एक बेटा पैदा होने पर खुशी का जश्न मनाते हैं और यदि एक बेटी का जन्म हो जाये तो शान्त हो जाते हैं यहाँ तक कि कोई भी जश्न नहीं मनाने का नियम बनाया गया हैं। लड़के के लिये इतना ज्यादा प्यार कि लड़कों के जन्म की चाह में हम प्राचीन काल से ही लड़कियों को जन्म के समय या जन्म से पहले ही मारते आ रहे हैं, यदि सौभाग्य से वो नहीं मारी जाती तो हम जीवनभर उनके साथ भेदभाव के अनेक तरीके ढूँढ लेते हैं। हांलाकि, हमारे धार्मिक विचार औरत को देवी का स्वरुप मानते हैं लेकिन हम उसे एक इंसान के रुप में पहचानने से ही मना कर देते हैं। हम देवी की पूजा करते हैं, पर लड़कियों का शोषण करते हैं। जहाँ तक कि महिलाओं के संबंध में हमारे दृष्टिकोण का सवाल हैं तो हम दोहरे-मानकों का एक ऐसा समाज हैं जहाँ हमारे विचार और उपदेश हमारे कार्यों से अलग हैं। चलों लिंग असमानता की घटना को समझने का प्रयास करते हैं
:- मेने देखा है लडको को iit / upsc की तैयारइया करआते है और लडकियों को 12 के बाद सादी का मुहरत बनाने लगते है
:- भाई लोग अगर खुद gf बनाये तो कोई कुछ नही बोलता अगर उनकी बहन का कोई bf बन जाये तो समाज और घर बाले और भाई खुद प्रताड़ित करते है
:- मुस्लिमों में भी समान स्थिति हैं और वहाँ भी भेदभाव या परतंत्रता के लिए मंजूरी धार्मिक ग्रंथों और इस्लामी परंपराओं द्वारा प्रदान की जाती है। इसीस तरह अन्य धार्मिक मान्याताओं में भी महिलाओं के साथ एक ही प्रकार से या अलग तरीके से भेदभाव हो रहा हैं।
-; लड़की को बचपन से शिक्षित करना अभी भी एक बुरा निवेश माना जाता हैं क्योंकि एक दिन उसकी शादी होगी और उसे पिता के घर को छोड़कर दूसरे घर जाना पड़ेगा। इसलिये, अच्छी शिक्षा के अभाव में वर्तमान में नौकरियों कौशल माँग की शर्तों को पूरा करने में असक्षम हो जाती हैं, वहीं प्रत्येक साल हाई स्कूल और इंटर मीडिएट में लड़कियों का परिणाम लड़कों से अच्छा होता हैं। ये प्रदर्शित करता हैं कि 12वीं कक्षा के बाद माता-पिता लड़कियों की शिक्षा पर ज्यादा खर्च नहीं करते जिससे कि वो नौकरी प्राप्त करने के क्षेत्र में पिछड़ रही हैं।
-; संवैधानिक सूची के साथ-साथ सभी प्रकार के भेदभाव या असमानताएं चलती रहेंगी लेकिन वास्तिविक बदलाव तो तभी संभव हैं जब पुरुषों की सोच को बदला जाये। ये सोच जब बदलेगी तब मानवता का एक प्रकार पुरुष महिला के साथ समानता का व्यवहार करना शुरु कर दे न कि उन्हें अपना अधीनस्थ समझे। यहाँ तक कि सिर्फ आदमियों को ही नहीं बल्कि महिलाओं को भी औज की संस्कृति के अनुसार अपनी पुरानी रुढ़िवादी सोच बदलनी होगी और जानना होगा कि वो भी इस शोषणकारी पितृसत्तात्मक व्यवस्था का एक अंग बन गयी हैं और पुरुषों को खुद पर हावी होने में सहायता कर रहीं हैं।
## बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ ## A STEP TO FREEDOM transitioning from homelessness entrepreneurship READ AND CONTRIBUTE YOUR IDEA..... WITH Mukul Jain