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“कौशल भारत का कौशल तो स्कूल में ही खत्म कर दिया जाता है”

क्या कभी आपके साथ स्कूल में ऐसा हुआ कि आप एक किताब नहीं लाए और उस वजह से आपको बहुत डांट लगाई गई हो या फिर पिटाई की गई हो या फिर कक्षा से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया हो? मेरे साथ ऐसा काफी बार हुआ है।

शिक्षक के किताब न लाने के प्रति ऐसे रवैये से ये बात साफ हो जाती है कि हमारे विद्यालय तंत्र में पाठ्यपुस्तक कितनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। पाठ्यपुस्तक का एक एक शब्द बच्चों को रटवा दिया जाता है। परीक्षा के समय पाठ्यपुस्तक हमारे धर्म ग्रंथ बन जाते हैं। तो क्या हम स्कूल में पाठ्यपुस्तक पढ़ने जाते हैं?

अगर हम बच्चों को बोलना सीखा रहे होते तो वे कभी नहीं सीख पाते -विलियम हिल

दरअसल अगर हम हमारे शिक्षा के ढांचे को देखें तो उसमें केंद्र में पाठ्यपुस्तक को रखा गया है। जिसे अगर हमने पढ़ लिया तो समस्त ज्ञान हमारे पास आ जाएगा। शिक्षा के क्षेत्र में हुए अनेक शोध ये बात जाहिर कर चुकें हैं कि शिक्षा के केंद्र में सीखना होना चाहिए जिसके लिए पाठ्यपुस्तक सिर्फ एक जरिया है।

जिसका अर्थ है कि पाठ्यपुस्तक सिर्फ एक सहायक सामग्री है जिसके द्वारा हम बच्चों में कुछ कौशल का विकास करना चाहते हैं। हम स्कूल में पाठ पढ़ने के लिए हमारे बच्चों को भेज रहें है या फिर उनके कौशल विकास के लिए। होशंगाबाद साइंस टीचिंग प्रोग्राम इसका बहुत अच्छा उदाहरण है।

राजस्थान सरकार द्वारा स्कूल में कौशल विकास पर ध्यान देने के लिए SIQE दस्तावेज़ सभी शिक्षकों के लिए जारी किए हैं। जिसमें हर विषय के हर पाठ के साथ बच्चों में किस-किस कौशल का विकास होना चाहिए इसकी पूरी जानकारी दी गई है। साथ ही उन्हें हासिल करने के लिए कौन-कौन सी गतिविधियों की मदद ली जा सकती है इसका भी ब्यौरा दिया गया है।

लेकिन इसके उलट वहां के स्कूलों में चाहे वो प्राइवेट हो सरकारी बच्चे पासबुक नामक यंत्र की मदद से किताब के सभी प्रश्नों के उत्तर जान लेते हैं और शिक्षक खुद बच्चों पर ज़ोर डालते हैं कि वे पासबुक खरीदें। ये काम प्राइवेट स्कूल में सरकारी से और ज़्यादा खतरनाक तरीके से किया जाता है।

जब सरकारी शिक्षकों से इन कौशल पर बात की जाती है वे कहते हैं ये सब गतिविधियां बच्चों की परीक्षा में नहीं आएगी और अगर बच्चों के परीक्षा में अंक अच्छे नही आए तो बड़े अधिकारी हमारे पीछे भागेंगे।

कुछ गांव में खुद अभिभावक शिक्षक को डांट लगा देतें है अगर वो ज़्यादा गतिविधि केंद्रित रहता है। इस सब के बीच बच्चे अपना महत्वपूर्ण समय किताबें रटने में लगा देतें है। हाल तो यह है कि कक्षा 8 के बच्चे कक्षा 2 का कौशल नहीं सीख पाते। उनके रचनात्मक कौशल उनकी अभिव्यक्ति क्षमता को हम किताब रटाने कर चक्कर मे अच्छा तो नहीं कर पाते उल्टा जो कौशल वो घर से सीख के आते हैं हम उनका भी गला घोंट देते हैं। इस सामूहिक कत्ल में समाज का हर वर्ग शामिल है। कौशल भारत मे कौशल तो स्कूल में समाप्त किया जा रहा है। अगर इसके बाद उन्हें कोई ट्रेनिगं दी जा रही है तो वो ढकोसला बंद कीजिये।

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