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2019 चुनाव संविधान को बचाने का आखिरी मौका: मनोज झा इंटरव्यू

बहुत लोग इनको लालू यादव का चाणक्य कहते हैं क्योंकि जब भी लालू यादव मुसीबत में होते हैं तो इन्हें ही याद करते हैं। बहुत लोग इनको एक ऐसा बुद्धिजीवी मानते हैं जो राष्ट्रीय स्तर पर नरेंद्र मोदी और संघ की विचारधारा के विरोध में एक विकल्प तैयार कर रहे हैं। मैंने मनोज झा से मुलाकात की और बिहार के बदलते राजनीतिक परिदृश्य और भारत की राजनीति पर चर्चा की।
सवाल- 33 मिनट में “संघ मुक्त भारत बनाने वाले नीतीश कुमार संघ युक्त बिहार बनाने चले” उसके बाद बिहार की राजनीति कैसे बदली है और उसमें आप राजद को कहां देखते हैं?
उत्तर- जी हां मैंने अपने एक आलेख में भी लिखा था, 33 मिनट में नीतीश जी ने अपनी विचारधारा और राजनीति को बदला, ये घटना विश्व राजनीतिक इतिहास में अपने आप में अनोखा था। ये गरीब और वंचित तबके के जनमत की डकैती थी जिसको नीतीश जी ने नरेंद्र मोदी और अमित शाह जी के साथ मिलकर किया। मैं एक और बात साफ कर दूं, तेजस्वी जी तो बहाना थे नीतीश जी के लिए, असल में वो कभी भी विचारधारा को लेकर साफ नहीं रहे।
सवाल-  क्या लालू प्रसाद यादव 1996 की तरह एक राष्ट्रीय विकल्प मोदी जी के खिलाफ तैयार करने में बड़ी भूमिका निभाएंगे?
उत्तर- देखिये 21 साल में वक्त बहुत बदला। मैंने वाजपेयी जी का भी वक्त देखा है, कोई अपने विपक्ष को दीमक नहीं कहता था। मीडिया को जिस प्रकार से एकतरफा बनाया जा रहा है वो लोकतंत्र के लिए घातक है। लालू जी की कोशिश सारे लोकतांत्रिक, समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष लोगों को साथ लाना है। लालू जी और हमलोग इसमें कोई कोर-कसर नहीं छोड़ेंगे।
सवाल- बिहार में भी क्या आपलोग जो असंतुष्ट नेता हैं राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन से, जैसे जीतनराम मांझी या उपेंद्र कुशवाहा उनको साथ लेकर चुनाव लड़ेंगे?
उत्तर- देखिये, लालू जी नेताओं के बरक्स भी देख रहे है, 2015 का जो जनादेश था वो जनता का जनादेश था। हमलोग जो छोटी-छोटी जमात हैं उनको साथ में लेकर इस बहुसंख्यक अधिनायकवाद का मुकाबला करेंगे।
सवाल- आपकी पहचान राजद के प्रवक्ता के इत्तर एक बड़े बुद्धिजीवी की भी है, आप 2019 के चुनाव को एक बुद्धिजीवी के नाते कैसे देखते हैं?
उत्तर- 2019 का चुनाव आखिरी मौका होगा कि हम अपने ज़िंदा दस्तावेज “संविधान” को बचा पाते हैं कि नहीं। ये लड़ाई लोकतांत्रिक, समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष, प्रगतिशील विचार के लोगों का संघ परिवार के साप्रदायिक विचार से होगा। ये भारत के विचार बनाम राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के विचार की लड़ाई होगी।
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