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सत्यजीत रे की लिखी वो स्क्रिप्ट जो कभी फिल्म नहीं बन पाई

सत्यजित रे की पंडित रवि शंकर को श्रद्धांजलि में लिखी किताब कभी आपकी आंखों से गुज़री क्या? इसे कभी डाक्यूमेंट्री का रूप लेना था लेकिन अफसोस कि सत्यजित के इस काम ने अब तक दिन का उजाला नहीं देखा। लेकिन व्यक्तिगत विरासत के रूप में उसका महत्त्व कायम था। माणिक दा (सत्यजीत रे का दूसरा नाम) ने इस पटकथा को ‘रवि शंकर का सितार वादन’ शीर्षक दिया था। दोनों ‘पाथेर पांचली’ व उसकी बाद की फिल्मों के साथ एक मंच पर आए थे। बत्तीस पन्नों की इस  दृश्यात्मक कहानी (स्टोरीबोर्ड) ने एक उम्दा किताब की शक्ल ली।

ये पुस्तक ‘सत्यजित रे के रविशंकर’ शीर्षक से प्रकाशित हुई। यहां सितार वादक से जुड़े आलेख व साक्षात्कार भी संकलित हैं। पंडित रवि शंकर का साक्षात्कार पाठकों को बहुत पसंद आएगा। रवि शंकर व सत्यजीत रे की दुर्लभ तस्वीरें भी यहां देखने को मिलेगी। सत्यजीत ने इस अधूरी चलचित्र परियोजना के बारे में कभी किसी से चर्चा नहीं की, ना ही कहीं उल्लेख किया कि इसका फिल्मांकन पूरा क्यों नहीं कर सके ? शायद इसे उन्होंने पचास के उत्तरार्ध में किया था। पेंटिंग का प्रारूप व उसमें इस्तेमाल हुए रंग संकेत करते हैं कि यह दृश्यात्मक कथा ‘पाथेर पांचाली’ के आसपास लिखी गई थी। यह इसलिए भी क्योंकि ‘पाथेर पांचाली’ के परिचयात्मक पर्चे में भी इसी प्रारूप के रंगों का इस्तेमाल हुआ था। पेंटिंग पर उकेरी गई यह चलचित्र कथा अपने किस्म की अकेली विरासत है।

माणिक दा ने इस काम को बड़ी दिलचस्पी से किया था। उनकी दक्षता के सारे आयाम यहां उपस्थित हैं। सत्यजित रे संस्था ने इस दुर्लभ कृति को एक संग्रहनीय किताब की शक्ल दे दी है। माणिक दा व पंडित रविशंकर के यादगार साथ को देखने-पढ़ने की इच्छा किसे नहीं होगी!  बत्तीस पन्ने की इस किताब में सौ से अधिक रोचक दृश्य फ्रेम संकलित है। कहना ज़रूरी नहीं कि इसे सत्यजित रे की स्मरणीय विरासत माना जाएगा। इन सभी फ्रेमों को तकनीकी परिचायक के तौर पर देखा जा सकता है। इन दृश्यात्मक फ्रेमों की श्रृंखला आंखों के सामने ज़िंदा तस्वीर बना देने में सक्षम है। इस संग्रहनीय किताब के साथ माणिक दा की कहानियों का एक संग्रह भी विमोचन किया गया। चलचित्र विरासत को पुस्तक रूप में निकालने का एक रोचक प्रयास है।

सत्यजित रे की कुछ फिल्मों की स्टोरीबोर्ड को अंग्रेज़ी अनुवाद के साथ लिखा गया है। एक सामारोह में नसिरुद्दीन शाह ने इन किताबों का विमोचन किया। नसिरूद्दीन को ‘सत्यजित रेय स्मृति व्याख्यान’ माला के लिए आमंत्रित किया गया था।

माणिक दा का जन्म 1921 में कलकत्ता के उपेन्द्र किशोर परिवार मे हुआ। पढ़ाई का सिलसिला गांव के विद्यालय से आरंभ हुआ, जहां उन्हें  मातृभाषा बांग्ला में शिक्षा मिली इसके बाद ‘प्रेसीडेंसी कॉलेज’ मे दाखिला लिया, बीए की उपाधि लेकर ‘शांति निकेतन’ चले आए। सत्यजीत कला विभाग के समर्पित विद्यार्थी रहे और शांति निकेतन ने उनके लिए नए द्वार खोल दिए। नंदलाल बोस के सानिध्य मे ‘नक्काशी’ एवं ‘पूर्वोत्तर’ कला प्रशिक्षण ने युवा सत्यजीत को अभिव्यक्ति का अर्थशास्त्र दिया। सांस्कृतिक गतिविधियों के दौरान विद्यार्थी दल के साथ भारत भ्रमण पर निकलने से उन्हें देश की सांस्कृतिक विरासत को जानने-समझने का अवसर मिला।

सन चालीस-बयालिस के आसपास सत्यजीत ने विज्ञापन एजेंसी में करियर शुरू किया। विज्ञापन जगत से अनुभव लेकर रेखांकन अथवा सीनारियो लेखन की ओर गए, पाथेर पांचाली  एवं भारत एक खोज जैसी पुस्तकों का कवर डिज़ाइन किया। इस समय तक सत्यजीत में सिनेमा को लेकर एक गंभीर चिंतन विकसित हो चुका था। वह कॉफी हाऊस में मित्रों से जब भी मिलते, सिनेमा पर विचार-विमर्श किया करते थे।सत्यजित में मानवीय संवेदना और रचनात्मक कल्पना का सुंदर संतुलन रहा। मानवीय संवेदनाओं को लोगों तक पहुंचाने के लिए फिल्मों को माध्यम बनाया।

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