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कमाल यह है कि जहां सेक्स शर्म का विषय है वहां की आबादी डेढ़ अरब है

उसने शर्म, संकोच, हया, नैतिकता, सुशीलता जैसे शब्दों की ओट में खड़े होकर कहा अरे भाई हार्दिक पटेल की सीडी देख आजकल देश के नेता क्या-क्या गुल खिला रहे है। मैंने सोचा कोई लेनदेन होगा या किसी विरोधी नेता के साथ बैठक, लेकिन इस कथित वीडियो में हार्दिक के साथ कोई महिला है और वो दोनों एक अंधेरे कमरे में साथ हैं। धुंधली सी परछाई नज़र आ रही है, विरोध करने जैसा कुछ प्रतीत नहीं होता है। यह कोई बड़ी बात नहीं होनी चाहिए थी बस बात इसलिए बड़ी लग रही है कि इसमें हार्दिक ही क्यों है? कोई चंटू-मंटू होता तो शायद मामला नहीं उठता। मैं संविधान का बड़ा विशेषज्ञ नहीं हूं इसलिए मेरा बहुत छोटा प्रश्न है कि यदि यह अपराध है तो कार्रवाई क्यों नहीं हुई और यदि अपराध नहीं है तो किसी की निजी ज़िंदगी का तमाशा क्यों बनाया गया?

मर्यादा, संस्कार, संस्कृति, समेत अनेकों सामाजिक शब्द इंसान को आचरण के सूक्ष्म धागों में पिरोते हैं, हर किसी की अपनी एक निजी ज़िंदगी होती है उसके कुछ निजी पल होते हैं, हर इंसान की कुछ शारीरिक ज़रूरते भी होती हैं लेकिन इसके लिए देश में सामाजिक और नैतिक विधान है कि विवाह संस्कार ही आपको अपनी जिस्मानी ज़रूरते पूरी करने की इजाज़त देता है। हो सकता है इसी कारण हमारा समाज मौखिक रूप से प्रेम और सेक्स के विरोध में खड़ा सा दिखाई देता है।

वीडियो आने के बाद हार्दिक ने कहा “मैं वीडियो में हूं ही नहीं” और दूसरी बात यह कि बीजेपी ने मेरी निजी ज़िंदगी पर निशाना साधा है’ जब आप है ही नहीं तो निशाने से डर क्यों रहे है और यदि आप हैं तो खुलकर सामने आईये।

आपसे पहले बहुतेरे नेताओं की निजी ज़िंदगी के किस्से इसी भारतीय राजनीति के इतिहास में स्वीकार किये गये हैं। पिछले कुछ सालों से राजनेताओं द्वारा एक दूसरे की निजी ज़िंदगी को मंच पर लाने का जो कार्य हो रहा है उससे नेताओं की राजनीति कितनी मज़बूत होगी कहा नहीं जा सकता पर लोकतंत्र ज़रूर कमज़ोर होगा इसमें कोई दो राय नहीं है।

कहा जा रहा है सीडी में हार्दिक आपत्तिजनक हालत में दिखाई दे रहा है, हो सकता है उसकी वह हालत आपत्तिजनक हो लेकिन आपत्ति किसको है?  क्या देश ने इससे पहले ऐसी सीडी नहीं देखी, पिछले दिनों ही छत्तीसगढ़ के लोक निर्माण मंत्री राजेश मूणत की कथित सेक्स सीडी की बात सामने आई थी। इस मामले में अभी तक पत्रकार विनोद वर्मा सलाखों के पीछे हैं। राजनेताओं के सेक्स स्कैंडल सामने आने का एक लम्बा इतिहास रहा है, कई बार तो बड़े-बड़े पद, यहां तक की सरकार भी दांव पर लग गई इस बार इसमें नया क्या है? आप नेता संदीप कुमार रहे हों, गोपाल कांडा, साल 2013 में मध्यप्रदेश में पूर्व वित्त मंत्री राघव भाई इस मामले से दो चार हुए थे। 2009 में नारायण दत्त तिवारी, साल 2012 में कांग्रेस के प्रवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी की भी ऐसी क्लिप्स सामने आई थी।

आखिर क्या होता है इन वीडियो में? जो मीडिया इन पर बहस करता है, नेता आरोप-प्रत्यारोप करते हैं, यही बस किसी के अन्तरंग पल, जिसमें एक वो इंसान होता है जिसे हम जानते हैं अपने लिए कुछ उम्मीद रखते हैं और वो इंसान किसी के साथ यौन संबंध स्थापित कर रहा होता है? इसके बाद लोग अपनी क्षमता अनुसार उसका विरोध  करते हैं पर दिल पर हाथ रखकर कितने लोग मानते है कि यह बहुत बड़ा पाप है?

हां, इन सीडी कांड से राजनीति और मीडिया को चटपटा मसाला ज़रूर मिल जाता है। भुखमरी में हम भले ही 100 वें स्थान पर हो,  कुपोषण का दर 55 प्रतिशत हो, भले ही यहां हर साल 12 हज़ार किसान आत्महत्या कर रहे हों, ये चीज़ें हमें अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर शर्मशार नहीं करती हैं। लेकिन अमेरिका और इंग्लैंड के बाद दुनिया का तीसरा सबसे ज़्यादा पॉर्न देखने वाला देश भारत है। कुछ लोग चाहें तो इस बात पर गर्व कर सकते हैं।

जिन लोगों को आज देश में बेरोज़गारी, भूख से मरते लोग, कुपोषण के शिकार बच्चें, असुरक्षित महिलाएं, धुएं में डूबते बड़े शहर, आत्महत्या करते किसान देखने चाहिए थे वो आजकल हार्दिक पटेल की सीडी देखकर आक्रामक हो रहे हैं तो इससे बड़ा देश का दुर्भाग्य भला क्या हो सकता है? हालांकि अतुल्य भारत में देखने को बहुत कुछ है लेकिन लोग अपनी-अपनी राजनीतिक और शारीरिक ज़रूरत के हिसाब से ही तो सब कुछ देखते हैं ना?

अंत में मामले को यूं भी समझ सकते हैं कि एक नौजवान लड़का जो जाति आधारित राजनीति के सहारे सत्ता की सीढ़ी अभी चढ़ने जा रहा है यह उसके अंतरंग पलों का चलचित्र है, जिसे नैतिकता के चश्में से देखा जा रहा है और भारतीय समाज में इसका विरोध हो रहा है क्योंकि हमारे देश में सेक्स की कोई जगह है ही नहीं। हम तो बस कुछ यूंही जैसे-तैसे डेढ़ अरब हो गये।

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