उड़ाएंगी। उन्होंने अपनी ट्रेनिंग पूरी कर ली है और वो फाइटर प्लेन उड़ाकर नया इतिहास लिखने के मुहाने पर खड़ी हैं।

भारत में यह एक बड़ी उपलब्धि है क्योंकि भारतीय सेनाएं बेवजह मर्दाना बनी हुई थी, जबकि दुनिया ही नहीं पड़ोस के देशों में यह शुरूआत पहले ही हो चुकी है। यह बात हैरान कर सकती है कि पाकिस्तान में महिलाएं 2006 से ही फाइटर प्लेन उड़ा रही हैं और इस समय वहां दो दर्जन के करीब महिलाएं फाइटर पायलट है, फ्लाइट लेफ्टिनेंट आयशा फारूख पाकिस्तान वायुसेना की पहली महिला पायलट हैं जो पाकिस्तान की लड़कियों के लिए मिसाल हैं। चीन ने यह उपलब्धि तो दशकों पहले प्राप्त कर ली है।

महिलाओं की फाइटर प्लेन चलाने की शुरूआत 1936 में हुई थी जब सबीहा गोकसन ने अपना नाम पहली महिला फाइटर पायलट के रूप में रूप में दर्ज किया। उसके बाद सोवियत संघ ने दूसरे विश्व युद्ध में बड़ी तादात में महिलाओं को फाइटर पायलट बनाया और उन्होंने तमाम धारणाओं को तोड़ दिया कि पुरूष ही फाइटर प्लेन उड़ा सकते हैं। नब्बे के दशक में कई देशों ने महिलाओं को फाइटर पायलट की जिम्मेदारी देना शुरू किया और महिलाएं बखूबी इसे भूमिका को अंजाम दे रही है।

आधुनिक युद्धकौशल में भारत में महिलाओं का नई भूमिका में सामने आना समाज के मर्दाना व्यवहार को तोड़ने में मील का पत्थर साबित हो सकता है, क्योंकि भारतीय रक्षा सेवाएं महिलाओं की भूमिकाओं को लेकर सहज नहीं है। सेना में महिलाओं की भर्ती 1927 से हो रही है, पर 1992 में पहली बार उन्हें शॉर्ट सर्विस कमीशन प्रदान किया गया। महिलाओं को सेना में स्थाई कमीशन 2008 में कोर्ट के फैसले के बाद नौसेना और वायुसेना में स्थाई कमीशन दिया गया, लेकिन थलसेना में महिलाओं को लीगल, इंटेलिजेंस, सप्लाई कोर, एविएशन और सिग्नल जैसी शाखाओं में पद दिया जा रहा है। भारतीय सेना के तीनों अंगों में महिलाओं के नियुक्ति के लिए अलग-अलग मापदंड है। भारतीय सेना में महिला केवल अफसर ही बन सकती हैं। जवान के स्तर पर महिलाओं की भर्ती सेना में नहीं होती है। उनकी भूमिका अभी तक सपोर्ट रोल में, कॉम्बेट रोल में नहीं है।

वास्तव में भारतीय सेना को यह समझने की ज़रूरत है कि भारतीय महिलाओं की नाज़ुक छवि इसलिए उभर कर सामने आती है क्योंकि इसतरह बनने की ट्रेनिंग सामाजिक समाजीकरण से उनको दी जाती है। महिलाओं को सुंदर और सुशील बनने का समाजीकरण की संस्कृति ही उनको कमज़ोर दिखाता है और यह कोशिश लंबे समय से होती रही है।

जो महिलाएं खेती करने में, हर तरह के शारीरिक और मानसिक श्रम को करने में पुरुषों से पीछे नहीं है, उनकी शारीरिक क्षमता मामूली कैसे हो सकती है?

नाज़ुक महिलाओं की छवि को आधार मानकर महिलाओं को अवसर नहीं देना एक गलत आधार है। इस तमाम दलीलों से निकलकर भारतीय सेना महिलाओं के लिए मापदंडों को तय करने की ज़रूरत है तभी रक्षा सेवाओं में महिलाओं की सहभागिता को नया आधार मिल सकेगा।

जब भारत की रक्षा मंत्री एक महिला है तो देश और आधी आबादी यह उम्मीद कर सकती है कि आने वाले दिनों में रक्षा सेवाओं में महिलाओं की सहभागिता बढ़ेगी, जो सेना के तीनों अंगों में पुरुषों के अनुपात में बहुत ही कम है। साथ ही साथ कई व्यावहारिक समस्या भी है जैसे सेना में महिला अधिकारियों के लिए अभी यूनिफॉर्म तक नहीं डिज़ाइन हो पाए हैं। बात चाहे पॉकेट की हो या ज़िप की। महिलाओं के हिसाब से ड्रेस होना सबसे बड़ी ज़रूरत है। महिलाओं की ट्रेनिग के साथ माहौल बनाने की भी ज़रूरत है। ज़ाहिर है 26 जनवरी और 15 अगस्त के परेड में शक्ति और सौन्दर्य के प्रदर्शन के साथ-साथ कई मूलभूत निर्णय लेने की ज़रूरत भारतीय सेना को है।

इन तमाम स्थितियों के बाद भी देश को उन तीन महिलाओं के फाइटर प्लेन उड़ाने के हौसले और संघर्ष को सलाम करना चाहिए। इससे देश की असंख्य लड़कियों को हौसला मिलेगा कि वो भी देश की रक्षा सेवा में सर्वोच्च सम्मान हासिल कर सकती हैं।

Exit mobile version