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क्या रास्ते से भटक रहे हैं हिन्दुत्व का झंडा बुलंद करने वाले?

बीते 6 दिसंबर को राजस्थान के राजसंमद से हत्याकांड का एक वीडियो सामने आया था जिसमें शंभूलाल रेगर नामक व्यक्ति ने पश्चिम बंगाल के एक मज़दूर अफराज़ुल की बहुत ही बेरहमी से हत्या कर दी थी। इस घटना ने हमें यह सोचने पर मजबूर कर दिया था कि आखिर हम किस ओर जा रहे हैं? एक दूसरे के प्रति लोगों में इतनी ज़्यादा नफरत कहां से आ रही है?

उस वीडियो में आरोपी ने लवजेहाद का ज़िक्र किया था, जिसके बाद तमाम कट्टरपंथी संगठनों द्वारा आरोपी को सहानुभूति दी जाने लगी और उसके परिवार की आर्थिक मदद के लिए अपील की जाने लगी। लोग उसके समर्थन में राजसमंद में एकत्र होने लग गए। किसी के परिवार की मदद करने में कोई बुराई नहीं है, लेकिन यहां इस बात का ध्यान रखना ज़रूरी हो जाता है कि यदि इस तरह से ऐसे लोगों को सहानुभूति और समर्थन मिलेगा तो फिर ये घटनाएं भी आम हो जाएंगी, जो हमारे लिए खतरे का संकेत है।

अगर बात यहीं तक सीमित रहती तो भी ठीक था, लेकिन बात बढ़ते हुए यहां तक पहुंच गई कि आरोपी के समर्थन में जो लोग 15 दिसंबर को उदयपुर में एकत्र हुए थे उन्होंने सरेआम कानून की धज्जियां उड़ा दी। पुलिस द्वारा खदेड़े जाने पर ये उपद्रवी कोर्ट परिसर में दाखिल हो गए और मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, कुछ वकीलों का साथ मिलने पर इन्होनें संविधान की धज्जियां उड़ाते हुए कोर्ट के मुख्य द्वार पर अपने संगठन का ध्वज लहरा दिया।

बताया जा रहा है कि इस शर्मनाक हरकत को हिन्दुत्व के झंडाबरदार कहे जाने वाले संगठनों ने अंजाम दिया, लेकिन जितना हम समझते हैं तो हिन्दुत्व कभी इस तरह की हरकत की इजाज़त नहीं देता। हिन्दू ही क्या दुनिया का कोई भी धर्म इस तरह की शर्मनाक हरकत करने की इजाज़त नहीं देता। इस तरह हरकतें जहां भी हुई हैं वहां के अंजाम हमारे सामने हैं, फिर चाहे वो सीरिया हो या पाकिस्तान।

जो स्थिति आज हमारे सामने दिखाई दे रही है वो एक भयानक दौर की तरफ इशारा कर रही है जहां ‘आंख के बदले आंख’ की तर्ज पर पूरा समाज अंधा होने वाला है।

यह बहुत ही भयावह स्थिति है जिस पर अभी नियंत्रण नहीं किया जाएगा तो स्थिति बद से बदतर होती जाएगी। इस समस्या के लिए कमज़ोर कानून व्यवस्था तो ज़िम्मेदार है ही, लेकिन साथ ही ज़िम्मेदार है हमारे समाज का नैतिक पतन।

हमें यह तय करना होगा कि हम संविधान के तहत चलने वाला एक आदर्श राष्ट्र चाहते हैं या फिर आईएसआईएस की तर्ज पर चलने वाला एक जाहिल समाज, क्योंकि एक आदर्श राष्ट्र की कल्पना तो सर्वधर्म सद्भाव से ही संभव है। इस तरह की घटनाएं हमें यह सोचने पर मजबूर कर रही हैं कि क्या हिन्दुत्व का झंडा बुलंद करने वाले अपने रास्ते से भटक रहे हैं?

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