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मेरे बचपन के साथ ही मेरे गांव का वो सारंगीवाला और उसकी प्यारी सी धुन भी कहीं खो गई है

आप में से बहुत लोग होंगे जिनके बचपने की एक याद में ये भी शामिल होगा, जिसका मैं ज़िक्र करने जा रहा हूं। अगर याद हो तो दोपहर में अचानक से एक मधुर सी मनमोहक आवाज़ कानों तक पहुंचती थी और धीरे-धीरे पास आ जाती थी। एक ऐसी आवाज़ जिसको सुनकर आप दौड़े चले जाते थे उसे खोजने।

फिर सामने दिखता था झोले और कम्बल के साथ सारंगी लिए एक व्यक्ति जो किसी मंझे हुए संगीतकार की तरह अपनी सारंगी पर हाथ फेरते हुए प्यारी सी धुन बजाता था।

फिर आप उससे जो चाहे धुन बजवाना चाहें वो बजाता था। इतना ही नहीं, मुझे याद है कि हम लोग सिर्फ गाना ही नहीं सारंगी वाले से कोई भी बात कहते तो वह सारंगी से वो बात कहलवाता था। मेरे गांव में बच्चे सारंगी से ये बात कहलवाते थे -कहो सारंगी माठा (छाछ) पियोगी? और इसके जवाब में सारंगी प्यार से हां में जवाब देती।

बचपन के दिनों के खेल में एक यह खेल भी शामिल हुआ करता था, बार-बार एक ही बात कहलवाने पर ना वो सारंगीवाला खीझता था और ना ही सारंगी मना करती थी। जब सारंगीवाला सारंगी बजाते-बजाते अपनी धुन में खो जाता था तो उस समय सारंगी की धुन मन में उतर जाती थी।

सारंगीवाला घर-घर जाकर सारंगी बजाता और बजाकर कुछ देर खड़ा रहता। अगर किसी ने कुछ खाने को दिया तो खा लिया, किसी ने दाल, आटा, चावल, आलू जो कुछ भी दिया वो बिना कुछ कहे ले लेता था। अगर कोई ना भी दे तो चुपचाप चला जाता, वो कोई शिकायत नहीं करता था। लेकिन अगली बार जब वो फिर आता तो उसी प्रेम से सारंगी बजाता हर दरवाज़े पर, जहां से कुछ मिला हो और जहां से नहीं मिला वहां भी।

कई बार ऐसा होता था कि कई दिन बीत जाने के बाद भी सारंगीवाला नहीं आता था तो हम लोग सोचने लगते कि क्यों नहीं आया, कहां चला गया, अब नहीं आएगा क्या? पता नहीं क्यों लेकिन थोड़ा अजीब सा लगता और मन में सवाल आता कि अगर अब वो नहीं आया तो? फिर सारंगी से कैसे पूछेंगे की माठा पियोगी कि नहीं?

एक आदत सी लग गई थी सारंगी और सारंगी वाले की। लेकिन ये तो होना ही था, अचानक से धीरे-धीरे उसका आना कम हो गया और फिर धीरे धीरे बंद ही हो गया। पिछले 8-9 सालों में याद नहीं आता कि कभी सारंगी वाला अपनी सारंगी लिए आया हो उसकी धुन सुनाने।

पता नहीं कहां गया और अब क्यों वापस नहीं आता, क्या अब लोग सारंगी नहीं सुनना चाहते या वक्त नहीं है किसी के पास सारंगी सुनने का? मैं भी धीरे-धीरे भूल गया अपने कामों में मशगूल होकर, आज अचानक से पता नहीं क्यों उसकी याद आ गई और मन किया की पूछूं सारंगी से कि सारंगी माठा पियोगी क्या? काश वो एक बार आकर हां बोल देती अपनी धुन में।

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