Site icon Youth Ki Awaaz

बस कंडक्टर से बॉलीवुड टाइटल गानों के बादशाह बनने वाले हसरत जयपुरी

हिंदी फिल्मों में जब भी ‘शीर्षक गीतों’ का ज़िक्र होगा, गीतकार ‘हसरत जयपुरी’ का नाम सबसे पहले लिया जाएगा। यूं तो हसरत जयपुरी ने हर तरह के नगमे लिखें लेकिन फिल्मों के ‘टाईटल’ गीत लिखने पर पूरा अधिकार कर लिया था। हिंदी फिल्मों के सुनहरे दौर में शीर्षक गीत लिखना एक बड़ी बात समझी जाती थी। निर्माता- निर्देशक को जब भी टाईटल गीत की ज़रूरत होती थी वह हसरत जयपुरी से अपनी फिल्म में गीत लिखने का आग्रह करते थे। इनके लिखे शीर्षक गीतों ने बहुत सी फिल्मों को सफल बनाने में अहम किरदार अदा किया है। हसरत जयपुरी के लिखे कुछ शीर्षक गीत इस तरह हैं-

दिल एक मंदिर है (दिल एक मंदिर है), रात और दिन दिया जले (रात और दिन), तेरे घर के सामने एक घर बनाऊंगा (तेरे घर के सामने), एन इवनिंग इन पेरिस (एन इवनिंग इन पेरिस), गुमनाम है कोई (गुमनाम), दो जासूस करे महसूस (दो जासूस) इत्यादि।

हसरत साहब का असल नाम इकबाल हुसैन था। आरंभिक शिक्षा-दीक्षा जयपुर में लेने बाद अपने दादा, फिदा हुसैन से उर्दू-फारसी में भी तालीम प्राप्त की। युवावस्था में इनका रूझान शायर व शायरी की तरफ हुआ, शायरी और नज़्म लिखने का शौक यहीं से मिला। 1940 के आस-पास रोज़गार की तालाश में मुंबई चले आए। गुज़ारे के लिए ‘बस कंडक्टरी’ का काम पकड़ा। इस समय में से उन्होंने शौक के लिए भी वक्त निकाला। मुशायरों में हिस्सेदारी ली।

ऐसी ही एक महफ़िल में हसरत जयपुरी को पृथ्वीराज कपूर ने सुना और उनके हुनर के कायल हुए। पृथ्वीराज ने पुत्र राजकपूर को हसरत साहेब से मिलने का मशविरा दिया। राज साहेब उन दिनों ‘बरसात’ पर काम कर रहे थे। वह एक काबिल गीतकार की तालाश में थे। राजकपूर से हसरत जयपुरी की पहली मुलाकात रॉयल ओपेरा हाऊस में हुई, जिसमें उन्होंने हसरत साहब को ‘बरसात’ का गीत लिखने को कहा। इसे महज इत्तफाक ही कहा जाएगा कि ‘बरसात’ से ही संगीतकार ‘शंकर-जयकिशन’ ने भी अपने करियर का आगाज़ किया था। राजकपूर के कहने पर शंकर-जयकिशन ने हसरत जयपुरी को एक धुन सुनाई और इस पर गीत लिखने को कहा। धुन पर हसरत साहब ने यह गीत लिखा ‘जिया बेक़रार है, छाई बहार है, आजा मोरे बालमा तेरा इंतज़ार है’। 1949 में रिलीज ‘बरसात’ के इस गीत से हसरत जयपुरी इंडस्ट्री में अपनी पहचान बना सके। हसरत साहेब की जोड़ी संगीतकार शंकर-जयकिशन के साथ खूब जमी। इस जोड़ी के कुछ यादगार गीत-

छोड़ गए बालम हाय मुझे अकेला, हम तुमसे मुहब्बत करके रोते भी रहे- हंसते भी रहे (आवारा), इचक दाना बिचक दाना (श्री 420), आजा सनम मधुर चांदनी में हम, जाऊं कहां बता अए दिल, एहसान होगा तेरा मुझ पर, तेरी प्यारी-प्यारी सूरत को, तुम रूठी रहो मैं मनाता रहूं, इब्तदा-ए-इश्क में हम सारी-सारी रात जागे, बहारों फूल बरसाओ मेरा महबूब आया है, दुनिया बनाने वाले, कौन है जो सपनों में आया, रुख से ज़रा नकाब हटाओ मेरे हुज़ूर, पर्दे में रहने दो पर्दा ना उठाओ, जाने कहां गए वो दिन, जिंदगी एक सफर है सुहाना।

राजकपूर के साथ हसरत साहब की जोड़ी सन 1971 तक कायम रही। संगीतकार जयकिशन के निधन और फिल्म ‘मेरा नाम जोकर’ एवं ‘कल आज और कल’ की बाक्स-ऑफिस पर नाकामी बाद राज साहब ने हसरत जयपुरी की जगह ‘आनंद बक्षी’ को लेना शुरू कर दिया। हांलाकि अपनी फिल्म ‘प्रेमरोग’ के लिए राजकपूर ने एक बार फिर हसरत को मौका देना चाहा, लेकिन बात नहीं बन पाई। इसके बाद हसरत जयपुरी व राजकपूर की ‘राम तेरी गंगा मैली’ में फिर जोड़ी बनी। फिल्म का गीत ‘सुन साहिबा सुन,प्यार की धुन’ काफी हिट रहा।

हसरत जयपुरी को ‘बहारों फूल बरसाओ’ (सूरज) एवं ‘ज़िंदगी एक सफर है सुहाना’(अंदाज़) के लिए ‘फिल्मफेयर’ अवार्ड से नवाज़ा गया। मुकेश को शोहरत की बुलंदियों पर पहुंचाने में हसरत जयपुरी के गीतों की अहम भूमिका है।  मुकेश-हसरत जयपुरी की जोड़ी ने- आजा  रे अब मेरा दिल पुकारे (आह), इचक दाना बिचक दाना (श्री 420), आंसू भरी हैं यह जीवन की राहें (परवरिश), वह चांद हंसा वो तारे खिले (अनाड़ी), जाऊं कहां बता अए दिल (छोटी बहन), हाल-ए-दिल जाने न हमारा ( श्रीमान सत्यवादी), तुम रूठी रहो मैं मनाता रहूं ( आस का पंछी),  इब्तदा-ए-इश्क में हम सारी-सारी रात जागे (हरियाली और रास्ता),  ओ महबूबा, महबूबा(संगम), दुनिया बनाने वाले (तीसरी कसम), दीवाना मुझको लोग कहें(दीवाना), जाने कहां गए वो दिन (मेरा नाम जोकर) जैसे गीत दिए।

हसरत जयपुरी ने यूं तो बहुत से रूमानी गीत भी लिखे, लेकिन असल ज़िंदगी में अपनी पहली मुहब्बत हासिल नहीं कर पाएं। बचपन के प्यार ‘राधा’ को अपने प्यार का इज़हार नहीं कर सके, उन्होंने अपनी मुहब्बत को ख़त में लिखा लेकिन खत देने की हिम्मत नहीं कर पाए। बाद में राजकपूर ने खत में लिखे यह बोल ‘यह मेरा प्रेमपत्र पढकर तुम नाराज़ न होना’ का प्रयोग फिल्म ‘संगम’ में किया। फिल्म ‘मेरे हुज़ूर’ में हिंदी व बृजभाषा के मिश्रण से ‘झनक-झनक तेरी बाजे पायलिया’ गीत लिखा, जिसे पुरस्कृत किया गया।

हसरत जयपुरी ने तीन दशक के लंबे फिल्मी करियर में तीन सौ से अधिक फिल्मों के लिए तकरीबन दो हज़ार गीत लिखे। संगीत के कद्रदानों को 17 सितंबर, 1999 को आंसुओं में छोड़ सदा के लिए रुखसत हो गएं।

आज हसरत साहब हमारे बीच से भले चले गए हों लेकिन ‘तुम मुझे यूं भूला ना पाओगे, जब भी सुनोगे गीत मेरे संग-संग तुम भी गुनगुनाओगे’ की दस्तक आज भी सुनाई देती है।

Exit mobile version