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हॉनर किलिंग के खिलाफ कौशल्या की लड़ाई, अपने पिता को दिलवाई फांसी की सज़ा

कहते हैं प्यार अंधा होता है, प्यार में अक्सर लोग अपनी हदें पार कर जाते हैं और ऐसे प्यार करनेवालों में ही समाज के नज़रिये को बदलने की ताकत भी होती है। फिर भी ऐसा शायद ही पहले कभी किसी ने देखा या सुना होगा कि अपने प्यार में न्याय की खातिर किसी बेटी ने अपने माता-पिता को फांसी की सज़ा सुनवाई हो।

तमिलनाडु के पलानी ज़िले की रहनेवाली कौशल्या ने ऐसा ही कुछ किया है। आप सोच रहे होंगे कि कैसी बेटी है? जिस मां-बाप ने पाल-पोस कर बड़ा किया, उसे ही फांसी की सज़ा सुनवाने की लड़ाई लड़ी। लेकिन कौशल्या की कहानी जानने के बाद आपकी यह सोच बदल जायेगी। इंजीनियरिंग कॉलेज में पढ़नेवाली कौशल्या को अपने ही क्लास में पढ़नेवाले शंकर नामक के लड़के से प्यार हुआ। कौशल्या, थेवार समुदाय के एक मध्यम वर्गीय परिवार से ताल्लुक रखती थी। साथ ही उसका परिवार राजनीतिक रूप से संपन्न भी था। दूसरी ओर शंकर, पलार जाति से संबंध रखता था, जो कि तमिलनाडु की एक अनुसूचित जाति है। उसके पिता कोमारालिंगम इलाके में दैनिक मज़दूर हैं। शंकर की सामाजिक पृष्ठभूमि इसी आधार पर समझी जा सकती है कि वह अपने परिवार में कॉलेज जानेवाला पहला लड़का था।

शादी के बाद शंकर के साथ कौशल्या, फोटो- स्क्रीनशॉट- Jaathigal Irukkedi Pappa

कौशल्या के परिवारवाले उन दोनों के रिश्ते के खिलाफ थे। बावजूद इसके वर्ष 2015 में कौशल्या ने अपने परिवारवालों की मर्ज़ी के खिलाफ  मंदिर में शंकर से शादी कर ली। शादी के बाद दोनों आठ महीनों तक साथ रहें। टाइम्स ऑफ इंडिया में छपी एक रिपोर्ट में कौशल्या बताती हैं

”शंकर मेरी मां से भी ज्यादा मेरा ख्याल रखता था। मेरे लिए खाना पकाता, मेरे कपड़े धोता और और एक छोटे बच्चे की भांति मेरी केयर करता था। वो हर वो काम करता था जिसे समाज औरतों वाले काम के नाम से बांट देता है”

3 मार्च, 2016 को उडुमालपुर बस स्टैंड के नज़दीक कुछ लोगों ने हंसिया से वार करके शंकर की हत्या कर दी। उन लोगों ने कौशल्या को भी काफी बुरी तरह घायल घायल कर दिया। कई महीनों तक उसका इलाज चला। कौशल्या के अनुसार, शादी के बाद से ही उसके परिवार वालों द्वारा लगातार उन दोनों को धमकियां मिलती रहती थीं, लेकिन उसने कभी यह नहीं सोचा था कि वे लोग इस हद तक क्रूर हो जायेंगे।

कौशल्या के मां-बाप, फोटो- फेसबुक पेज, वर्ल्ड थेवर न्यूज़

 

इस घटना से आहत हो दलित अधिकारों के लिए काम करनेवाली एक गैर-सरकारी संस्था Evidence की मदद से कौशल्या ने अपने परिवारवालों के खिलाफ केस कर दिया। हालांकि केस वापस लेने के लिए उस पर काफी दबाव डाला गया, पर उसने हिम्मत नहीं हारी।

करीब साल भर की लंबी कानूनी लड़ाई लड़ने के बाद आखिरकार उसे न्याय मिला और 12 दिसंबर, 2017 को तिरूपुर ट्रायल कोर्ट ने उसके पिता सहित आठ लोगों को फांसी की सज़ा सुनाई। उसकी मां, अंकल और एक अन्य परिचित को सबूतों के अभाव में बरी कर दिया गया। लेकिन कौशल्या अब बरी करने के फैसले को ऊपरी अदालत में चुनौती देगी।

फिलहाल कौशल्या, वेलिंगटन शहर में अपने सास-ससुर के साथ रहती है। जॉब करने के साथ ही अपने पति शंकर की याद में दलित बच्चों के लिए शंकर थानिपायिरची मंदरम नामक ट्यूशन चला रही है। साथ ही वह उन्हें ‘परई’ नामक वाद्ययंत्र बजाना भी सिखाती है, इस वाद्ययंत्र के संगीत को अक्सर दलित आजादी से जोड़ कर देखा जाता है।

कौशल्या के अनुसार अब वह आगे से किसी और शंकर को इस तरह की क्रूरता का शिकार नहीं होने देना चाहती।

शंकर की हत्या का CCTV फुटेज
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