Site icon Youth Ki Awaaz

बाबा साहब के मायने — अनीश कुमार ‘अदित्य’

डॉ अम्बेडकर का योगदान महिलाओ के लिए हमेशा ऋणी रहेगा .....(बाबा जयंती 127 वीं पर विशेष) 14 अप्रैल पूरे देश में ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में बड़े ही उत्साह व जुनून से मनाया जाता है। इस वर्ष बाबा साहब की 127 वीं जयंती मनाई जा रही है। दक्षिण भारत से लेकर उत्तर भारत तक और पश्चिम भारत से पूर्वी भारत में डॉ. अंबेडकर जयंती की रौनक देखते ही बनती है। डॉ. अम्बेडकर के कार्यों व चिंतन के बारे में बात करें तो अक्सर बात दलित वर्गों तक आकर, यहाँ तक की बात आरक्षण पर आ कर रुक जाती है। आज़ाद भारत में डॉ. अम्बेडकर को दलितों का मसीहा कहा जाता है। जबकि डॉ. अम्बेडकर के समस्त कार्यो का मूल्यांकन करे तो हम पाएंगे कि वे एक कुशल अर्थशास्त्री, समाजवैज्ञानिक, कानून विशेषज्ञ, मजदूर नेता थे, पत्रकारिता में प्रखर विद्वान् और महिलाओ के अधिकार के चैम्पियन थे। उनके पहले महिलाओं से संबन्धित उन तमाम अधिकार उन्हें प्राप्त नहीं थे जो आज कानून के दम पर मिल रहा है। इसका श्रेय उन्हीं को जाता है। बाबासाहेब ने सविंधान के द्वारा महिलाओं को सारे अधिकार दिए है जो मनुस्मृति ने नकारे थे। हिन्दू धर्मशास्त्रों में महिलाओं का स्थान और नियम-कानून महिलाओं के हक में नहीं हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार स्त्री धन, विद्या और शक्ति की देवी हैं। लेकिन बाबा साहब ने इसे गलत सिद्ध करते हुए महिला विषयक कानून बनाए। डा. अंबेडकर का मानना था कि सही मायने में प्रजातंत्र तब आयेगा जब महिलाओं को पैतृक संपत्ति में बराबरी का हिस्सा मिलेगा और उन्हें पुरूषों के समान अधिकार दिए जाएंगे। डा. अंबेडकर का दृढ. विश्वास था कि महिलाओं की उन्नति तभी संभव होगी जब उन्हें घर परिवार और समाज में सामाजिक बराबरी का दर्जा मिलेगा। शिक्षा और आर्थिक उन्नति उन्हें सामाजिक बराबरी दिलाने में मदद करेगी। बाबा साहब ने संविधान मे महिलाओं को सारे अधिकार दिये लेकिन अकेला संविधान या कानून लोगों की मानसिकता को नहीं बदल सकता, पर सच है कि यह परिवर्तन की राह तो सुगम बनाता ही है। हिंदू समाज में क्रांतिकारी सुधार लाने के लिए देश के पहले कानून मंत्री के रूप में आंबेडकर ने हिंदू कोड बिल लोकसभा में पेश किया। डॉ अम्बेडकर एक प्रबुद्ध भारत का सपना देखते थे अतः उन्होंने सविधान के पहले पन्ने पर यानि की प्रस्तावना में सभी जातियों के स्त्री पुरुषो को बराबरी दी। स्त्री-पुरुष असमानता व छुआछूत की समाप्ति करके समानता की गारंटी दी। गरीब अमीर, मजदूर, मालिक के बीच सामाजिक समानता का सूत्रपात किया। वर्ण वर्ग जाति लिंग भेद रहित सभी को वोट देने का अधिकार दिया । डॉ. अम्बेडकर ने महिलाओ को समानता दिलाने के लिए महत्वपूर्ण भूमिका अदा की। युनिफार्म सिविल कोड से लेकर हिन्दू कोड बिल को लाने में उन्होंने पुरजोर ताकत लगाया कि महिलाओ को समाज में बराबरी का हक मिले उन्हें पति और पिता की सम्पति में भाइयो के साथ सम्पति का हक मिले । पति की सम्पति में वैवाहिक सम्पति में हक मिले जिससे पति और ससुराल ली गुलामी से वो मुक्त हो कर अपना जीवन स्वाभिमान से जी सके। हिन्दू कोड बिल ने महिलाओ के भरण-पोषण, तलाक लेना न देने के साथ साथ पति की हैसियत के हिसाब से खर्चे का अधिकार दिया। भारतीय सविधान ने औरत को दत्तक पुत्र पुत्री गोद लेने व अपनी सम्पति संरक्षण का अधिकार दिया। अपनी मर्जी से जीने ओर अपनी आजादी से आने जाने का हक दिया। महिला कर्मचारियो को प्रसूति अवकाश और मजदुर औरतो को पुरुष मजदूरो के समक्ष न्यनतम वेतन व समान वेतन समान घंटे काम का अधिकार मिला। इतने सब अधिकार महिलाओ को बिना लड़े, बिना संघर्ष किये आराम से मिल गये। डॉ. अम्बेडकर की जयंती को दलित महिलाएं एक महिला के रूप में डॉ अम्बेडकर के महिलाओ के प्रति योगदान को याद करती हैं। वहीं दूसरा खेमा जिसमें सवर्ण महिलाएं शामिल हैं उनकी जयंती को नजरंदाज करती हैं। दलित महिलाएं डॉ. अम्बेडकर की जीवनी पढ़ कर उनके संघर्षो के साथ स्वयम् को जुड़ा देखती है। और दलित स्वयम् को एक इंसान के रूप में अपने मानवीय हकों को पाने व भोगने के लिए डॉ. अम्बेडकर के योगदान को नहीं भूलते। महिलाओं के अधिकारों के चैम्पियन डॉ.अम्बेडकर को याद न करने वाली महिलाओ के बारे में क्या कहा जाये ? उनके शोध ..विमर्श और लेखन में डॉ अम्बेडकर और उनकी विचारधारा कंही दूर तक नहीं आते तभी तो नयी पीढिया अब सवाल करने लगी है की महिला आन्दोलन डॉ. आंबेडकर को क्यों नहीं जनता? आज की युवा महिला वर्ग बाबा साहब को न के बराबर जानती हैं। जानती भी हैं तो सिर्फ साधारण महापुरुष की तरह। दलितों, पिछड़ों, महिलाओं के मुक्तिदाता के रूप में या संविधान निर्माता के रूप में नहीं। इन पक्षों के पीछे साजिश भी है और समर्थन भी है। आजादी के इतने वर्ष बीत जाने के बाद राजनीति की दिशा और दशा दोनों एक निर्धारित परिपाटी पर चलने लगी हैं। धीरे-धीरे स्थितियाँ बदल रहीं हैं। भारत के राष्ट्रपिता कहे जाने वाले गांधी जी को लोग छोडकर लोग बाबा साहब की तरफ भाग रहे हैं। सभी राजनीतिक पार्टियां बाबा साहब को साथ लेकर चलने को उत्सुक दिख रहा है। वामपंथ व अन्य सभी दल इनकी ओर झुक रहे हैं। अक्सर कहा जाता था कि 21वीं सदी बाबा साहब की होगी। धीरे धीरे वह सच होता दिखाई दे रहा है। खैर चाहे जो भी सभी वर्ग की महिलाओं को बाबा साहब के कार्यों को न चाहते हुए भी उन्हें अपनाना पड़ेगा। समग्र महिला समाज बाबा साहब के अहसानों तले हमेशा दबा रहेगा। हमेशा उनके कार्यों का ऋणी रहेगा। अब समय है की महिलाएं उनके कार्यों को आगे बढ़ाने का कार्य करें। आज हम महिला सशक्तिकरण पर डॉ. अंबेडकर के विचारों की बात न करें तो ये बेमानी होगी। डॉ. भीमराव अंबेडकर ने दलितों व महिलाओं की स्थिति में सुधार लाने के लिए दो मुख्य अखबारों की स्थापना भी की थी। ‘मूकनायक’ और ‘बहिष्कृत भारत’ नामक ये अखबार महिला सशक्तिकरण की का मुख्य केंद्र थे। बाबा साहब अंबेडकर हमेशा से ही समाज में महिलाओं के प्रति के के समर्थक थे। न्यूयॉर्क में पढ़ाई के दौरान अपने पिता के एक करीबी दोस्त को पत्र लिखकर कहा था कि बहुत जल्द भारत प्रगति की दिशा स्वंय तय करेगा, लेकिन इस चुनौती को पूरा करने से पहले हमें भारतीय स्त्रियों की शिक्षा की दिशा में सकारात्मक कदम उठाने होंगे। 18 जुलाई 1927 को करीब तीन हजार महिलाओं की एक संगोष्ठि में बाबा साहब ने कहा ने कहा था कि आप अपने बच्चों को स्कूल भेजिए। शिक्षा महिलाओं के लिए भी उतनी ही जरूरी है जितना की पुरूषों के लिए। यदि आपको लिखना-पढ़ना आता है, तो समाज में आपका उद्धार संभव है। डॉ. अंबेडकर ने महिलाओं से कहा कि एक पिता का सबसे पहला काम अपने घर में स्त्रियों को शिक्षा से वंचित न रखने के संबंध में होना चाहिए। शादी के बाद महिलाएं खुद को गुलाम की तरह महसूस करती हैं, इसका सबसे बड़ा कारण निरक्षरता है। यदि स्त्रियां भी शिक्षित हो जाएं तो उन्हें ये कभी महसूस नहीं होगा। इतना ही नहीं 10 नवंबर 1938 को बाबा साहब अंबेडकर ने बॉम्बे लेजिसलेटिव असेंबली में महिलाओं की समस्या से जुड़े मुद्दों को जोरदार तरीकों से उठाया। इस दौरान उन्होंनें प्रसव के दौरान महिलाओं के स्वास्थ्य से जुड़ी चिंताओं पर अपने विचार रखे। क्या आप जानते हैं कि 1942 में सर्वप्रथम मातृत्व लाभ विधेयक डॉ. अंबेडकर द्वारा ही उठाया गया था। भारतीय संविधान के निर्माण के वक्त भी बाबा साहब ने महिलाओं के कल्याण से जुड़े कई प्रस्ताव रखे थे। इतना ही नहीं आर्टिकल 14-16 में महिलाओं को समाज में समान अधिकार देने का भी प्रस्ताव किया गया है। संविधान के भाग में महिलाओं के शोषण व उनके सेल-परचेज़ प्रणाली पर भी सख्त कानून का लिखित उल्लेख है। क्या आप जानते हैं कि दुखी-हारी महिलाओं को उठकर लड़ने के प्रेरण देने वाले अंबेडकर साहब बाल विवाह और देवदासी प्रथा को समाप्त करने के लिए समाज में कई कल्याणकारी व परिवर्तनकारी प्रयास भी किए हैं। क्या आप जानते हैं 1928 में मुंबई में एक महिला कल्याणकारी संस्था की स्थापना की गई थी, जिसकी अध्यक्ष बाबा साहब की पत्नी रामाबाई थीं। 20 जनवरी 1942 को डॉ. भीम राव अंबेडकर की अध्यक्षता में अखिल भारतीय दलित महिला सम्मेलन का आयोजन किया गया था। जिसमें करीब 25 हजार महिलाओं ने हिस्सा लिया था। उस समय इतनी भारी संख्या में महिलाओं का एकजुट होना काफी बड़ी बात थी। बाबा साहब ने दलित महिलाओं की प्रशंसा करते हुए कहा, ‘महिलाओं में जागृति का अटूट विश्वास है। सामाजिक कुरीतियां नष्ट करने में महिलाओं का बड़ा योगदान हो सकता है। मैं अपने अनुभव से यह बता रहा हूं कि जब मैने दलित समाज का काम अपने हाथों में लिया था तभी मैने यह निश्चय किया था कि पुरूषों के साथ महिलाओं को भी आगे ले जाना चाहिए। महिला समाज ने जितनी मात्रा में प्रगति की है इसे मैं दलित समाज की प्रगति में गिनती करता हूँ’। डॉ. अम्बेडकर ने दलित महिलाओं से अपनी बच्चियों की शादी कम उम्र में ना करने की अपील करते हुए उनको शिक्षित कर अपने पैरों पर खड़ा होने पर बल दिया तथा कम बच्चे पैदा करने व साफ सफाई से रहने का सन्देश देते हुए महिलाओं का परिवारों में समानता का स्तर हो इस पर भी बात की। डॉ. अम्बेडकर चाहते थे कि भारतीय स्त्री खासकर, हिन्दू स्त्री जिसमें सवर्ण तथा दलित दोनों की समाजिक, आर्थिक, और राजनैतिक स्थिति में क्रांतिकारी परिवर्तन हो।

बाबा साहब अनीश कुमार दलित महिलाएं

समाज में भिन्न-भिन्न प्रकार के मनुष्य निवास करते हैं । भारतीय समाज विविधता से भरा पड़ा है । यहाँ पर कई भाषाएँ, बोलियाँ व संस्कृति पाई जाती हैं । स्वतन्त्रता से पहले यहाँ और ज्यादा विविधता थी । यही विविधताएँ मनुष्य को बांटने का कार्य करता है । ऐसा कहा जाता है कि वैदिक काल में भारत में ज्यादा विविधता नहीं थी । सभी मिल कर रहते थे । महिलाओं व बच्चों को पूरा अधिकार था । लेकिन इस बात में कितनी सच्चाई है इसका प्रमाण नहीं मिलता । प्रामाणिक तौर पर जितना इतिहास मिलता है तो उसके आधार पर स्पष्ट तौर पर कह सकते हैं कि भारत में वर्ण व्यवस्था की जड़े थी । स्वतंत्र भारत के पहले दलित वर्ग व पिछड़ा वर्ग को कानूनी अधिकार नहीं प्राप्त थे । भारतीय संविधान आज सभी के लिए समान रूप से कार्य करती है । सभी नागरिकों को समानता का दर्जा देती है । ये सब बाबा साहब की वजह से ही हो पाया ।

आज समाज में बाबा साहब के स्वप्न को सबसे ज्यादा नुकसान आरक्षण से पढ़-लिखकर और नौकरी पाये अधिकारी व अफसरों तथा राजनैतिक आरक्षण के कारण जो लोग सांसद व विधायक बने हैं वे सब किए हैं । उन्होने (बाबा साहब) ये सब आपके लिए किया लेकिन आज स्थिति पूरा उलट है । बाबा साहब के विचारों पर आधारित राष्ट्र का निर्माण करना ही उनके लिए सच्ची श्रद्धांजलि होगी ।

बाबा साहब के विचारों को मानने की पहली कड़ी है “जय भीम” का अभिवादन । कुछ लोग कहते हैं कि “जय भीम” क्यूँ बोलते हो ? क्या मिलता है इससे ? हिन्दू हो तो राम राम क्यूँ नहीं बोलते हो । आदि आदि । तो इसका उत्तर साफ है कि “जय भीम” बोलना किसी की पुजा करने जैसा नहीं है । हमसब उस महामानव के प्रति अपनी कृतज्ञता अर्पित करते हैं जिसने हमें मनुष्य होने का दर्जा दिलवाया, शिक्षा, राजनीति, आदि सभी जगह कानूनी अधिकार दिलवाया । सही मायने में इंसान बनाया । वरना इसके पहले हमारा जीवन क्या था । पशुओं के समान जीवन, जिसे पानी भी पीने का अधिकार नहीं था जिसे पशु पी सकते थे । हमें अछूत बनाया गया । लोग हमें छूने से डरते थे । बीमारी की वजह से न जाने कितनी जिंदगियाँ काल के गाल समा गई होंगी । इस स्थिति में बाबा साहब ने हमें उबारा और इस अमानवीय व्यवहार को गैरकानूनी घोषित किया । जो “जय भीम” नहीं बोलते हैं मैं उनसे पुंछना चाहता हूँ की आप को पढ़ने का, नौकरी करने का, सभी के सामने गर्व से जीने व चलने का अधिकार, महिलाओं को पढ़ने लिखने व नौकरी करने का अधिकार किसने दिलवाया । राजनीतिक सीट को आरक्षित किसने करवाया । क्या आप अपने आपको “सवर्ण” मानते हो तो जाओ पूंछों उन सवर्णों से की बाबा साहब के आने से पूर्व आपकी क्या स्थिति थी उंन सवर्णों के सामने ? आज सभी मिलकार साथ साथ खाना खा लेते हो ये सब बाबा साहब की देंन है । इसके लिए बाबा साहब ने खुद खाना पीना छोडकर हमारे लिए लड़े हैं ।

वास्तव में प्रकृति का नियम है कि जिससे कुछ ग्रहण करो उसे उसकी भरपाई भी करनी चाहिए । वह चाहे जिस रूप में । आज के समय में यदि हमारी कोई छोटी सी मदद भी कर दे तो हम थैंक्स जरूर बोलते हैं । किन्तु बाबा साहब ने हमे एक नई जिंदगी दी । उनका अहसान हमें जिंदगी भर ऋणी रखेगा । बिडम्बना यही है कि लोग उन्हें “जय भीम” बोलकर आभार भी प्रकट करना बेमानी समझते हैं । बाबा से खुद कहा था कि यदि मेरे कार्यों को आगे न ले जा पाना तो वहीं छोड़ देना पीछे मत ले जाना । लेकिन आज स्थिति इसके उलट ही है । लोग आरक्षण का लाभ लेंगे, महिलाएं घर से बाहर जाएंगी, नौकरी करेंगी, प्रेम विवाह करेंगी, आरक्षित सीट पर सांसद, विधायक बनेंगे लेकिन बाबा साहब को नहीं मानेंगे । उन्हें ये नहीं पता होता कि ये सारे अधिकार हमें यूं ही नहीं मिल गए थे । बाबा साहब ने कितना संघर्ष किया था ।

आज महज संयोग है कि बाबा साहब जो पूरे लगन और सामर्थ्य से भारतीय संविधान को लिखा किन्तु उनके समाज के लोग, राजनेता, शिक्षित वर्ग मंदिर और मस्जिद कि तरफ भाग रहे हैं वहीं जिसने सदियों से मंदिर और मस्जिद के नाम पर शूद्रो, पिछड़ों को गुलाम बनाए रखा, वे लोग आज संसद में जा रहे हैं । यहाँ तक संविधान बदलने की बात कर रहे हैं । कटु सत्य यह भी है कि यदि शूद्र और पिछड़े वर्ग के लोगों की यहीं मानसिकता रही तो सच में एक दिन संविधान बदल ही जाएगा । दलितों पिछड़ों का दुर्भाग्य है कि उन्हें ऐसे विधायक और सांसद मिलते हैं जो पार्टी में रहते हुए उत्पीड़न, दमन अथवा आरक्षण को लेकर एक शब्द नहीं बोलते हैं और रामलीला मैदान में “आरक्षण बचाओ रैली निकालते हैं ।

आज का कुछ युवा वर्ग बाबा साहब को न के बराबर जानते हैं । जानते भी हैं तो सिर्फ साधारण महापुरुष की तरह । दलितों, पिछड़ों, महिलाओं के मुक्तिदाता के रूप में या संविधान निर्माता के रूप में नहीं । आजादी के इतने वर्ष बीत जाने के बाद राजनीति कि दिशा और दशा दोनों निर्धारित हो चुकी है । धीरे-धीरे स्थितियाँ बदल रहीं हैं । भारत के राष्ट्रपिता कहे जाने वाले गांधी जी को लोग छोडकर लोग बाबा साहब की तरफ भाग रहे हैं । सभी राजनीतिक पार्टियां बाबा साहब को साथ लेकर चलने को उत्सुक दिख रहा है । वामपंथ व अन्य सभी दल इनकी ओर झुक रहे हैं । अक्सर कहा जाता था कि 21वीं सदी बाबा साहब की होगी । धीरे धीरे वह सच होता दिखाई दे रहा है ।

Exit mobile version