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politics

राजनीति यदि इस शब्द का समास विग्रह किया जाये तो कहेगें “नीति से चलने वाला राज्य” !  

कलयुग मे  राजनीति शब्द  तो है   किंतु अर्थ कुछ और ही है और इस शब्द का कोई एक व्यक्तिगत अर्थ नही है !अनेको महानुभवो ने इस शब्द का अलग अर्थ बताया है!

अब मेरे विचार मे तो आज की स्थिति को ध्यान मे रखते हुए इस शब्द का एक ही अर्थ हो सकता है….वो है…साम दाम दंड भेद से हासिल किया गया राज पाठ ….और प्रजा द्वारा इसकी नितियो का किया जाने वाला उपहास!!

इसी विचार को आधार मानते हुए अपने विचार आपसे साझा करने का  “एक प्रयास” मैने किया है!                      यह तो हम सभी जानते है कि राजनीति कई बर्षो से हमारी society मे पेर जमाये हुए है….

वर्तमान समय मे राजनीति हर जगह देखने को मिल सकती है .बच्चो से लेकर बड़ो तक हर व्यक्ति की  राजनीतिक कला उमड़ उमड़ कर बाहर न आए एसा हो ही नही सकता!  अब बच्चो को ही ले लिजिए                                    अगर बच्चो को अपनी मनमर्जी का कोई काम करवाना तो पहले माँ से सिफारिस करेंगे अगर प्रस्ताव रद्द होने के आसार दिखेंगे तो मामला सुप्रीम कोर्ट(दादा -दादी) तक पहुंचेगा! किंतु काम तो वह निकलवा ही लेंगे !                                                                         यह तो हुई बच्चो की बात लेकिन हमारा intention है समाजिक राजनीति का विश्लेषण करना..

                      हम मानते है कि हमारा देश लोकतांत्रिक व्यवस्था पर आधारित देश है!                                      आज हमारे गाँव के सरपंच से लेकर देश के प्रधानमंत्री तक इस देश के नागरिक द्वारा निर्वाचित होते है!और प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार किसी न किसी पार्टी से संबधित होते है !                                           परंतु मेरा कहना यह है कि यदि हमारा देश का नागरिक ही गंभीर और जागरूक नही होगा तो आप ही जानिए उस देश का मुखिया कैसा होगा !     क्योकि आप सभी जानते है कि विधालय का शिक्षक उसी कक्षा पर ज्याद ध्यान देता है                                    जिस कक्षा के विधार्थी गंभीर जागरूक और लगन शील हो!

सीधे शब्दो मे कहा जाय तो आज देश मे  भ्रष्टाचार, बेईमानी,आतंकवाद के लिए  अगर कोई जिम्मेदार है तो वह सरकार नही बल्कि एक आम आदमी है !                                   क्योकि सरकार  के किसी भी पद परे बैठा हुआ व्यक्ति आप के द्वारा चुना गया है !                                  अब वह आप पर निर्भर करता है कि आपने उसे 500 के नोट ,एक क्वाटर बोतल या एक बोरी गेहूं के बदले चुना है या देश हित को ध्यान मे रखते हुए!         

 

                                                                                 गलती उसकी नही है क्योकि उसने तो आपके साथ सौदा किया थाअब पद ग्रहण करके भरपाई करना तो उसका धर्म हुआ !

        आज देश के हित मे कोई भी नियम आता है तो उसको मानने से पहले उसका उपाहस करना प्रारंभ कर देते है ! जैसै मुद्राकरण का नियम आते ही उसके ऊपर तरह तरह की टिप्पणी आने लगी और आज तक आ रही है….

मेरा मानना है जिस तरह से राष्ट्रपति पद पर बैठते ही किसी भी व्यक्ति के सभी राजनितिक पार्टीयो से संबध समाप्त हो जाते है!                                                                        उसी तरह प्रधानमंत्री ,मुख्यमंत्री के पद पर निर्वाचित होने वाले व्यक्ति के संबध उसकी पार्टी से समाप्त हो जाना चहिए!

आज प्रधानमंत्री कोई भी निर्णय ले विपक्ष आलोचना पहले करता है!                                                                          और सरकार और  विपक्ष की तू-तू मै-मै में   प्रधानमंत्री का निर्णय ,एक बहस  का मुद्दा बन जाता है और उसी लपेटे मे हम भी हमारी विचारा धारा वैसी ही बना लेते है!

 मीडिया को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कहा गया है!   इस बात मे कोई दोहराय नही है कि वर्तमान समय मे 80% सोच हमारी मीडिया के अनुसार रहती है.!                                    जो कैमरे पर दिखाया जाता है हम उसे ही पत्थर की लकीर मान लेते है !                                                   लैकिन ऐसा नही है  90% प्रतिशत मीडिया मे वह खबरे दिखाई जाती है जो राजनीतिक पार्टीया हमे दिखाना चाहती है!इसका प्रमुख कारण मिडिया का  आधे से ज्यादा भरण पोषण तो इन्ही के कर कमलो से होता है !        

इन सब तथ्यो का एक ही उपसंहार है कि हमे हमारा नजरिया सरकार के प्रति बदलना होगा! 

   आवश्यकता है.अपने विवेक के अनुसार सरकार के फैसलो पर विश्लेषण करने की ….

आवश्यकता है स्वार्थ की भावना से परे हो देश हित मे सोचने की…

आवश्यकता है दूरगामी विचारधारा रखने की…..

आवश्यकता है हर नागरिक को जागरूक होने की……    

 

केशव भार्गव

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