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@MeraNature_Literature

मैं मानता हूँ कि मेरी बोलने की आजादी में कहीं न कहीं मोटी-मोटी जंजीरों से लिपटी और शानो-शौकत में सिमटी अदब की खूबी आपको झलकती नहीं है । और मैं ये भी मानता हूँ कि मेरा अदब से इश्क और उससे निकली हर वो लब्ज़ आपको मुझे जिल्लत से देखने पर मजबूर करती होगी । मगर मैं ये हरगिज-हरगिज नहीं मानने को तैयार हूँ कि जो किस्से या नुस्खें आपको पसंद नहीं वो किसी और को भी नागवार गुजरे । मेरी और आपकी बहस बस्स इतनी-सी है कि मेरा खुद से और जमाने से ये इंकलाब है और आपको मेरी ये लड़ाई पसंद नहीं । नसीन की जिंदगी को केवल कागज के पन्नों पे समेटने के सिवाय कभी रेत की लहरों में अकेला छोड़ के भी देखिएगा । माँ कसम,आपको उस रेत की कश्ती के भी नुमाइंदे खुली आँखों से नजर आने लगेंगे । और तब आपको शायद उस नुमाइंदे में अदब की आजादी और उसके खून से सनी कलम की ताकत का अंदाजा भी लग जायेगा । मुझपे ये इलजमात है कि मैं किसी के किस्से को तोड़-मरोड़ कर आज की जरूरत के साथ या उसके एहसासों को अपनी जरूरत समझकर कर पेश करता हूँ या करता रहा हूँ । मुझपे तो ये भी दाग है कि मैं अदब की आजादी की इस लड़ाई को बुलंदियों तक ले जाने में रोजाना किसी न किसी शरीफजादे की जिल्लत भरी गालियाँ भी सुनता रहूँगा । वो कहते है कि जिल्लत की जिंदगी जीने से अच्छा है कि इज्जत की मौत हो । मगर मेरा ये मानना है कि गर वो जिल्लत भरी जिंदगी आप जैसे जाहिल लोगों की सौगात हो तो मैं इसे अपने सीने से लगा के रखूँगा । न सिर्फ सीने से लगाऊँगा बल्कि इस अदब की रहनुमाई में अपनी सारी ताकत झोंक दूँगा । अरे मियां,ऐसा भी क्या नशा जो छोड़े न छूटे और मर-मुरा दे ! तो हाँ मैं नशेरी हूँ लेकिन इस नशे की लत आपको भी लग सकती है जब आप भी किसी की आजादी के लिए लड़ने लगेंगे । वो भी अदब के ऐसे लब्ज़ के लिए जो आपकी तरह चिंखना-चिल्लाना तो चाहती है पर उसकी पहचान ही यही है कि वो बोलती कम है मगर उसकी खामोशी से इस अनपढ़ और जाहिल दुनिया में शोर जादा है । और मेरा कसूर सिर्फ इतना है कि मैं मेरी कलम से उस खामोशी को आवाज देना चाहता हूँ । और ये सच है कि आपको ये हरगिज पसंद नहीं । तो ठीक है बर्खुरदार ,आज से आप और हम केवल इसलिए लड़ते रहेंगे कि आपको अदब की खामोशी मंजूर है और मुझे उसकी आजादी ।

शुक्रिया ,
नसीन निशांत ।

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