Site icon Youth Ki Awaaz

दिल्ली में रुकता क्यों नहीं है अवैध नशे का कारोबार?

MUMBAI, INDIA OCTOBER 4, 2006: Smuggling - Swapnil Kadam was caught by Anti-Curruption Bureau for smuggling the Wisky bottles. (Photo by Hemant Padalkar/Hindustan Times via Getty Images)

दिल्ली के नरेला में एक महिला को महिलाओं के ही एक समूह और कुछ पुरुषों ने सड़कों पर घसीट-घसीटकर पीटा और निर्वस्त्र कर उसे प्रताड़ित भी किया गया। महिला का दोष महज ये था कि वो अपने झुग्गी बस्ती में अवैध शराब के कारोबार को उजागर करने के लिए दिल्ली महिला आयोग की मुहिम में शामिल हुई थी जिसमें कई सौ बोतल शराब जब्त भी की गयी थी।

महिला के साथ हुई इस तरह की बर्बरता निन्दनीय है, लेकिन अवैध नशे और शराब का कारोबार पूरी दिल्ली में पूरे नियोजित तरीके से चलता रहा है। एक भी झुग्गी कॉलोनी ऐसी नहीं जहां नशे का अवैध कारोबार पुलिस की शह पर ही फल फूल न रहा हो। इस पूरे नेक्सस में प्रशासन समेत कई सफेदपोश भी शामिल होते हैं। सबको भली भांति पता होता है की फलां-फलां जगह अवैध शराब या अन्य प्रतिबंधित नशीले पदार्थों की बिक्री चल रही है लेकिन कार्रवाई शायद भी कभी होती है।

दरअसल एक सिस्टम के तहत सभी सम्बंधित विभागों को महीने या हफ्ते में तय राशी रिश्वत के रूप में नकद पहुंचा दी जाती है और अवैध नशे का कारोबार बदस्तूर जारी रहता है। इस सिस्टम में जो भी हस्तक्षेप करने की कोशिश करता है मसलन कोई सामाजिक संस्था, स्थानीय नेता , मीडिया या आम लोग, उन्हें या तो दरकिनार कर दिया जाता है या डराया-धमकाया जाता है या फिर मंथली के सिस्टम में उनका हिस्सा भी तय कर दिया जाता है।

यह बात सिर्फ नरेला की नहीं है। अलीपुर, बवाना, किराड़ी, कंझावला, बादली, शाहबाद, रोहिणी या किसी भी थाना क्षेत्र का नाम ले लें, अवैध शराब और अन्य प्रतिबंधित नशे का कारोबार तो चलता ही चलता है। प्रशांत विहार थाना क्षेत्र में आने वाले राजापुर गांव की एक महिला से लगभग दो साल पहले मुलाकात हुई थी जिसने राजापुर गांव मे ही अवैध नशे के कारोबार को उजागर करने की हिम्मत दिखाई।

इस महिला पर न सिर्फ जानलेवा हमला हुआ बल्कि इन्हें बदनाम करने की भी कोशिश की गई। जानलेवा हमले में किसी तरह महिला की जान बची और वह फिर से अपनी आवाज बुलंद करना चाहती थी, लेकिन न प्रशासन से ही कोई सहयोग मिला, न जनप्रतिनिधि से और ना ही मीडिया से। सब अपनी अपनी विवशता जताकर इधर-उधर हो लेते हैं, क्योंकि सभी ने लिफाफे वाले सिस्टम को दबी जुबान से आंखें मूंदकर स्वीकृती दे दी है।

नॉर्थ वेस्ट और बाहरी दिल्ली कवर करते हुए कई ऐसे प्रतिबद्ध लोगों और समाजसेवियों से भी मिलना हुआ जिन्होंने निजी प्रयास से अपने आस पड़ोस में अवैध नशे के कारोबारियों को उखाड़ फेंका। बवाना जेजे कॉलोनी में तो एक समाजसेवी अवैध नशे के कारोबार रोकने की मांग के साथ भूख हड़ताल पर ही बैठ गया था। भूख हड़ताल और विरोध प्रदर्शन का असर हुआ तो सही लेकिन कुछ ही दिन बाद फिर से लिफ़ाफ़ा सिस्टम की वापसी हुई और सब कुछ वापस से चालू हो गया।

बाहरी दिल्ली के किराड़ी और प्रेम नगर इलाके के तो वीडियो स्टिंग भी सामने आए थे, जिसे दिल्ली दर्पण टीवी नाम के स्थानीय चैनल ने पूरी तत्परता के साथ दिखाया। लेकिन आज भी अमन विहार थाना क्षेत्र के किराड़ी और अन्य कॉलोनियों से अवैध नशे के कारोबार और जुआ-सट्टा बड़े पैमाने पर चलाए जाने की सूचना मिलती रहती है। इन सब को चलाने और चलवाने के लिये मोटा पैकेट कानून के रखवालों तक इतनी सफाई से पहुंचाया जाता है कि सात जन्म में भी कोई सबूत न मिले।

कई जगह तो स्थानीय जनप्रतिनिधि और नेता भी इस नेक्सस के हिस्सा हैं और उनके लोग इन अवैध कारोबारियों से हर महीने लाखों की वसूली करते रहते हैं। सब कुछ आराम से चलता रहता है। बाहरी दिल्ली के सुल्तानपुरी की घटना करीब एक साल पुरानी है जहां स्थानीय युवकों ने नशे के अवैध कारोबार के खिलाफ मुहिम छेड़ी थी। प्रशासन से सहयोग की बजाय उल्टे इन युवकों पर ही कानूनी कार्रवाई की तलवार लटका दी गई। कई बार इन्हें घंटों थाने या चौकी में बिठाया गया और अप्रत्यक्ष रूप से इतना प्रताड़ित करने की कोशिश की गई कि इनका हौसला टूट जाए और ये अपनी मुहिम बंद कर दें।

जब इन सबका भी कोई असर नहीं हुआ तो एक युवक पर नशे के कारोबारी ने जानलेवा हमला करवा दिया जिसमें वो बाल-बाल बचा। सुल्तानपुरी मामले में भी कई वीडियो सबूत सामने आए थे जो स्पष्ट रूप बड़े स्तर पर चल रहे नशे के कारोबार को उजागर करते थे। लेकिन हैरानी की बात है कि ये सब अब तक भी चल रहा है।

नशे के अवैध कारोबार को जड़ से उखाड़ने के लिये जितनी आवश्यकता जनता के जागरूक होने की है उससे कहीं ज्यादा प्रशासनिक और राजनीतिक इच्छाशक्ति की भी है। अगर प्रशासन और स्थानीय जनप्रतिनिधि ठान लें कि वो अपने क्षेत्र में नशे का कारोबार नहीं चलने देंगे तो कोई इतना शातिर तस्कर नहीं जो धंधा चलाकर दिखा दे।

वर्ष 2015 की ही बात है जब रोहिणी के अलीपुर थाना क्षेत्र में अवैध शराब की खेप का पीछा कर रहे ऑन ड्यूटी पुलिसकर्मी की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। बवाना औद्योगिक क्षेत्र की वारदात सबसे ताज़ा है जिसमें एक पुलिसकर्मी शहीद हुआ था। मामला यहां भी अवैध शराब से संबंधित ही था।

ऐसा नहीं की कोई भी कार्रवाई नहीं होती, बीच-बीच में धरपकड़ और रिकवरी की मुहिम चलाकर रिकॉर्ड मेन्टेन कर दिया जाता है। नशे के ये कारोबारी किसी के सगे नहीं होते और अनेकों मामलों में इन्होंने पुलिस पर जानलेवा हमले भी किए हैं।

अब पुलिस को चाहिये कि वो अवैध नशे के कारोबार को जड़ से उखाड़ फेंकने का संकल्प ले और ऐसे मामलों में ज़ीरो टॉलरेन्स की नीति अपनाए। ये बताने की ज़रूरत नहीं कि ये करोड़ों अरबों का अवैध धंधा प्रशासन के नाक के नीचे और कहीं न कहीं उनकी जानकारी और उनकी शह पर ही चलता है।

फोटो आभार: getty images; फोटो प्रतीकात्मक है

Exit mobile version