आज कल चुनावों का दौर है औऱ मीडिया की किसी विचारधारा विशेष के प्रति भी झुकाव दिख रहा है। कोई हिन्दू -मुस्लिम की डिबेट करा रहा है तो कोई दिन में एक या दो बार कभी पाकिस्तान तो कभी चीन औऱ कभी म्यांमार को दिखाने में लगा हुआ है। सवाल यह उठता कि कोई मीडिया चेनल शिक्षा , स्वास्थ्य औऱ बेरोजगारी पर चर्चा क्यों नहीं करना चाहता ? कुछ चैनल इसमें अपवाद है। सवाल यह कि हमारी सरकार ने इतने रोजगार के साधन पैदा कर दिये है इसलिए हमें इसका जिक्र नहीं करना चाहिए । हमें स्वास्थ्य सेवाएँ इतनी अव्वल दर्जे की मिलने लगी है ,इसलिए हमें इन सब बातों पर अपना समय क्यों बर्बाद करें।क्या जो पढे लिखे बेरोजगार है उनको रोजगार मिल चुका है , इसलिए इस पर चर्चा करना अब बेमानी हो गया है।
यदि नहीं तो चर्चा क्यों नहीं ?
इन सब मुद्दों पर बहस बहुत जरूरी है नहीं तो यही समस्याएँ एक दिन बड़ी त्रासदी का कारण बनेगी।
हमें खुद सरकारों से जवाब मांगना होगा यह एक अलग बात है कि जिस दिन हम इन समस्याओं के खिलाफ मोर्चा खोलेंगे तो हमें पागल समझा जाएगा औऱ यहाँ तक कि इन समस्याओं के खिलाफ मोर्चा खोलने वालों को एक दिन देशद्रोही भी घोषित कर दिया जाएगा। क्या इससे युवाओं डर जाना चाहिए?
आजकल टेलीविजन की डिबेट राजनीतिक दुकानदारों की दुकान बन चुकी है। अभी भी कुछ में थोड़ी बहुत जमीर बची है वो ज्यादा नहीं कुछ तो जनहित के मुद्दों में रूचि ले रहे है जो इसका सकारात्मक पहलू है ।
आज की राजनीति में कोई खुद को हिन्दू साबित कर रहा तो कोई खुद को मुस्लिम साबित कर रहा है, लेकिन इससे कुछ मिलने के आसार नहीं है। हाँ एक बात जरूर है कि इससे राजनीतिक दुकानदारों की दुकान बहुत अच्छी चल रही है , इसमें कोई दो राय नहीं है।