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पल भर के लिए कोई हमें प्यार कर ले, झूठा ही सही…

झांसी,मध्य प्रदेश में जन्मे श्यामलाल राय उर्फ़ ‘इंदीवर’ की पहली पहचान युवा क्रांतिकारी की थी। आप दूसरे नाम ‘आज़ाद’ से ब्रिटिश हुक्मरानों के खिलाफ कविताएं लिखा करते थे। जेल भी गए, बाद में फिल्मों में आए। पहले-पहल ‘डबल फेस’ के लिए गीत लिखे, शुरू में काम की चाह में हर एक प्रोजेक्ट के लिए हामी भर दी। रोज़गार व आमदनी के लिहाज़ से यह कदम ठीक था, किंतु स्तरहीनता के गिरफ्त में जाते हुए अनेक ‘बी’ व ‘सी’ ग्रेड फिल्में साईन कर लीं। हालांकि ‘मल्हार’(1951) से इंदीवर को एक दमदार फिल्म मिली, फिर भी खराब अवसर उन्हें सताते रहे। ‘मलहार’ का गाना ‘बड़े अरमानों से रखा है बलम, प्यार की दुनिया में पहला कदम’ ने आपके लिए कई दरवाज़े खोल दिए।

मल्हार के निर्माता मशहूर गायक मुकेश थे। इसलिए कहा जाना चाहिए कि इंदीवर को सही मायनों में ब्रेक मुकेश साहब ने दिया। शम्मी और मोती सागर के करियर का आगाज़ भी इसी से हुआ। फिल्म ‘निर्मोही’ का हिट गीत ‘दुखियारे नयना ढूंढे पिया मोहे निस दिन करे पुकार’ फिर ‘कैसे कोई जिए, ज़हर है ज़िंदगी उठा तूफान’ जैसे हॉन्टेड गाने लिखे। मशहूर कम्पोज़र लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल ने इंदीवर के लिखे गीत (पारसमणि) से करियर की शुरुआत की थी। फिल्म ‘मदारी’ में लता मंगेशकर का गाया ‘प्यार मेरा मजबूर परदेसी पिया’ हिट था। फिल्म ‘दूल्हा दुल्हन’ में मुकेश के गाने ‘जो प्यार तूने मुझको दिया है’ और ‘हमने तुमको प्यार किया है जितना’ भी बेहतरीन थे।

इंदीवर ने 300 से भी अधिक फिल्मों के लिए लिखा। यही नहीं आपने मशहूर पॉप सिंगर्स नाज़िया व ज़ोहेब हुसैन के लिए बहुत से गीत लिखे, जोकि काफी पॉप्यूलर हुए। इस जोड़ी के गाने ‘आप जैसा कोई मेरी ज़िंदगी में आए’ और ‘दिल बोले बूम बूम ‘एक ज़माने में युवा दिलों की धड़कन रहे। बाबूलाल मिस्त्री की फिल्म ‘पारसमणी’(1963) के साथ वह सबसे आगे की पंक्ति में दाखिल हो गए। यह फिल्म मशहूर संगीतकार जोड़ी ‘लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल’ की पहली फिल्म थी। साठ के दशक में इंदीवर ने कई बड़े फिल्मकारों व बैनर के साथ काम किया। यह महज़ संयोग नहीं कि उनके सबसे यादगार रचनाएं इसी युग की उपज हैं।

लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल के साथ काम कर लेने बाद इंदीवर को कल्याणजी-आनंदजी का सान्निध्य प्राप्त हुआ। इस दौर की स्वर्णिम उड़ान के बाद फिर इंदीवर ने मुड़कर नहीं देखा और सफल गीतकार के रूप में आज भी याद किए जा सकते हैं।

कल्याणजी-आनंदजी इंदीवर के कुछ बेहतरीन प्रशंसकों में रहे, सरस्वती चंद्र (गोविंद सराय) जॉनी मेरा नाम (विजय आनंद) के यादगार गीत ‘छोड़ दे सारी दुनिया किसी के लिए’ फिर ‘ चंदन सा बदन’ और ‘मैं तो भूल चली बाबुल का देश’ (सरस्वती चंद्र) तथा देव आनंद अभिनीत ‘जॉनी मेरा नाम’ के गाने ‘ नफरत करने वालों के’ और ‘पल भर के लिए कोई हमें प्यार कर ले’ गीत मूड में एक दूसरे के विपरीत हैं।

करियर के हिसाब से इंदीवर की दो सबसे महत्त्वपूर्ण फिल्में ‘सच्चा झूठा’ (मनमोहन देसाई) और ‘सफर’ (असित सेन) इसी के आस-पास रिलीज़ हुई। सच्चा-झूठा का गीत ‘मेरी प्यारी बहनिया, बनेगी दुल्हनिया’ बेहद लोकप्रिय रहा। यह इस कदर हिट हुआ कि शादी बैंड से जोड़कर देखा जाने लगा, हर बैंड वाला यह नंबर ज़रूर बजाता था। इसी समय रिलीज फ़िल्म ‘सफ़र’ में श्रोताओं को सुंदर दार्शनिक  गीत ‘जीवन से भरी तेरी आंखे’ सुनने को मिला। इस प्रकार पूरे दशक में इंदीवर और कल्याणजी-आनंदजी का साथ रहे, जो कि अस्सी के आरंभिक दौर के गीत ‘हम तुम्हें चाहते हैं ऐसे’ ‘कुर्बानी’ (1980) से फिर जीवंत हुआ।

इंदीवर को देशभक्ति गीतों का शौक रहा, किंतु उन्हें इस तरह के गाने लिखने का अवसर सिर्फ मनोज कुमार ‘पूरब और पश्चिम’ में दे पाए। मनोज कुमार देशप्रधान फिल्मो में विशेष पहचान रखते थे, उन्होंने इंदीवर के दो सुंदर गीत ‘दुल्हन चली’ और ‘है प्रीत जहां की रीत सदा’ फिल्म में अपनाए। मनोज कुमार इंदीवर के लिए बहुत लक्की साबित हुए, फिल्म ‘उपकार’ (1967) एवं ‘पूरब पश्चिम’ (1970) के लिए इंदीवर को मनोज कुमार ने साईन किया। इन दो फिल्मों मे मनोज कुमार-इंदीवर के साथ कल्याणजी-आनंदजी की तीसरी कड़ी भी रही।

वह व्यक्ति जिसने ‘जिंदगी का सफ़र, है यह कैसा सफर कोई समझा नहीं … कोई जाना नहीं…लिखा, वक्त की भीड़ में भूला दिया गया। दुर्भाग्यवश उन्हें ऐसे गीत लिखने को बार-बार नहीं कहा गया। चार दशक का सफर महज़ कुछ चुनिंदा लोकप्रिय गानों में सिमट कर रह गया। कहा जाता है कि वह अच्छे अवसरों की कमी व फिल्म जगत की उदासीन व्यवहार से पीड़ित थे। करियर में स्तरीय गीतों का मौका नहीं दिया गया, फिर निराश होकर चलताऊ गाने लिखने लगें।

अस्सी के दशक में बप्पी लहरी के ‘डिस्को’ संगीत की धूम रही, प्रतियोगिता में बने रहने के लिए इंदीवर को स्वयं को वक्त के सांचे में ढाल लिया था। बप्पी दा के संगीत से सजी ‘हिम्मतवाला’ एवं ‘तोहफा’ के लिए टाईमपास गीत ‘ नैनो में सपना’(हिम्मतवाला), ‘प्यार का तोहफा तेरा’ (तोहफा) लिखें। इस तरह मन ही मन फिल्म संगीत के बदलते तर्ज को स्वीकार कर लिया था। कहा जाता है कि उन दिनों वह  कवि रुप में स्वयं को पुन:स्थापित करने के लिए प्रयासरत थे, अब जबकि वह रुकसत हो चुके हैं उनका गीत ‘मधुबन खुश्बू देता है’ याद आता है।

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