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Sex

क्लास 12 में मैंने biology चुना था, कोचिंग में physics और chemistry की क्लास एक साथ एक कमरे में चलती थी और math, biology अलग -कमरों में, maths के स्टूडेंट math पढ़ने के बाद हमारे कमरे में आते थे, आते ही वो ब्लैकबोर्ड पर ‘asexual reproduction in fungi’ लिखा देख के हँसना शुरू कर देते थे, इतनी बड़ी हैडिंग में छुपे sex को वो दूर से ही अलग पहचान लेते थे, कहने की बात नहीं की ज्यादातर बच्चे well doing, पढ़े लिखे परिवार से आते थे, जो की भविष्य में इंजीनियर, वैज्ञानिक, प्रोफेसर, आईएएस आदि बनने के लिए maths पढ़ रहे थे। जब academic aspirants का ये हाल है तो, किताबों और अच्छे माहौल से दूर कामकाजी बच्चों की क्या मानसिकता बनती होगी ?
वो दोस्त तो अब नहीं मिलते क्योंकि फेसबुक जैसी चीज़ इज़ाद नहीं हुई थी और मोबाइल बस शुरू ही हुआ था, इसलिए आज वो कहाँ होंगे और sex के बारे में उनका नजरिया क्या होगा मैं नहीं बता सकता, लेकिन शरीर विज्ञान पढ़ने से शरीर को स्त्री-पुरुष के बजाए नर-मादा या उभयलिंगी के रूप में देखने की मेरी समझ जरूर विकसित हुई।  हमें हर plant या animal का वास स्थान, भोजन, उत्सर्जन, प्रजनन आदि का तरीका, सम्बंधित अंग आदि के बारे में विस्तार से पढ़ना होता था इसलिए sex मुझे अन्य   जैविक क्रियाओं की तरह सामान्य लगता है, इसी कारण से मैं स्त्री-पुरुष और sex से जुड़े हुए पूर्वाग्रहों से मुक्त हो पाया।

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