समाज में भिन्न-भिन्न प्रकार के मनुष्य निवास करते हैं । भारतीय समाज विविधता से भरा पड़ा है । यहाँ पर कई भाषाएँ, बोलियाँ व संस्कृति पाई जाती हैं । स्वतन्त्रता से पहले यहाँ और ज्यादा विविधता थी । यही विविधताएँ मनुष्य को बांटने का कार्य करता है । ऐसा कहा जाता है कि वैदिक काल में भारत में ज्यादा विविधता नहीं थी । सभी मिल कर रहते थे । महिलाओं व बच्चों को पूरा अधिकार था । लेकिन इस बात में कितनी सच्चाई है इसका प्रमाण नहीं मिलता । प्रामाणिक तौर पर जितना इतिहास मिलता है तो उसके आधार पर स्पष्ट तौर पर कह सकते हैं कि भारत में वर्ण व्यवस्था की जड़े थी । स्वतंत्र भारत के पहले दलित वर्ग व पिछड़ा वर्ग को कानूनी अधिकार नहीं प्राप्त थे । भारतीय संविधान आज सभी के लिए समान रूप से कार्य करती है । सभी नागरिकों को समानता का दर्जा देती है । ये सब बाबा साहब की वजह से ही हो पाया ।
आज समाज में बाबा साहब के स्वप्न को सबसे ज्यादा नुकसान आरक्षण से पढ़-लिखकर और नौकरी पाये अधिकारी व अफसरों तथा राजनैतिक आरक्षण के कारण जो लोग सांसद व विधायक बने हैं वे सब किए हैं । उन्होने (बाबा साहब) ये सब आपके लिए किया लेकिन आज स्थिति पूरा उलट है । बाबा साहब के विचारों पर आधारित राष्ट्र का निर्माण करना ही उनके लिए सच्ची श्रद्धांजलि होगी ।
बाबा साहब के विचारों को मानने की पहली कड़ी है “जय भीम” का अभिवादन । कुछ लोग कहते हैं कि “जय भीम” क्यूँ बोलते हो ? क्या मिलता है इससे ? हिन्दू हो तो राम राम क्यूँ नहीं बोलते हो । आदि आदि । तो इसका उत्तर साफ है कि “जय भीम” बोलना किसी की पुजा करने जैसा नहीं है । हमसब उस महामानव के प्रति अपनी कृतज्ञता अर्पित करते हैं जिसने हमें मनुष्य होने का दर्जा दिलवाया, शिक्षा, राजनीति, आदि सभी जगह कानूनी अधिकार दिलवाया । सही मायने में इंसान बनाया । वरना इसके पहले हमारा जीवन क्या था । पशुओं के समान जीवन, जिसे पानी भी पीने का अधिकार नहीं था जिसे पशु पी सकते थे । हमें अछूत बनाया गया । लोग हमें छूने से डरते थे । बीमारी की वजह से न जाने कितनी जिंदगियाँ काल के गाल समा गई होंगी । इस स्थिति में बाबा साहब ने हमें उबारा और इस अमानवीय व्यवहार को गैरकानूनी घोषित किया । जो “जय भीम” नहीं बोलते हैं मैं उनसे पुंछना चाहता हूँ की आप को पढ़ने का, नौकरी करने का, सभी के सामने गर्व से जीने व चलने का अधिकार, महिलाओं को पढ़ने लिखने व नौकरी करने का अधिकार किसने दिलवाया । राजनीतिक सीट को आरक्षित किसने करवाया । क्या आप अपने आपको “सवर्ण” मानते हो तो जाओ पूंछों उन सवर्णों से की बाबा साहब के आने से पूर्व आपकी क्या स्थिति थी उंन सवर्णों के सामने ? आज सभी मिलकार साथ साथ खाना खा लेते हो ये सब बाबा साहब की देंन है । इसके लिए बाबा साहब ने खुद खाना पीना छोडकर हमारे लिए लड़े हैं ।
वास्तव में प्रकृति का नियम है कि जिससे कुछ ग्रहण करो उसे उसकी भरपाई भी करनी चाहिए । वह चाहे जिस रूप में । आज के समय में यदि हमारी कोई छोटी सी मदद भी कर दे तो हम थैंक्स जरूर बोलते हैं । किन्तु बाबा साहब ने हमे एक नई जिंदगी दी । उनका अहसान हमें जिंदगी भर ऋणी रखेगा । बिडम्बना यही है कि लोग उन्हें “जय भीम” बोलकर आभार भी प्रकट करना बेमानी समझते हैं । बाबा से खुद कहा था कि यदि मेरे कार्यों को आगे न ले जा पाना तो वहीं छोड़ देना पीछे मत ले जाना । लेकिन आज स्थिति इसके उलट ही है । लोग आरक्षण का लाभ लेंगे, महिलाएं घर से बाहर जाएंगी, नौकरी करेंगी, प्रेम विवाह करेंगी, आरक्षित सीट पर सांसद, विधायक बनेंगे लेकिन बाबा साहब को नहीं मानेंगे । उन्हें ये नहीं पता होता कि ये सारे अधिकार हमें यूं ही नहीं मिल गए थे । बाबा साहब ने कितना संघर्ष किया था ।
आज महज संयोग है कि बाबा साहब जो पूरे लगन और सामर्थ्य से भारतीय संविधान को लिखा किन्तु उनके समाज के लोग, राजनेता, शिक्षित वर्ग मंदिर और मस्जिद कि तरफ भाग रहे हैं वहीं जिसने सदियों से मंदिर और मस्जिद के नाम पर शूद्रो, पिछड़ों को गुलाम बनाए रखा, वे लोग आज संसद में जा रहे हैं । यहाँ तक संविधान बदलने की बात कर रहे हैं । कटु सत्य यह भी है कि यदि शूद्र और पिछड़े वर्ग के लोगों की यहीं मानसिकता रही तो सच में एक दिन संविधान बदल ही जाएगा । दलितों पिछड़ों का दुर्भाग्य है कि उन्हें ऐसे विधायक और सांसद मिलते हैं जो पार्टी में रहते हुए उत्पीड़न, दमन अथवा आरक्षण को लेकर एक शब्द नहीं बोलते हैं और रामलीला मैदान में “आरक्षण बचाओ रैली” निकालते हैं ।
आज का कुछ युवा वर्ग बाबा साहब को न के बराबर जानते हैं । जानते भी हैं तो सिर्फ साधारण महापुरुष की तरह । दलितों, पिछड़ों, महिलाओं के मुक्तिदाता के रूप में या संविधान निर्माता के रूप में नहीं । आजादी के इतने वर्ष बीत जाने के बाद राजनीति कि दिशा और दशा दोनों निर्धारित हो चुकी है । धीरे-धीरे स्थितियाँ बदल रहीं हैं । भारत के राष्ट्रपिता कहे जाने वाले गांधी जी को लोग छोडकर लोग बाबा साहब की तरफ भाग रहे हैं । सभी राजनीतिक पार्टियां बाबा साहब को साथ लेकर चलने को उत्सुक दिख रहा है । वामपंथ व अन्य सभी दल इनकी ओर झुक रहे हैं । अक्सर कहा जाता था कि 21वीं सदी बाबा साहब की होगी । धीरे धीरे वह सच होता दिखाई दे रहा है ।