देश आजाद हुवे 70 साल हो चुके हैं एक सीधा सा सवाल क्या राजनीति में सिर्फ वोट मायने रखते है?
मुद्दा हम सभी के ज़िन्दगी से हटकर है क्योकि हमारे पास तो घर है कुछ लोगो को सिर्फ फुटपाथ मिलती है सोने को,
वो हमसे अलग हैं शायद,,
क्योकि उनका ना आधार कार्ड बनता है ना राशन कार्ड बन भी जाए तो क्या फायदा आधार कार्ड दिखा कर सारा काम हो जाता है लेकिन भूख नहीं मिटती है,
राशन कार्ड से अनाज लेने के भी पैसे लगते है यारो राशन कार्ड दिखाकर भी पेट नहीं भर पाता उनका शायद काहे की पैसे नहीं है,,
कार तो छोड ही दो इनके बच्चे ज़िन्दगी भर एक साइकिल नहीं खरीद पाते, पढाई के लिए स्कूल नहीं है अगर ये स्कूल जायें भी तो क्या करने अगर एक दिन भीख ना मांगे तो चुल्हा नहीं जलता,
किसी सत्ता धारी को इनकी गरीबी नहीं दिखती क्योकि ये वोट देने वाली जनता नहीं है ये तो समाज के वो कीड़े है ज़िनका कुछ नहीं हो सकता शायद,,
मैने कीड़ा क्यूँ बोला पता है ना?
ज़िन्दगी गुजर जाती है इनकी लेकिन कोई त्योहार नहीं ना कोई जश्न इनके यहाँ लड़कियों की शादी नहीं होती जो थोड़ा खूबसूरत होती है उन्हे वैश्यावृती में धकेल दिया जाता है ये बोलकर की तेरे घर वाले को खाना मिलेगा,,
ये सच है और कड़वा भी रेल,मेट्रो,बुलेट,स्मार्ट सिटी,सड़क,सौचालय,बससेवा,आवास योजना कुछ नहीं है इनके लिए,,
सुबह की शुरूवात होती है रोज की तरह भूखे पेट निकल ज़ाते है भीख मांगने अगर कुछ मिला तो खाया नहीं तो भूखे ही दिन निकल जाता है,
दिन भर भगवान को भी याद करते लेकिन वो ऊपर वाला भी उनकी सुनता है जो पहले से मजबूत है,,
कब कोई नेता इनके लिए भी बजट पेश करवायेगा घर ना देना कम से कम इतना कर सकते हो ज़ितना पैसा दुश्मन देश की आपदा के लिए खर्च कर देते हो पार्क,चौराहा पर मूर्ती लगवाने, धार्मिक स्थल बनवाने में खर्च करते हो,
एक निशुल्क भोजनालय क्यूँ नहीं खोल देते काम इनसे ही ले लेना कोई बात नहीं,
लेकिन
देश का कोई भी गरीब जब भूख और प्यास से मरता है कोई औरत अपना देह बेचती ही सिर्फ दो वक़्त की रोटी कमाने के लिए बड़ा दुख होता है जब कोई बच्चा सिगनल पर भीख मांगते या कुछ बेचते नजर आता है,,
क्या लिखूँ और क्यूँ लिखूँ मै बता दो मुझे,
बस यही कहता हूँ ये भी एक सच्चाई है अपने देश की और ये भी भारत के ही रहने वाले है|
आपका राहुल देव