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एक निवाले के लिए जिसे मेने मार दिया, जिसकी बुनियाद की दम पर मेरी हस्ती टिकी थी

इस तरह मेरे गुनाहों को वो धो देती है

माँ बहुत ग़ुस्से में होती है तो रो देती है

ममता और प्यार का वह रूप है, जिसे भगवान से भी पहले बताया जाता है। देश दुनिया में माँ की ममता की कहानियां बेटा बेटियों को सुनाई जाती ताकि उन्हें यह पता लग सके कि माँ का स्वरूप दुनिया में सबसे महत्वपूर्ण है, कवि ओम व्यास ने कभी कहा था की ये अध्याय नहीं है…

…और माँ का जीवन में कोई पर्याय नहीं है,
माँ…माँ चूडी वाले हाथों के मजबूत कधों का नाम है,
माँ…माँ काशी है, काबा है और चारों धाम है,
माँ…माँ चिंता है, याद है, हिचकी है,
माँ…माँ बच्चे की चोट पर सिसकी है,
माँ…माँ चुल्हा-धुंआ-रोटी और हाथों का छाला है,
माँ…माँ ज़िंदगी की कडवाहट में अमृत का प्याला है।

यह लाइन जब हम सुनते हैं, हमारी आंखे भी नम हो जाती है और हो भी क्यों ना माँ होती ही ऐसी है। जो दुनिया के सारे दुखों को अपनी झोली में लेकर हमारी झोली खुशियों से भर देती है। पिछले दिनों गुजरात में जो हुवा वो बड़ा असहनीय था। कानून कायदे सब को ताक में रखते हुए एक पल के लिए मेरे भी मन मे बस यही खयाल आया था कि में इस व्यक्ति की जान ले लु। फिर मेरी नजर मुनावर राणा के इस शेर पर पड़ गई ” हवा उड़ाए लिए जा रही है हर चादर, पुराने लोग सभी इन्तेक़ाल करने लगे ” कुछ पल के लिए आँखे नम थी और सच्चाई यह थी कि एक माँ ने अपने बच्चे की खुशी के लिए अपनी जान दे दी, पर असल मे यह एक हत्या थी। माँ की ममता की उस स्नहे की जो माँ बेटे के बीच में होती है। उसी माँ की छाती को छलनी कर उसके दूध से पोषण पा हम जीवन को समझने के लायक होते हैं। कोई कैसे अपनी माँ को इस कदर बर्बरता पूर्वक मार सकता है, कैसे कोई उस माँ को जिसके लिए कहा गया है कि “अभी ज़िन्दा है माँ मेरी मुझे कु्छ भी नहीं होगा, मैं जब घर से निकलता हूँ दुआ भी साथ चलती है” जिसके साथ रहते दुवाओं की बरकत रहती है उस माँ को कोई कैसे इस तरह से छत से गिरा गगन चिर उसकी गहराई में पहुंचा सकता है।

मां। सिर्फ एक शब्द है, इस भागदौड़ भरी जिंदगी में हमें शांत करने के लिए। इंसान चाहे कितना भी उम्रदराज क्यों न हो जाए, मां की गोद सी नींद उसे कहीं नहीं आती। बचपन के वो दिन हमें आज भी याद हैं, जब हम बीमार होते तो मां रो दिया करती थी। हमारे लिया पिताजी से वो लड़ जाना। लोगों की नजर से बचाने के लिए वो काला टीका लगाना और तब तक नहीं खाना जब तक वो घर न आ जाए। थोड़े से बीमार क्या हो जाएं, पूरा घर ही अस्पताल बना लेती थी। मामूली सर्दी पर भी इतनी केयर मिलती थी कि स्कूल जाने का मन ही नहीं करता। लेकिन आज उसकी मां बीमार है, वो लड़ रही है मौत से। सिर्फ इसलिए क्योंकि वे कुछ पल और उसके साथ उसे प्यार देने के लिए गुजारना चाहती है। मौत की आंखों में आंखे डालकर वो खड़ी है, लेकिन वो थक गया उसकी सेवा करते करते।  60 साल तक जिसके हाथ नहीं थके खिलाते हुए, आज उसे रोटी देते हुए वो थक गया। ….. खुद को बचाने के लिए आज उसने उसकी ही मां की हत्या कर दी।

जिसने उसे चलना सीखाया आज वही उसे छत पर चलाकर ले गया और नीचे धकेल दिया। उस मां को अहसास भी नहीं था, लेकिन बेटे की छुअन को मां पहचान गई। उसने हंसते हुए मौत को गले लगा लिया, क्योंकि वो अपने बेटे को हारते हुए नहीं देख पा रही थी। बेटे की खुशी के लिए वो चार मंजिला छत से कूद गई। लेकिन उसने आंखे भी बंद की तो बेटे को देखकर।

यह मामला है गुजरात के एक पढ़े-लिखे प्रोफेसर संदीप का। जिसने अपनी रिटायर टीचर मां जयश्री बेन को चौथी मंजिल से धक्का देकर हत्या कर दी। वो भी सिर्फ इसलिए क्योकि वे ब्रेन हैमरेज की शिकार थी और चलने फिरने के काबिल उनकी हालत नहीं थी।

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