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इस दुल्हन को शर्माना नहीं, स्टीरियोटाइप तोड़ना आता है

“लोग क्या कहेंगे, अरे ज़्यादा मत बोलो लोग बातें बनाएंगे…” ये बातें एक दुल्हन को हमेशा ही सुनने को मिलती हैं। शादी के समय तो लड़की से यह पूरी उम्मीद की जाती है कि वो समाज के हिसाब से तथाकथित संस्कारी लड़की का चोला पहन ले। उसे ना ही खुलकर हंसने की इजाज़त होती है और ना ही खुलकर बातें करने की। यहीं से संस्कारी होने का पर्दा उस लड़की के ऊपर ज़बरदस्ती चढ़ा दिया जाता है।

लेकिन, आजकल कुछ लड़कियां इन स्टीरियोटाइप्स को तोड़ते हुए भी दिख रही हैं। अब वो ज़माना बदलता जा रहा है, जब एक दुल्हन की एंट्री सर झुकाए, शर्माते हुए स्लो मोशन में होती थी। अब दुल्हन अपनी एंट्री को भी धमाकेदार बनाना चाहती है, अब वो भी फुल मज़े में नाचते हुए एंट्री मारती है।

मेरी दोस्त (शुभी) की शादी में भी मुझे कुछ ऐसा ही देखने को मिला। मेरे लिए इस दोस्त की शादी इसलिए भी खास और यादगार रही क्योंकि वो समाज के इन स्टीरियोटाइप्स को तोड़ रही थी। उसे अपनी शादी को शर्माते हुए बिताने से ज़्यादा उसे खुलकर एन्जॉय करने में विश्वास था। आपने शायद ही ऐसी किसी दुल्हन को देखा होगा जो अपनी शादी के मंडप पर बैठकर अपने फेवरेट सीरियल की बातें करती हो।

लेकिन, शुभी उन गिनी-चुनी दुल्हनों में से एक है, जो अपनी शादी के मंडप पर भी अपने दूल्हे और अपनी सहेलियों से बोलती है, “यार बिग बॉस छूट गया आज, कल देखना पड़ेगा अब।”

वो मंडप पर बैठकर सेल्फी भी ले रही थी और लोगों को फोटो के लिए पोज़ भी दे रही थी। फेरे लेते समय अपने दूल्हे को प्यार से डांटते हुए कहती है- “क्या कर रहे हो तुम, मेरा लंहगा संभालो।” उसे जयमाला के समय फोटोग्राफर को पोज़ देने से ज़्यादा डांस फ्लोर पर नाचने में विश्वास था। तभी तो वो बार-बार हमें इशारा कर रही थी, “यार मुझे डांस करने के लिए ले चलो।” और जब तक हम उसे डांस फ्लोर पर नहीं ले गए वो बीच-बीच में स्टेज पर ही झूमते हुए दिखती रही। उसने स्टेज पर एंट्री भी च्युइंगम चबाते हुए ली। मैंने एक बार भी उसे स्टेज पर शर्माते नहीं देखा और मुझे इस बात की सबसे ज़्यादा खुशी भी है।

मुझे याद है शादी की सारी रस्म खत्म होने के बाद उसने ज़ोर से कहा था, “अरे यार… शादी हो गई मेरी” और हम सब ज़ोर से हंसने लगे थे। ऐसा करने के लिए भी हिम्मत की ज़रूरत थी, क्योंकि “लोग क्या कहेंगे, दुल्हन कितनी तेज़ है”, ऐसा सोचने वालों की वहां भी तादाद कम नहीं रही होगी। लेकिन, शुभी तो उन सब की फ्रिक ना करते हुए अपनी ज़िन्दगी को अपनी शर्तों पर जीना जानती है।

शादी की सारी रस्म खत्म हो चुकी थी, दूल्हा-दुल्हन हमारे साथ बाहर बैठे हुए थे। ज़ाहिर सी बात है सुबह से ही इन रस्मों रिवाज़ के कारण दोनों भयंकर रूप से थक चुके थे। लेकिन, शुभी पर उस थकान का भी कोई असर नहीं था। अब उसके अंदर एक्साइटमेंट था या कुछ और पता नहीं, लेकिन उसने धारा-प्रवाह बोलना शुरू कर दिया। वो लगातार बोले जा रही थी… कुछ भी… बस उसे बोलना था।

वो हंस रही थी, गप्पे मार रही थी। और हां, उसे ज़्यादा बोलने के एहसास होने पर उसने कई बार कहा भी, “यार मैं इतना क्यों बोल रही हूं” और ऐसा कहने के बाद भी उसका बोलना फिर से शुरू हो जा रहा था। हां, इस बीच उसे कई बार कुछ लोगों ने कहा- “यार ज़्यादा मत बोल, चुप हो जा, लोग बाते बनाएंगे, तू दुल्हन है, तेरा इतना बोलना सही नहीं है, तेरे ससुराल वाले हैं यहां पर….” मगर थैंक्स टू शुभी कि वो इन बातों में विश्वास नहीं रखती है वो ये जानती है, ‘ज़िन्दगी मेरी है और मुझे अपनी दिल की सुनकर इसे को जीना है।’ मुझे इस बात की और भी खुशी है कि उसके पति (अनिल) से भी उसे इन स्टीरियोटाइप्स को तोड़ने में पूरा सहयोग मिल रहा है।

शादी के बाद ज़िन्दगी कितनी बदल जाती है ये तो नहीं पता लेकिन मुझे पूरा विश्वास है मेरी ये दोस्त अपनी ज़िन्दगी को नकारात्मक दिशा की ओर मुड़ने नहीं देगी। आज ऐसी दुल्हनें ही हमारे समाज की बाकी लड़कियों के लिए एक उदाहरण बनकर सामने आ रही हैं, जो औरतों के लिए बनाई गईं तथाकथित परंपराओं और रीति रिवाज़ों को (जिनमें हमेशा औरतों का दम ही घुटता है) तोड़ने में मदद करती हैं।

मैंने ऐसी भी कई शादियां देखी हैं, जहां लड़कियों की शादी के एक सप्ताह पहले ही उसका घर से आना-जाना बंद कर दिया जाता है। और शादी के दो-तीन दिन पहले से तो मानों उसे किसी कैदी की तरह जीवन बिताना पड़ता है। लेकिन, मेरी दोस्त तुम्हें सलाम कि तुमने औरों की नहीं सुनी, तुमने अपने इस खास दिन को अपने अनुसार यादगार बनाया।

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