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सोशल मीडिया के ज़रिए समाज में धंस चुका है नफरत का खंजर

फिलहाल न्यूज़ रूम की बहस है कि बढ़ती जनसंख्या पर कानून की ज़रूरत है या नहीं? यह प्रसंग कुछ ऐसा है कि हर कोई कहेगा, ‘जी हां बिल्कुल है।’ पर उनका क्या होगा जो सैकड़ों साल पुरानी परंपराओं में जकड़े बैठे हैं? संबंध तोड़ने वाली तीन तलाक जैसी बीमारी को धर्मग्रन्थ के मौलिक अधिकार से जोड़कर देख रहे हैं? मेरा सवाल आबादी से जुड़ा नहीं है, मेरा सवाल देश में बढ़ती नफरत से है जो बढ़ती आबादी से भी ज़्यादा खतरनाक होती जा रही है।

बहुत कम ही लोग ये स्वीकार करने को तैयार हैं कि आज समाज में नफरत का खंजर बुरी तरह से धंसा हुआ है, ये नफरत स्मार्ट फोन और सोशल मीडिया के ज़रिए एक-एक आदमी तक पहुंचाई जा रही है। इस नफरत ने इंसान को एक कांच के मर्तबान में बदल दिया है और जो अगर ये मर्तबान टूटा तो तेजाब दूर-दूर तक फैलेगा। कोई अफरज़ुल जलेगा तो कोई डॉ. नारंग इसका शिकार होगा।

एक्शन, डायलॉग और कट, इसके बाद सब कुछ यूट्यूब पर आ जाता है। सब अपनी पसंद का गर्वीला सीन काट लेते है और गर्व की भावना से फेसबुक की वॉल ओतप्रोत दिखाई देने लगती है। कोई राइट विंग का डमरू बजा रहा है तो किसी के पास लेफ्ट विंग की कलम है। कोई अतीत को गाली दे रहा है तो कोई भविष्य का रोना रो रहा है। कैसा होगा इस देश का भविष्य? ये शायद कोई रूहानी फकीर या ज्योतिष का ज्ञाता भी नहीं बता सकता!

इसके बाद सबके अपने-अपने धार्मिक गर्व हैं। कोई साध्वी या साक्षी के तो कोई मौलाना बरकती या ओवेसी के बयान पर गर्व कर रहा है। जो इन लोगों के बयानों पर चिंता करते है, ऐसे लोग गर्व करने वालों को डराते हैं, नकारात्मक माहौल फैला देते हैं। रवीश कुमार जब टीवी पर बोलते हैं और गरीब, मज़दूर, भूखे-नंगों की बात उठाते हैं तो वो वामपंथी हो जाते हैं। तब अचानक राष्ट्रवादी गर्व की कमी पड़ने लगती हैं। ज़रा सा भी गर्व कम हुआ तो वो गर्व हर उस पत्रकार को गाली देकर पूरा किया जा सकता है जो चिंता करता दिखता है। वैसे देश के अन्दर गर्व भरने के कई इंजेक्शन हैं, दिन छिपते ही आप इन्हें न्यूज़ रूम में देखकर अपने गर्व का कोटा फुल कर सकते है।

इस नफरत पर कोई ज़ुबान खोलने वाला नहीं हैं, नफरत की जन्म दर ज़्यादा है और जुबान खोलने वाले मृत्यु दर में गिने जा रहे हैं। हो सकता हैं कि बहुत ही कम को एहसास हो कि एक तीर की तरह है जो लौट कर वापस नहीं आता है। शुरू में इस तीर के इक्का-दुक्का इंसान शिकार होते हैं,  लेकिन बाद में इससे समाज और राष्ट्र के राष्ट्र स्वाहा होते देखे गए है। ये बिलकुल ऐसा ही है जब अरब देशों से नफरत के बयान शुरू हुए थे कि इस्लामी दुनिया पर जुल्म की इंतहा हो चुकी है और अमेरिका-ब्रिटेन की सरकारें और फौजें इसके लिए ज़िम्मेदार हैं। नतीजा! नफरत को बगल में दबाकर खुदा के नाम पर संगठन बने, धमाके हुए, लोग मरे, हर मौत पर नफरत फैलाई गई, मुल्क के मुल्क तबाह और बर्बाद हुए। वहां के मासूम बचपन को कचरे के ढेर से खाना बीनते हुए किसने नहीं देखा?

पैगम्बर के नाम पर बाज़ार फूंकने वाली भीड़ हो या कोई शंभू लाल, ये लोग अचानक पैदा नहीं होते, इन्हें पैदा करती है एक नफरत। अफरज़ुल को मारने के बाद शंभू का चेहरा देखिए, जैसे वो साबित कर रहा हो कि यह हिंदुओं पर हो रहे जुल्म का बदला था। ये हिंदुओं की बहू-बेटियों को लव जिहाद में फंसाकर मुसलमान बनाने की साजिश के ख़िलाफ किया गया प्रहार था। ये खिलजी पर हमला था, औरंगज़ेब पर हमला था। ये कटती हुई उस गौमाता के वीडियो का जवाब था जिसे किसी ने फेसबुक पर डाल कर कहा होगा, “जो गौमाता के दर्द को शेयर नहीं करेगा वो हिन्दू का खून नहीं है।”

इस नफरत का दूसरा रूप तब भी दिखता हैं जब फेसबुक की पोस्ट से बंगाल का बसीरहाट जल उठता है। तब उनका भी चेहरा देख लीजिए, वो मुसलमानों पर हो रहे ज़ुल्म का बदला होता है। वो हर उस बयान का बदला होता हैं जो आवेश में आकर वोट बटोरने वाले दे जाते हैं। वो बदला पहलू खां की मौत का होता है, वो बदला मदरसों के खिलाफ बात करने के लिए होता है। वो बदला अयोध्या का और रोहिंग्या शरणार्थियों को शरण नहीं देने का होता है। जैसे सभी पुराने बदले चुकाने के लिए लोगों को उचित मौका मिल गया हो।

प्रार्थना और इबादत की भूमि पर नफरत के बीज बोए जा रहे हैं, भड़काऊ तकरीरें शेयर की जा रही हैं, भगवान के फोटो डाले जा रहे हैं। हर तीसरा पोस्ट गर्वीला होता है, जो गर्व की बात नहीं करता वो देशद्रोही है, बेअक्ल है और उसे असली इतिहास का ज्ञान नहीं है।

धर्म कहें या मज़हब, ये बस गर्व और नफरत भरने की दुकान बनकर रह गए हैं। जब गर्व की कमी झलकती है तभी तपाक से एक बयान या ट्वीट आ जाता है और लोग फिर से बयानों के पीछे की असलियत समझे बिना उनके सियासी खेल का मोहरा बन जाते है। इस मर्ज़ से निपटना किसी एक के बस की बात नहीं, अब या तो अपना नज़रिया बदल लें और अगर नहीं बदल सकते तो फिर बचपना छोड़िए, धर्म के शिकार बनना और बनाना छोड़िए।

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