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एक्सक्लूसिव: IIT कानपुर जाति विशेष के स्टूडेंट्स को ही करता है निष्कासित

Five students on bicycles.

साल 2015 में अपने कज़न से प्रभावित होकर गौरव ने IIT कानपुर में एडमिशन लिया। गौरव को IIT कानपुर में रिज़र्व्ड कैटेगरी के तहत एडमिशन मिला था। दसवीं तक हिंदी मीडियम में पढ़ने के बाद गौरव ने IIT की कठिन परीक्षा पास की लेकिन अफसोस कि कामयाबी की ये कहानी बहुत लंबी नहीं चल पाई। गौरव ग्रेडिंग सिस्टम में अपने क्लासमेट्स से पिछड़ने लगा और यही वजह थी कि दूसरे सेमेस्टर तक उसका इंट्रेस्ट लगभग खत्म हो चुका था। तीसरे सेमेस्टर के बाद IIT कानपुर से उसे निष्कासित कर दिया गया।

उस सेमेस्टर अकेले गौरव को एक्सपेल नहीं किया गया था। YKA द्वारा IIT कानपुर को दायर किए गए एक RTI के जवाब से ये आंकड़ा सामने आया है कि संस्थान ने उस साल खराब प्रदर्शन का हवाला देते हुए 17 अंडरग्रैजुएट स्टूडेंट्स को एक्सपेल किया था जिनमें सभी SC (6), ST (5), OBC (5) या डिसेबल्ड (2) श्रेणी से थे।

मामला यहीं नहीं रुकता। RTI से प्राप्त आंकड़ों से ये साफ होता है कि IIT कानपुर में यह सिलसिला पिछले 5 साल से चल रहा है, जिसमें संस्थान से निष्कासित हर अंडरग्रैजुएट स्टूडेंट SC/ST/OBC या डिसेबल्ड(PwD) कैटेगरी से है (टेबल 1 देखें)।

यह सिलसिला अगर ज़्यादा कुछ नहीं तो कैंपस के अंदर जातीय भेदभाव और एक्सेसिब्लिटी के आभाव को खत्म करने में संस्था की नाकाबिलियत को तो सामने लाता ही है। इस संगठित सिलसिले में एक अपवाद 2016-2017 के दूसरे सेमेस्टर में आया जहां इन श्रेणियों से निष्कासित स्टू़डेंट्स की संख्या बस 80 फीसदी से ज़्यादा थी मतलब 100 नहीं थी।

इन स्टूडेंट्स को एकैडमिक परफॉर्मेंस इवैल्यूएशन कमेटी की अनुशंसा(रेकमेंडेशन) पर निष्कासित किया गया था। कमेटी ने निष्कासित करने की अनुशंसा स्टूडेंट्स द्वारा प्राप्त क्रेडिट और ग्रेड के बिनाह पर की थी।

एक भेदभाव करने वाला कैंपस

संस्था के डायरेक्टर मनींद्र अग्रवाल से ये पूछने पर कि पिछले 5 सालों में सिर्फ SC/ST/OBC/PWD स्टूडेंट्स को हीं क्यों एक्सपेल किया गया है उन्होंने जवाब दिया ”एंट्रेंस के बाद कोई भी स्टूडेंट जब हमारे सिस्टम में आता है तो सबकुछ मेरिट के आधार पर हो जाता है। उसके बाद हम किसी भी स्टूडेंट की कोई कैटेगरी पर ध्यान नहीं देते हैं। सबकुछ उनके प्रदर्शन पर निर्भर करता है।”

एक्टिविस्ट्स का कहना है कि ये सिस्टम जेनरल कैटेगरी के स्टूडेंट्स को इसलिए ज़्यादा फायदा पहुंचाता है क्योंकि संस्था इस तरह के भेदभाव को मिटाने में नाकाम है। IIT कानपुर में दिसंबर 2014 से दिसंबर 2016 तक जातीय भेदभाव पर रिसर्च करने वाले पेरिस8 यूनीवर्सिटी के सोशियोलॉजी के प्रोफेसर ओडिल हेनरी ने YKA को बताया ”SC, ST, OBC श्रेणी से आने वाले स्टूडेंट्स कॉलेज कैंपस में खुद को काफी अलग-थलग पाते हैं। ”

IIT कानपुर से पढ़ें मनीष गौतम बताते हैं कि ये अलग थलग होना उस प्रक्रिया का नतीजा है जिसे एक्टिविस्ट्स “पीढ़ी दर पीढ़ी भेदभाव और गरीबी का कुचक्र” कहते हैं। मै (कैंपस में) खुल के नहीं जी पाया क्योंकि मैं हिंदी मीडियम स्कूल से आया था, सरकारी स्कूल जहां कुछ पढ़ाया नहीं जाता है, वहीं मेरे कुछ क्लासमेट्स काफी अच्छे स्कूल से थे।

“जातीय भेद भाव है, बस बहुत छुपा हुआ है,” संस्थान में पढ़ रहे एक शोधकर्ता ने YKA को नाम न बताने की शर्त पर बताया। उन्होंने कहा कि ये भेद भाव तब सामने आता है जब कोई प्रोफेसर किसी स्टूडेंट से उसका उपनाम पूछता है। उन्होंने आगे बताया कि जबसे OBC स्टूडेंट्स के रिज़र्वेशन के लिए IIT में सीट बढ़ाये गए, तबसे अक्सर प्रोफेसर हल्केपन में बात करते हैं कि कैसे ज़्यादा छात्र आने से IIT की गुणवत्ता पर बुरा प्रभाव पड़ा है।

डिसेबल्ड स्टूडेंट्स के लिए अलग पड़ने की प्रक्रिया शुरू हो जाती है कैंपस सुविधाओं के अभाव से। अग्रवाल दावा करते हैं कि संस्था ने दो साल पहले हुए एक्सिसिबिलिटी ऑडिट पर एक्शन लिया है लेकिन वो ये नहीं बता पाते कि सुनने या देखने में अक्षम स्टूडेंट्स के लिए क्लासरूम में क्या सुविधा है।

IIT रुड़की के असोसिएट प्रोफेसर और सुगम भारत अभियान के एक्सेस ऑडिटर गौरव रहेजा बताते हैं कि करीब दो साल पहले, मैं  IIT कानपुर की लाइब्रेरी गया था, हालांकि काफी दिलचस्प जगह है वो लेकिन डिसेबल्ड लोगों के वहां तक पहुंचने की कोई सुविधा नहीं है। लगभग यही हाल वहां के लेक्चर हॉल और हॉस्टल का भी है। गौतम ने यह कहते हुए स्पष्ट किया कि उनके कॉमेंट को संस्था का आधिकारिक बयान ना समझा जाए।

IIT मद्रास में अंबेडकर पेरियार स्टडी सर्कल पर लगे बैन का उदहारण देते हुए गौतम बताते हैं कि भेदभाव और अलगाव के अलावा, लगभग सभी IIT कॉलेजेस, जाति पर किसी भी प्रकार की किसी भी चर्चा से बचते हैं। हेनरी को इस बात का अंदाज़ा तब हुआ जब उनके रिसर्च को संस्था ने बीच में रोक दिया। हेनरी शक जताती हैं कि हो सकता है कि ऐसा इसलिए किया गया क्योंकि उन्होंने रोहित वेमुला के आत्महत्या को लेकर आयोजित एक चर्चा में हिस्सा लिया था।

जातिगत आधार पर काम का बंटवारा

जाति के आधार पर होने वाले भेदभाव का स्टूडेंट्स पर असर तब और बढ़ जाता है जब उनके पास उनके समुदाय से कोई शिक्षक नहीं होते। 2012-13 से लेकर 2015-16 की वार्षिक रिपोर्ट में कहा गया है कि शिक्षकों की संख्या तो 348 से 394 हो गई लेकिन SC समुदाय के शिक्षकों की संख्या 2 से 3 के बीच ही रही जबकि ST और OBC शिक्षकों की संख्या 0 ही रही। टेबल 2 देखें।

आंकड़ें बेहद निराश करने वाले और कम हैं ये मानते हुए अग्रवाल दावा करते हैं कि ऐसा इसलिए है क्योंकि बहुत से प्रोफेसर्स अपने नाम के आगे किसी तरह का लेबल नहीं चाहते हैं और इसलिए वो जेनरल कैटगरी से अप्लाय करते हैं। ”इसलिए जो नंबर्स नज़र आते हैं वो सिर्फ उन लोगों के हैं जिन्होंने अपने फॉर्म में घोषित किया है कि वो किस समुदाय से आते हैं।”

राष्ट्रीय दलित मानवाधिकार की नैशनल कॉर्टिनेटर बीना पल्लिकल बताती हैं कि ये बात बिल्कुल वैसी ही है कि आप खाली कुर्सी दिखाकर कहते हैं कि हम तो नियुक्ति में सबको बराबरी का मौका दे रहे हैं। संस्था उन सीट्स को भरने के लिए उपयुक्त लोगों को क्यों नहीं ढूंढती? वो बताती हैं कि यह उनके मैंडेट का हिस्सा है कि उन्हें ये सीट्स भरने हैं।

उदाहरण के तौर पर अगर नॉन एकैडमिट स्टाफ की बात करें तो संस्था को उपयुक्त कैंडिडेट ढूंढने में कोई परेशानी नहीं होती। नॉन एकैडमिक स्टाफ में SC, ST और OBC कर्मचारियों की संख्या तय संख्या के लगभग बराबर है। टेबल 3 देखें।

स्थिति में सुधार लाने वाली कदमों की कमी

इतना तो साफ है कि सरकार द्वारा बनाई गई आरक्षण की नीति सभी समुदाय के लोगों को एडमिशन तो दिला देती है, पर यह कैंपस उस अनेकता को बरक़रार रखने का समुचित प्रयास नहीं करता।

हालांकि डायरेक्टर अग्रवाल ने दावा तो किया कि कैंपस में SC/ST/OBC/PwD सेल मौजूद हैं लेकिन सच्चाई यही है कि अगर कोई स्टूडेंट को सेल से संपर्क करना हो तो उन्हें कुछ नहीं पता चलेगा कि किससे और कैसे बात की जाए। कॉलेज की वेबसाइट पर इस सेल का कोई ज़िक्र नहीं है, जैसे की महिला सेल या इंस्टिट्यूट कौन्सेल्लिंग सेंटर का है। इस तरह की किसी भी सेल का वजूद का रिकॉर्ड सिर्फ और सिर्फ सिर्फ और सिर्फ IIT कानपुर की वार्षिक रिपोर्ट्स में मिलता है, और यह सेल भी 2015-16 से पहले सिर्फ SC/ST/OBC सेल था।

कई मौकों पर जब स्टूडेंट्स ने मदद की मांग की है संस्था ने अपने हाथ खड़े कर दिए हैं। उदाहरण के तौर पर, जब एक चुनी हुई स्टूडेंट बॉडी ने सेनेट अंडरग्रैजुएट कमेटी (SUGC) से शैक्षिक रूप से पिछड़े स्टूडेंट्स की मदद के लिए कोई प्रोग्राम चलाने की बात कही तो SUGC ने अक्टूबर 2015 में मामले को देखने के लिए एक अलग कमेटी का गठन किया। ध्यान रहे कि SUGC ही कैंपस की शैक्षणिक नीतियां बनाता है।

जुलाई 2016 की SUGC की एक मीटिंग की डीटेल से पता चलता है कि इस कमेटी ने ये माना कि ऐसे किसी प्रोग्राम की ज़रूरत है। लेकिन जो महत्वपूर्ण मांगें थी जैसे गर्मियों में एक विशेष सत्र की, उसे कमिटी ने ये कहते हुए खारिज कर दिया की ये संस्थान के डिपार्टमेंट्स को मंज़ूर नहीं है। इसकी वजह बताई गई शैक्षिक रूप से पिछड़ें स्टूडेंट्स में रूची की कमी और पर्याप्त शिक्षकों का ना होना।

मौजूदा मेंटरशिप प्रोग्राम से भी सारे स्टूडेंट्स संतुष्ट नहीं हैं। गौतम जो खुद भी IIT कानपुर में एकैडमिक प्रोबेशन पर थे, बताते हैं ”इस प्रोग्राम के पीछे एक ही मकसद नज़र आता है स्टूडेंट्स पर नज़र बनाए रखना ताकि वो खुदकुशी ना करें।”  गौतम आगे बताते हैं कि उन्हें बहुत समय बाद ही ये पता चल सका कि जो मदद उन्हें असल में चाहिए थी वो थी “कोटे से एडमिशन” के तमगे से छुटकारा।

रिज़र्वेशन से इतर

पिछले 5 साल में IIT कानपुर में एकैडमिक प्रोबेशन पर रहे 3 पूर्व स्टूडेंट्स ने YKA को बताया कि IIT से पहले की गई स्कूलिंग SC/ST/OBC या डिसेबल्ड स्टूडेंट्स के लिए संस्था का माहौल चुनौतिपूर्ण बना देती है। एक्टिविस्ट्स का कहना है कि समस्या यह है कि IIT कानपुर इस चुनौती को सुलझाने के बजाए लगातार बनाए हुए है।

रहेजा कहते हैं मैं चाहता हूं कि ”IIT कॉलेजेस देशभर की संस्थाओं के लिए एक रोल मॉडल बनकर उभरे ना कि ये रवैय्या अपनाए कि हमने इतना कर दिया है यह बहुत है अब हमारी तारीफ करिए। ” रहेजा बताते हैं कि IIT कॉलेजेस को कैंपस को और भी सार्वभौमिक बनाने के प्रयास करते रहने चाहिए, ना कि रिज़र्वेशन को एक बहाना बताकर हाथ खड़े कर देने चाहिए।

जबतक IIT कानपुर इन कदमों पर अमल नहीं करता तब तक यह अपने लगभग उन आधे स्टूडेंट्स के लिए एक दुर्गम संस्था बनी रहेगी जो रिज़र्वेशन के तहत कैंपस में एडमिशन पाते हैं।

*परिवर्तित नाम

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फोटो आभार: मनीष अग्निहोत्री/The India Today Group/गेटी इमेज

हिंदी अनुवाद : प्रशांत झा 
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