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2017 ने भी साबित किया कि यौन हिंसा हमारे समाज में आम बात हो गई है

वर्ष 2017 का अंत होने को है, इस साल घटी तमाम घटनाओं का तरह-तरह से विश्लेषण किया जाएगा। सकारात्मक घटनाओं का भी और नकारात्मक घटनाओ का भी। मेरा उद्देश्य यहां कुछ उन घटनाओं की ओर आप सभी का ध्यान पुनः आकृष्ट कराना है, जहां न सिर्फ हमने अपने इतिहास को दोहराया बल्कि कुछ नए कीर्तिमान भी स्थापित किए।

शुरुआत कुछ छोटे-मोटे कामों से करते है जिसको करने के बाद हम अपनी मूछों को ज़्यादा ताव नहीं देते, क्योकि वो तो हम ऐसे ही करते रहते हैं। जैसे तथाकथित सभ्य, शिक्षित और संस्कारी लड़कों द्वारा किसी लड़की की गाड़ी का रात में 5-5 किलोमीटर तक पीछा करना। विरोध दर्ज कराने पर उसी पर आक्षेप लगाना कि वो देर रात को घूमती है, लड़कों के साथ घूमती है, शराब भी पीती है, छोटे कपड़े पहनती है आदि। कुल मिलाकर वो पश्चिमी सभ्यता से प्रभावित है, इसलिए पश्चिमी सभ्यता से प्रभावित महिलाओं के साथ हिंसक व्यवहार उचित है।

एक लड़की ने अपने निजी जीवन में मिले अनुभवों से प्रभावित होकर और अपनी समझ के आधार पर युद्ध के संबंध में निजी विचार रखे जिससे सहमत होने या न होने के लिए सभी स्वतंत्र हैं। लेकिन उसके विचारों के प्रति अपनी असहमति को लोगों ने उसे गालियां देकर और उसका रेप करने की धमकी देकर प्रकट किया।

तो इस तरह से हमने अपनी संस्कृति को पश्चिमी संस्कृति से बचाने की पुरज़ोर कोशिशें की। लेकिन ये सब तो छोटे-मोटे काम हैं, सड़क पर चलते हुए महिलाओं पर अश्लील फब्तियां कसना, मौका मिलने पर शारीरिक उत्पीड़न करना, विरोध करने पर पीट देना आदि-आदि, इनकी तो क्या ही चर्चा की जाए। चर्चा उन ऐतिहासिक घटनाओं की करना है जिनसे हमने न सिर्फ अपने पुराने इतिहास को दोहराया बल्कि उसमें नए-नए मील के पत्थर जोड़े और अपनी रेप की संस्कृति को बचाए रखा।

एक नाबालिग लड़की का ट्रेन में 6 लोगों द्वारा रेप किया गया, उसके बाद उसे बुरी तरह पीटा गया। उसके प्राइवेट पार्ट्स को इस कदर चोट पहुंचाई गई कि डॉक्टर को लगभग 24 टांके लगाने पड़े। उसकी जांघ की हड्डी को तोड़ दिया गया, उसके दोनों पैरों को नष्ट कर दिया गया। रेप करने और पीटने से मन भर जाने के बाद उसे चलती ट्रेन से फेंक दिया गया।

इसी परंपरा को जारी रखते हुए एक 19 साल की मां जिसके साथ उसका 9 महीने का बच्चा भी था, उसके साथ तीन लोगों ने ऑटो में रेप किया। जब छोटे बच्चे के रोने की आवाज़ से उन्हें अपनी क्रिया को संपन्न करने में असुविधा महसूस हुई तो उन लोगों ने बिना किसी देरी के उस बच्चे को बाहर फेंक दिया जिससे उसकी मौत हो गई।

इसी तरह एक महिला के साथ गैंग रेप किया गया और यही नहीं उसके सर को ईटों से पीटकर तोड़ा गया, बाकी की कल्पना आप स्वयं करें।
एक आठ साल की बच्ची का उसी के अंकल ने कई बार रेप किया, एक 45 साल का आदमी अपनी ही नाबालिग बेटी के साथ कई बार रेप करता रहा जिससे वो प्रेग्नेंट हो गई, उसने एक बच्चे को जन्म दिया और उस बच्चे की मृत्यु हो गई।

इसी परंपरा में आगे गाड़ी से जा रही एक ही परिवार की चार महिलाओं का 6 पुरुषों द्वारा रेप किया गया। गाड़ी में मौजूद एक पुरुष द्वारा विरोध किए जाने पर उसकी गोली मारकर हत्या कर दी गई। एक कॉलेज की छात्रा का उसी घर में घुसकर एक लड़के द्वारा पहले रेप किया फिर उस पर केरोसिन डाल कर उसे जला दिया गया। एक सात साल की बच्ची, जो की अपनी मां के साथ सो रही थी उसे वहां से उठाकर उसके साथ रेप करके फेंक दिया गया, जहां वह खून से लथपथ मिली।

एक लड़की का चलती कार में तीन लोगों द्वारा 5 घंटे तक रेप किया गया फिर उसे फेंक दिया गया। इसी तरह एक शारीरिक रूप से विकलांग नाबालिग लड़की का मंदिर के अन्दर रेप किया गया और बाबाओं के कारनामे तो आपको समय-समय पर इस साल देखने को मिलते ही रहे हैं। ये वो घटनाएं हैं जिन्होंने राष्ट्रीय स्तर की कीर्ति हासिल की। कई घटनाएं ऐसी भी होती हैं जो मुख्यधारा की मीडिया द्वारा ध्यान दिए जाने की योग्यता हासिल नहीं कर पाती और वहीं दम तोड़ देती हैं।

इस वर्ष भी इन सभी बातों के लिए पश्चिमी सभ्यता को, महिलाओं को, आधुनिक मूल्यों को, इन घटनाओं का कारण होने का गौरव प्राप्त हुआ और कर्तव्य की इतिश्री कर ली गई।

सोशल मीडिया पर यह बाते उठाने के बाद कुछ ‘सकारात्मक सोच’ से लबरेज़ लोग पूछते हैं कि यही सब बातें क्यों उठाई जाती हैं? अच्छी चीज़ें भी होती हैं उन्ही पर ध्यान केन्द्रित किया जाना चाहिए। ‘देशप्रेमी’ लोग कहते हैं कि देश की बदनामी क्यों कर रहे हो देश से ऊपर कुछ नहीं है। ‘धार्मिक’ लोग कहेंगे कि इसी धर्म के बारे में क्यों लिख रहे हो और बाकी धर्मों के बारे में भी लिखो। कुछ लोग यहां तक कह डालते हैं कि यही ज़्यादा क्यों लिख रही है लगता है इसी के साथ ये सब होता होगा।

2017 में इन घटनाओं में कोई कमी नहीं आई, महिलाओं के साथ हो रही हिंसा में कोई कमी नहीं आई। उनके साथ होने वाली क्रूर घटनाओं में कोई कमी नहीं आई। डेढ़ साल की बच्ची से लेकर पचहत्तर साल की वृद्धा तक के साथ यौन हिंसा की गई और अभी भी बदस्तूर ऐसी खबरें आनी जारी हैं। उम्मीद करती हूं कि 2018 में ऐसे कीर्तिमान स्थापित नहीं होंगे। महिलाएं और बच्चियां अपने ही देशवाशियों से, अपने ही गांव और शहर के निवासियों से, अपने ही मित्रों, रिश्तेदारों और पिताओं आदि से सुरक्षित रह पाएंगी।

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