Site icon Youth Ki Awaaz

जिस काशी को सबसे साफ होना था उसके इतने गंदे होने की 4 वजहें

प्रसिद्ध अमेरीकी लेखक मार्क ट्वेन लिखते हैं: “बनारस इतिहास से भी पुरातन है, परंपराओं से पुराना है, किंवदंतियों से भी प्राचीन है और जब इन सबको एकत्र कर दें, तो उस संग्रह से भी दोगुना प्राचीन है।

वाराणसी को प्रायः ‘मंदिरों का शहर’, ‘भारत की धार्मिक राजधानी’, ‘भगवान शिव की नगरी’, ‘दीपों का शहर’, ‘ज्ञान नगरी’ आदि विशेषणों से संबोधित किया जाता है।यह संसार का प्राचीनतम बसे शहरों में से एक है और पवित्र गंगा किनारे बसे होने के कारण इसका गंगा से भी अटूट संबंध है।

आज बनारस अपने आदर्श के विपरीत जगह जगह कूड़े-कचड़े का अम्बार,टूटे सड़कों से बने गड्ढे में भड़े कीचड़, बदबूदार गलियां जिसकी कल्पना मात्र से इंसान अस्वस्थ हो जाए,नालियों से निकलने वाले मल का रोड पर जमाव,और प्रदूषण के उस सस्तर को छू लिया है जिसकी कल्पना तो लोगों ने की थी पर यतार्थ के चित्र से सब दूरी ही बनाना चाह रहे थे।

कुछ मिनट सड़कों पर गुज़ारने पर लोगों को सांस लेने में तकलीफ और गंदगी से लोगो की मिजाज ख़राब हो जाती है। प्रशासन आंख बंद किए हुए है तो लोग अपनी जिम्मेदारी से भागकर  दूसरों पर इल्ज़ाम गढ़ने का काम कर रहे है। गौ माता द्वारा चौराहों पर (लावारिस) पड़े कचरे, प्लास्टिक खाने से स्थितियां और भी भयावह रूप ले रही हैं।

“काशी का स्थान हिंदुओं के हृदयस्थलि में है, हिन्दू धर्म की मान्यता के अनुसार काशी की धरती यहां आये हुए लोगों को मोक्ष प्रदान करती है और जीवन चक्र से मुक्ति भी दिलाती है पर बिडम्बना इस बात की है कि लाखों लोगों को मार्गदर्शन करने वाली काशी आज खुद के बच्चों का मार्गदर्शन करने में असमर्थ नज़र आ रही है।”

बनारस में इस गंदगी के किले बनने के चार प्रमुख वजह हैं,

1) पहला, आवश्यकता से अधिक निर्भरता- बनारस के लोग मृदुभाषी, अपनापन रखने वाले और मददगार लोग होते हैं। पर अगर स्वछता के संदर्भ में बात की जाए तो यहां के लोगों ने पूरी गली, चौराहे और चौराहे से रोड यहां तक कि अपने घर के बाहर की सफाई का ज़िम्मा भी आदरणीय प्रधानमंत्री जी को दे दिया है। ये निर्भरता इतनी है कि चाय दुकान पर चाय की चुस्की लेते वक्त 80 साल के बुज़ुर्ग हों या 10 साल का छोटा सा स्कूल जाने वाला बालक, ये कहते नहीं थकता कि “अब मोदी जी तो विदेश रहे, तो काशी कहां से स्वच्छ होई?” आलम यह है कि यही मृदुभाषी लोगों की आवाज़ आज सांसद महोदय को किसी करेले की जूस की तरह ही स्वीकार करनी पड़ेगी, यही अपनापन रखने वाले लोग अपनी गलतियों का बोझ अपने प्रिय नेता पर डालकर उसे पराया भी बनाना शुरू कर दिए हैं और यही मददगार लोग आज अपना घर-आंगन और शहर साफ़ नहीं रखना चाहते है। मोदी को दोष देने की हवा ऐसी चली है कि काशी विश्वनाथ के एक दिन के दर्शन के लिए आये हुए श्रद्धालू और बाबा के भक्त मोदी के शहर और मोदी जी पर दोष मढ़े बिना अपने घर नहीं जाते हैं। बहरहाल ये निर्भरता कहीं न कहीं मोदी पर लोगों का विश्वास और प्रधानमंत्री से लोगों के जुड़ाव की पहचान है, पर मोदी जी और उनकी पूरी टीम के लिए ये खतरे के रेड सिग्नल है।

काशी की गंदगी की एक तस्वीर

“कहा तो यही जा सकता है कि कहीं काशी की सफाई की ये ज्वलंत समस्या अगले चुनाव में मोदी जी का सफाया न कर दे।”

2) दूसरा कारण है अत्यधिक जनसख्या-  इससे ना सिर्फ प्रदूषण बढ़ा है बल्कि अत्यधिक गर्मी के होने के कारणों में भी ये एक है। दस लाख से अधिक आबादी वाले शहरों की सूचि में काशी भी सामिल है।

आलम यही रहा तो काशी के संबोधन के लिए, पग-पग पर तीर्थ होने जैसे शब्दों के बदले पग-पग पर गंदगी और कूड़ों का अम्बार ना हो जाए।

3) तीसरा कारण जो सबसे महत्वपूर्ण है वो है नगर निगम का स्वच्छता के प्रती रवैया- स्थिति यह है कि चौराहों पर कचरे जमा करने वाले डम्पर तो अपने स्थान पर नहीं ही हैं साथ ही जाम, कूड़ों से लबालब, हज़ारो बिमारियों की जननी नालियों से बह रही गंदगी ज़रूर रोड के उपर से बहना शुरू हो गए हैं। जिस प्रशासन के भरोसे पर बनारस को क्योटो बनाने का सपना प्रधानमंत्री जी ने देखा है, वही प्रशासन अगर बेईमान और कामचोर हो तो भविष्य के गर्भ में छिपे इस सपने को यथार्थ में परिभाषित करना संभव नज़र नहीं आ रहा है।

जिस संसदीय क्षेत्र की जनता के आशीर्वाद प्राप्त कर मोदी जी ने स्वच्छ भारत जैसे महत्वाकांची योजना की शुरुआत करने का गौरव प्राप्त किआ है, वही बनारस अगर स्वच्छ भारत के रैंकिंग में देश के दस सबसे गंदे शहरों में अपना स्थान पाये तो सवाल तो उठना लाज़मी है।

अगर प्रशासन अभी भी सचेत नहीं हुआ तो हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत के बनारस घराना को जन्म देने वाली काशी अपने ही अस्तित्व की लड़ाई लड़ने को मजबूर हो जाएगा।

4) चौथा कारण है जागरूकता की कमी- जागरूकता के आभाव में लोग इधर-उधर गंदगी फैलाते हैं और लोगों को अपने शहर से प्यार या लगाव की भनक होने जैसीं बातें भी सामने नहीं आ रही है। ऐसे में सामाजिक संस्थान, सरकार और समाज के जानकार लोगों को चाहिए कि शिविर और संपर्क के माध्यम से लोगों को स्वछता के और स्वच्छ भारत के निकट ला खड़ा करे जिससे लोग अपनी ज़िम्मेदारी से भागने की कोशिश नहीं करें क्योंकि अगर लोग स्वच्छ होना नहीं चाहेंगे तो स्वंय प्रभु महादेव और दिल्ली के तख्त पर काबिज प्रधानमंत्री जी भी निराश होने के अलावा कुछ नहीं कर सकते।

Exit mobile version