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राजसमंद कांड

सांप्रदायिकतावादी सोच मनुष्य के उपर कब धीरे धीरे हावी हो जाती है जिसका पता मनुष्य को भी नही चलता. राजसमंद कांड  उस भारत को दर्शाती हैं जिसको  राजनीतिक दल  आपस में नफरत फैलाकर बना रहे हैं राजनीतिक दलों ने सांप्रदायिकता के जो बीज बोए थे उसे जहरीला पौधा बना दिया है, धर्म जाति के नाम पर नफरत से हटकर  देश को क्यो ना एक सूत्र में बाधे, ताकि देश में सांप्रदायिकतावादी ताकते कभी ना आए.  “लव जिहाद” के नाम पर हुई इस हत्या से देश पर कुछ फर्क नही पड़ेगा, बल्कि ये देश कई कई वर्गो में विभाजित हो सकता है, जिसका लाभ सिर्फ़ राजनीतिक पार्टिया लेगी.  मुस्लिम मजदूर के हत्या का जो वीडियो वायरल हुआ है उसे उस हत्यारे ने अपने मासूम भतीजे से शूट करवाया है, हैवानियत और नृशंसता का नंगा नाच एक बच्चे के सामने की , उस मुस्लिम मजदूर के साथ ही एक बच्चे की करुणा और कोमलता का भी खून किया गया. उसकी हत्या होता रहा रोने चीखने की आवाज आई पर बच्चा चुपचाप शूट करता रहा ,बच्चा न रोया और न कैमरा छोड़ भागा और न ही उसे दया आई.आईएस का वीडियो सालभर पहले जो देखते थे उसमें ठीक इसी तरह से बच्चों को हथियार देकर बंदियों का गला रेत दिया जाता था. बच्चों को बचपन से हत्यारा बनाया जाता था. आज देश में हुई ये घटना दुबारा ना हो इसके लिए शिक्षित व्यक्ति अगर अशिक्षित को ज्ञान देगा तो, सांप्रदायिकतावादी सोच मनुष्य में कभी नही आएगी. ज़्यादा से ज़्यादा अगर अंतरजातिया विवाह को सरकार प्रमोट करे तो  “लव जिहाद”  नाम हमेशा के लिए समाप्त हो जाएगा.

हमारे देश में धार्मिक नफरतों की जद में अब बचपना भी आ गया, बचपन से बच्चों को स्कूली शिक्षा के साथ दूसरे धर्म से नफरत करना भी सीखा रहे , उन्हें मानव बम बना रहे है. नींम के पेड़ से आम की उम्मीद नही की जा सकती है. राजस्थान के राजसमंद में एक इंसान को काटा, फिर जला, साथ ही वीडियो भी बनाया और सबको दिखा.सांप्रदायिकता का जो बीज बोया, उसके परिणाम आने लगे है. कोई केरल का उदाहरण देगा तो कोई कहीं का मगर हिंसा को निंदा के बाद सब पालेंगे क्योंकि आज की राजनीति के लिए बहुत से हत्यारों की ज़रूरत है.एक की तो सिर्फ मौत हुई है, उसकी नागरिकता हर ली गई है मगर ऐसा करने के लिए दूसरे समाज के भीतर कितने हत्यारे पैदा किए जा चुके  है.भारत की राजनीतिक संस्कृति बदल गई है. पहले भी ये सब तत्व थे। अतिरेक भी था मगर अब यह नियमित होता जा रहा है। तो इसे लेकर किसी को शर्म भी नहीं आती है.हमारी आंखों के सामने पीढ़ियों के बर्बाद होने की रफ़्तार काफी तेज़ हो गई है.धर्मांधता और धार्मिक पहचान की राजनीति के लिए अपने भीतर से बहुत से हत्यारे चाहिए जो दूसरे पर हमला करने के काम आ सके . राजनीति से धर्म को दूर कर दीजिए वरना  इंसानियत से दूर हो जाएगे.

 

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