कभी लिंगानुपात के मामले में सबसे बदनाम राज्य हरियाणा आज अपनी छोरियों की वजह से पूरे विश्व मे सम्मान का पात्र बन गया है। देश के हर हिस्से में बस हरियाणा की छोरियों की ही चर्चा है। साक्षी मालिक से लेकर गीता-बबीता और अब 17 साल बाद विश्वसुंदरी का ताज वापस लाने वाली मानुषी छिल्लर ने हरियाणा की अवधारणा को बदल कर रख दिया। यहां की बेटियां अब दुनिया मे भारत की पहचान बन गई है। जब मानुषी ने विश्वसुंदरी का ताज पहना तो मानो हरियाणा की सभी लड़कियों के खुशियों को ताज मिल गया हो। बेटियों की कब्रगाह के रूप में बदनाम झज्जर अब घर-घर मे मानुषी की चाह रखने लगा है।
जनगणना 2011 के आंकड़ों के बाद 2013 में एक ऐसा वक़्त आया था जब झज्जर जिले का लिंगानुपात गिरकर 758 पर जा पहुंचा था। यह आंकड़ा पूरे देश के लिए एक सदमे के समान था, इसने लैंगिग विषमता, भ्रूण हत्या और लड़कियों से भेदभाव के मामले में हरियाणा की एक बेहद नकारात्मक छवि पूरे देश मे बना दी। आंकड़े से सबक लेते हुए सरकार ने जगरुकता फैलाई और तमाम प्रयासों के बाद 2014 में ये आंकड़ा 825 पर पहुंचा, 2015 में 849 और 2016 में लिंगानुपात बढ़कर 885 हो गया। मौजूदा स्थिति यह है कि यह आंकड़ा 924 पर जा पहुँचा है जो काफी सुकूनदायक है, किंतु अभी और प्रयास किये जाने है और इसे 950 करने का टारगेट रखा गया है।
बेटियों को लेकर बेहतर होती इस आबोहवा को अगर किसी ने तेज़ी दी है तो वो खुद बेटियों ने अपने सफलता से ही दी है। उनकी सफलता ने ही लोगों के माइंडसेट को बदलने का काम किया है और हमारी बेटियों ने दिखा दिया कि ‘छोरियां, छोरों से कौनो कम हैं के?’ ज्यों-ज्यों बेटियां फलक पर चमकी, त्यों-त्यों लोगों को गलती का एहसास होता गया। आज हमारी बेटियां सुखोई जैसे लड़ाकू विमानों को उड़ाने तक में सक्षम हैं। वो परिवार के साथ-साथ कारोबार भी बखूबी संभाल रही हैं, देश की सरकार में विदेश मंत्री या रक्षा मंत्री जैसे पदों को महिलाएं ना केवल बखूबी संभाल रही हैं बल्कि बहुत बढ़िया प्रदर्शन भी कर रही हैं।
2015 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ का जो नारा दिया उसके बाद से हालात तेज़ी से बदले हैं और लोग बेटियों पर भी बेटों के समान ही भरोसा रख रहे हैं और उन्हें आगे बढ़ा रहे हैं। लेकिन आज भी महिलाओं के प्रति समाज मे कई समस्याएं हैं जो उन्हें आगे बढ़ने से रोक रही हैं। खासतौर पर बलात्कार जैसी समस्याएं महिलाओं के आगे बढ़ने में बहुत बड़ी रुकावट है जो न सिर्फ महिलाओं बल्कि उनके परिवार को भी डर के साए में रखती है और इस डर की वजह से वो आगे नही बढ़ पाती हैं। ज़रूरत है हमें उनके लिए एक बेहतर और सहयोगी माहौल बनाने की ताकि वो अपना शत प्रतिशत योगदान समाज और देश को दे सकें। जिस समाज की महिलाएं सशक्त होती हैं वो समाज ही विकास की सही अवधारणा को परिभाषित करता है।