#Fear #mujhe_darr_lgta_hai
मुझे डर लगता है! हां ,मुझे डर लगता है, कभी कभी तो इस बात से भी ,कि मुझे क्यूँ इतना डर लगता है?
ये कोई नयी बात तो नहीं है…
सच्, एक डर सच हो जाने पर ,कितने डर संग दे जाता है!
हर लड़खड़ाते कदम के साथ, गिर जाने का डर |
नई कोशिश, नए अनुभव को अपनाने का डर।
कुछ खो देने का डर, यहाँ तक की कुछ पा लेने का डर…
तो सबके अपने डर होते होंगे….कुछ कम, कुछ ज़्यादा, कुछ वाजिब, कुछ यूं ही मेरी तरह।
तो मुझे वो लोग शायद अब तक मिले नहीं, जिनके डर मेरे जैसे हैं| हाँ ,कुछ चेहरे हैं पहचाने से, हाथ बढ़ाकर मिलते हैं, पर समझ नहीं पाते मुझको, किस बात से इतना डरती हूँ।
कुछ खो देने का डर तो समझ आता है, मगर ,कुछ पा लेने पर भी जो डर साथ न छोड़े उसे क्या नाम दें!
क्या ये हमेशा यूं ही रहेगा?हर हँसी के साथ, हर ख़ुशी के साथ ! नहीं ….मैं इसके बिना जीना चाहती हूँ…
मगर बस यही है ,जो मेरी तन्हाई बर्दाश्त नहीं कर सकता,
न मुझे एक पल के लिए अकेला छोड़ता है…ना हमेशा के लिए छोड़कर जाता है….!
खुद को समझने बैठी हूँ आज ….पाया कि, कुछ वक़्त अपने डर को समझने में, कुछ वक्त उस पर जीत हासिल करने में गया…मगर ये क्या?
ये तो अब भी उतना ही है…हर नए पल की तरह नया..
तो शायद ज़िन्दगी इससे लड़ते हुए ही गुज़रेगी, यानी खुद से !
अब में किसी को कुछ समझाना नहीं चाहती ….न ही कोशिश करना चाहती हूँ, अब तो चाहती हूँ बस इतना, ना कुछ खो देने का डर, ना कुछ पा लेने का डर..!
डबडबाई आँखों में नमी के साथ कुछ एहसास, कुछ सवालों के जवाब भी आते हैं, जिनको आवाज़ नहीं मिलती …,वो बातें जो कहने की इजाज़त खुद से नहीं मिलती! वो नमी शायद दुनिया के लिए बेमतलब है।लेकिन अगर पाना है कोई जवाब ,तो वहीँ ढूँढना होगा।
जितना डर सच है,उतना ही उसका कारण भी, हाँ…. कारण तो होता ही है।
मैं जानती हूँ, समझती हूँ।
शायद तुम नहीं जानते….हाँ ,तुम्।
अभी तो तुमसे मिली हूँ… ज़रा सा समय तो गुज़रा है…
अपनी आँखों से मुझे ये एहसास मत दिलाओ कि मैं अलग हूँ , मेरी तुलना मत करो।मुझे मेरे बारे में वो सब मत बताओ,जो मैं जानती हूँ…मैं अपने बारे में जानती हूँ ….शायद, तुमसे बेह्तर।
मैं जहां से उठकर आ रही हूँ ,तुम वहां कभी नहीं गये…
जो चोट कभी लगी न हो, उसका दर्द पहेली होता है…होगा ही, तुम्हारे लिये!!!!
#inner_voice