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वैश्विक शांति और स्थायी अर्थव्यवस्था के लिए ज़रूरी है नि:शस्त्रीकरण

आज विभिन्न देशों द्वारा हथियारों की प्रतिस्पर्धा के बीच विश्व एकता और शांति के लिए निःशस्त्रीकरण की सबसे ज्यादा ज़रूरत है। शस्त्रीकरण की होड़ संकटपूर्ण परिस्थितियों को जन्म देती है और निःशस्त्रीकरण शांति और सहयोग की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। शारीरिक हिंसा के प्रयोग के समस्त भौतिक साधनों को पूरी तरह से हटाया जाना ही निःशस्त्रीकरण है।

वास्तव में निःशस्त्रीकरण का मतलब है कि सभी देशों के विनाशकारी हथियारों को नष्ट कर दिया जाए और भविष्य में ऐसे भयानक हथियारों को न बनाया जाए। इसके साथ ही यह भी उतना ही ज़रूरी है कि मौजूदा हथियारों के प्रयोग को वैश्विक नीतियों द्वारा व्यवस्थित किया जाए। इस तरह निःशस्त्रीकरण की प्रक्रिया शस्त्र-नियंत्रण के रास्ते से ही होकर जाती है।

फोटो आभार: google

आज के इस वैश्विक परिदृश्य में, अगर एक देश अपने हथियारों में आक्रामक वृद्धि करता है तो उसके पड़ोसी देशों में उस देश से असुरक्षा का भाव पैदा हो जाता है और असुरक्षा का यह भाव अन्य देशों को विवश करके अपनी-2 सामरिक शक्तियों को बढ़ाने का काम करता है। धीरे-2 यह सभी देश युद्ध को रोकने की तैयारी में युद्ध के और ज़्यादा करीब ही आ जाते हैं और इसी के साथ शुरू होता है धमकियों और अंतरराष्ट्रीय प्रतिबन्धों का नया दौर, जो विश्व को सामरिक और आर्थिक विनाश के द्वार पर लाकर खड़ा कर देता है।

अभी हाल ही में हमारे सामने उत्तर कोरिया के परमाणु शक्ति परीक्षण और अमेरिका द्वारा उस पर लगाये गए प्रतिबंधों का ताज़ा उदाहरण मौजूद है। उत्तर कोरिया की परमाणु शक्ति बनने की लालसा ने अमेरिका जैसी सुपर पावर को उत्तर कोरिया के विरुद्ध और दक्षिण कोरिया और जापान के साथ खड़ा कर दिया है। सारा विश्व उत्तर कोरिया के परमाणु हथियारों के प्रयोगों की धमकी और अमेरिका द्वारा लगाए गए अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों से उत्पन्न होने वाली विभीषिका को महाविनाशकारी युद्ध के द्वार खटखटाते हुए स्पष्ट देख रहा है।

आज विकासशील देशों की अर्थव्यवस्था का 20% भाग सैन्य बलों की वृद्धि और हथियारों की खरीद-फरोक्त में चला जाता है। परिणामस्वरूप ये देश ऋणग्रस्तता के शिकार हो जाते हैं और अपनी बुनियादी सुविधाओं जैसे शिक्षा, स्वास्थ्य और विकास के लिए विकसित देशों द्वारा दिए जाने वाले आर्थिक पैकेजों पर निर्भर हो जाते हैं।

विकसित देश भी करोड़ों डॉलर के पैकेजों के बदले अपने सामरिक और राजनीतिक प्रभुत्व को स्थापित करने के लिए विकासशील देशों की ज़मीन को अपना नया आर्मी बेस बना लेते हैं और उस ऋणग्रस्त देश की संप्रभुता और सत्ता अप्रत्यक्ष रूप से विकसित देशों के हाथों की कठपुतली बन जाती है। जैसे भारत से अधिक सशक्त बनने की मूर्खता ने आज हमारे सबसे ज़्यादा याद आने वाले पड़ोसी देश पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था को अमेरिका और चीन जैसे महत्वकांक्षी देशों द्वारा दिए जाने वाले पैकेजों पर निर्भर कर दिया है।

शक्ति प्राप्त होने के बाद उसका सही संतुलन भी बहुत ज़रूरी होता है। महाभारत काल के उस महान शक्तिशाली योद्धा बर्बरीक का उदाहरण देना यहां ज़रूरी हो जाता है, जिसके पास अजेय शक्ति होते हुए भी वह उस शक्ति के उचित प्रयोग को नहीं समझ सका और श्रीकृष्ण ने युद्ध से पहले ही उसके द्वारा होने वाले संभावित सम्पूर्ण विनाश को रोक दिया।

आज सम्पूर्ण विश्व-बिरादरी इस बात से निरन्तर चिंतित रहती है कि आक्रामकता के आवेश और उचित सुरक्षा के अभाव में पाकिस्तान के महाविनाशकारी परमाणु हथियार कहीं आतंकवादियों के हाथ न पड़ जाएं।

फोटो आभार: flickr

दूसरे विश्वयुद्ध के बाद निःशस्त्रीकरण के सभी प्रयास विफल रहे और हथियारों की होड़ ने रूस और अमेरिका जैसी महाशक्तियों के बीच शीतयुद्ध को जन्म दिया। 1972 में पहली बार दोनों देशों के राष्ट्राध्यक्षों ने तनाव को घटाकर निःशस्त्रीकरण और शस्त्र-नियंत्रण के लिए संधि कर ली, जिसके अन्तर्गत जैविक व घातक अस्त्रों के विकास, उत्पादन और भण्डारण को सीमित किया जाए और अन्य राज्यों को परमाणुशक्ति सम्पन्न बनने से रोका जाए।

हमारे पहले प्रधानमंत्री पं. जवाहर लाल नेहरू की पारदर्शी विदेश-नीति के अनुरूप ही भारत ने 1986 में हरारे में गुट-निरपेक्ष देशों के राष्ट्राध्यक्षों के सम्मेलन में निःशस्त्रीकरण के प्रति अपनी वचनबद्धता को फिर से दोहराया। भारत ने तीन प्रमुख निःशस्त्रीकरण मंचों अर्थात निःशस्त्रीकरण सम्मेलन (World Disarmament Conference), संयुक्त राष्ट्र निःशस्त्रीकरण आयोग (United Nations Disarmament Commission) और संयुक्त राष्ट्र जनरल असेम्बली की पहली समिति में प्रमुख भूमिका निभाई। ऐसा भारत की इस आस्था के अनुरूप भी था कि इस आधुनिक युग में निःशस्त्रीकरण केवल शांति के लिए ही नहीं बल्कि पूरी मानव-जाति के अस्तित्व के लिए भी ज़रूरी है।

निःशस्त्रीकरण को वर्तमान और भविष्य की प्रमुख आवश्यकता समझते हुए 1978 में संयुक्त राष्ट्र संघ ने प्रत्येक वर्ष अपनी वर्षगांठ पर 24 अक्टूबर से 30 अक्टूबर तक निःशस्त्रीकरण सप्ताह मनाने की घोषणा की। निःशस्त्रीकरण के महत्व को समझते हुए ही इसी वर्ष 7 जुलाई को संयुक्त राष्ट्र में 122 देशों ने पहली बार न्यूक्लियर हथियारों पर प्रतिबंध लगाने के लिए संधि पर हस्ताक्षर किए।

निःशस्त्रीकरण को आज के युग की सबसे महत्वपूर्ण आवश्यकता समझकर ही विश्व के सबसे सम्मानित नोबल शांति पुरस्कार 2017 के लिए नोबल पुरस्कार समिति ने न्यूक्लियर हथियारों के निःशस्त्रीकरण के लिए 100 से अधिक देशों में अभियान चलाने वाले गैर सरकारी संगठन ICAN का चयन किया है।

फेसबुक फीचर्ड और वेबसाइट थंबनेल फोटो आभार: getty images  

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