राजस्थान में मोहम्मद अफराजुल की निर्शंस हत्या की गई, हत्यारे शम्भू लाल रैगर द्वारा न सिर्फ हत्या की बल्कि हत्या का वीडियो बनाकर उसे भड़काऊ और नफरत फ़ैलाने वाले भाषण के साथ वायरल भी किया। पूरे देश में इस घटना पर तीखी प्रतिक्रिया हुई। हर वो व्यक्ति जो देश में एकता और सद्धभावना का पक्षधर है उसने इस घटना को गलत माना लेकिन देश में बहुत से लोग ऐसे भी हैं जो इस घटना को सही ठहरने की कोशिश भी कर रहे हैं। देश में पिछले कुछ समय से एक अजीब सा माहौल बनता जा रहा है। हर महीने कुछ ऐसी ख़बरें सुनने-पड़ने को मिल रही हैं जिसमे देश में कहीं भी भीड़ द्वारा एक बेगुनाह की इंसान पीट पीटकर हत्या कर दी जाती है। और ये एक दो घटनायें नहीं हैं बल्कि लगातार एक सिलसिला सा चला आ रहा है। कहीं वो उत्तर प्रदेश का अख़लाक़ है, कहीं महाराष्ट्र में मोहसिन शैख़, कहीं राजस्थान में पहलू खान, हाल ही में ट्रैन में जुनेद खान की हत्या कर दी गई। कभी गौतस्करी के नाम पर तो कभी बच्चा चोरी के नाम पर मासूम और बेगुनाह लोगों बेदर्दी से मारा जा रहा है। राजस्थान में ज़फर खान की पीट पीटकर हत्या सिर्फ इसलिए कर दी गई क्योंकि उन्होंने कुछ लोगो को महिलाओं की तस्वीर लेने से रोका था। इससे पहले चमड़े का काम करने वालो दलितों के साथ बेदर्दी से मारपीट की गई थी। कुछ दिन पहले कश्मीर में पुलिस अधिकारी अय्यूब पंडित भी हत्यारी भीड़ का शिकार बने। ये सिर्फ कुछ ही हत्याएं हैं जिनका ज़िक्र किया गया है इनके अलावा भी बहुत सी हत्याएं इसी तरह भीड़ द्वारा की जा चुकी हैं। भीड़ द्वारा ये हत्याएं और आतंक लगातार बढ़ता ही जा रहा है न सरकार और न ही पुलिस का इस पर कोई नियंत्रण है। कुछ घटनाओं में सरकार सिर्फ निंदा कर देती है कुछ दिनों के बाद फिर से ऐसी ही कोई नई खबर आ जाती है। 28 जून को झारखण्ड में बुज़ुर्ग उस्मान अंसारी भी गोरक्षा के लिए इंसान की हत्या के लिए तैयार हत्यारी भीड़ का शिकार बने। इस खून की प्यासी भीड़ को न तो कानून का डर है, न सरकार का। खून की प्यासी भीड़ में शामिल लोगों के हौसले इतने बुलंद हैं की बहुत सी घटनाओं में तो खुद हत्यारे ही हत्या का वीडियो बनाकर सोशल मीडिया पर शेयर कर रहे हैं। इस हत्यारी भीड़ का शिकार हुए नाम लोगों के नाम लिखना शुरू करें तो एक लम्बी लिस्ट बन जाएगी और ये संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। आखिर ये भीड़ खून की प्यासी क्यों है ? क्यों खासतौर पर एक मुस्लिम और दलितों को ही बार बार निशाना बनाया जा रहा है ? इस भीड़ को कानून का डर नहीं है। सरकार का डर नहीं है।
आमतौर पर भीड़ को एक असंगठित लोगों का समूह माना जाता है। ऐसा समूह जिसका कोई नेतृत्व नहीं होता, न ही कोई पूर्व निर्धारित लक्ष्य होता है। आमतौर ऐसी पर भीड़ किसी घटना की त्वरित प्रतिक्रिया में इकट्ठी होती है। जैसे की सड़क पर कोई एक्सीडेंट या ऐसी ही कोई अन्य असाधारण घटना। ऐसी स्थिति में घटनास्थल पर मौजूद लोग भीड़ के रूप जमा हो जाते हैं। लेकिन लगातार ये जो हत्याएं हो रही रही हैं इन हत्याओं को करने वाली भीड़ उस आम भीड़ से काफी अलग है। इस भीड़ के पास के पास अप्रत्यक्ष नेतृत्व भी है। हत्या करने का पूर्व निर्धारित लक्ष्य भी है। ये भीड़ अचानक हुई किसी असाधारण घटना की त्वरित प्रतिक्रिया के रूप में इकठ्ठी नहीं होती बल्कि इसे पूर्व नियोजित लक्ष्य के तहत इकठ्ठा किया जाता है। सोशल मीडिया (फेसबुक, ट्विटर, व्हाट्सप्प आदि), विभिन्न कार्यक्रमों, भाषणों आदि के माध्यम से लोगों को भड़काकर और उकसाकर उनका ब्रेनवाश किया जा रहा है। लोगों को झूठे ऐतिहासिक तथ्य, धर्म और पुरानी घटनाओं के बारे में बताकर मानसिक रूप से ऐसा करने के लिए तैयार किया जा रहा है। सरकार सिर्फ निंदा करके अपनी ज़िम्मेदारी पूरी समझ लेती है। सिर्फ निंदा करने से काम नहीं चलेगा सरकार को कड़े क़दम उठाने होंगे
एक तरफ बहुत से लोगों का इस तरह की हत्याओं को मूक समर्थन भी है वहीँ दूसरी और देश को जोड़ने और देश की गंगा जमुनी संस्कृति को बचाने के लिए देश के अमनपसंद लोग इन हत्याओं के विरोध में आवाज़ उठा रहे हैं। इन हत्याओं के विरोध में मुसलमानो ने ईद के दिन काली पट्टी बांधकर शांतिपूर्वक अपना विरोध जताया। इस अभियान में मुसलमानो के अलावा पूए देश अन्य धर्मों के लोगों ने भी काली पट्टी बांधकर अभियान का समर्थन किया। 28 जून को देश में दिल्ली और कई अन्य शहरों में Not in My Name के बैनर के साथ विरोध प्रदर्शन किया गया। इस प्रदर्शन में बड़ी संख्या में अमनपसंद लोग शामिल हुए और हत्यारी भीड़ के खिलाफ अपना शांतिपूर्वक विरोध प्रदर्शित किया। इस प्रदर्शन के ज़रिये not in my name से मतलब यह बताना है की ये हिंसा ”मेरे नाम पर नहीं” लोगों ने सड़क से लेकर सोशल मीडिया तक Not in My Name अभियान में हिस्सा लिया। देश को नफरत की आग में जलने से बचाने के लिए इस तरह के अभियानों की बहुत ज़रूरत है। ऐसे अभियानों के ज़रिये सरकार पर ठोस क़दम उठाने के लिए दबाव बनाना होगा। इस देशव्यापी अभियान का यह असर हुआ की में प्रधानमंत्री ने अपने भाषण गौरक्षा का नाम पर होने वाली हत्याओं को गलत बताया है। जिस दिन प्रधानमंत्री ने भाषण दिया उसी दिन झारखण्ड में गौरक्षा के नाम पर एक और हत्या कर दी गई। खून के प्यासे हत्यारे लोग अब बेकाबू हो चुके हैं, सिर्फ भाषण से काम नहीं होगा सरकार को ऐसे लोगों संगठनो के खिलाफ ठोस कारवाही करनी होगी। भारत को दुनिया गांधीजी के अहिंसावादी देश के रूप में जानती है। देश का इतिहास गौरवमयी रहा है। देश में हिन्दू मुस्लिम सदियों से मिल जुलकर रहते आये हैं। देश की आज़ादी की लड़ाई में हिन्दू मुसलमानों ने कंधे से कन्धा मिलाकर हिस्सा लिया है, मिलजुलकर देश को आज़ादी दिलाई है। राजनीती और धर्म के नाम पर लोगों के बीच जो दीवार खड़ी करने की जो कोशिश की जा रही है सबको मिलकर उसे तोडना होगा। देश में बेगुनाहों पर हो रहे ज़ुल्म के खिलाफ सबको एकजुट होकर आवाज़ उठानी होगी, तभी हम अपने सपनों का भारत बना पाएंगे।
शहाब ख़ान
Youth Ki Awaaz is an open platform where anybody can publish. This post does not necessarily represent the platform's views and opinions.
Get Started
Do more with Youth Ki Awaaz: Sign up to comment, login to share a story, reach a community that cares, take part in campaigns and more.
If you sign up with Google, Twitter or Facebook, we'll automatically import your bio which you will be able to edit/change after logging in. Also, we'll never post to Twitter or Facebook without your permission. We take privacy very seriously. For more info, please see Terms.