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एक साथ चुनावों के लिए देश कितना तैयार है ?

बीती 20 जनवरी को ज़ी न्यूज़ को दिए एक साक्षात्कार में प्रधानमंत्री जी ने एक बार फिर सभी चुनावों को एक साथ कराने की बात कही।

एक साथ चुनाव के लिए देश तैयार है क्या?

देश मे जब भी चुनाव सुधार की बात हुई है, तो उसमें सभी चुनावों खासतौर से लोकसभा और विधानसभा के चुनाव एक साथ करने की मांग ज्यादा जोर शोर से उठी है।

एकसाथ चुनाव कराने की मांग पूर्व में लालकृष्ण आडवाणी जी भी करते आये हैं और वर्तमान में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भी यही बात बार बार बोल रहे हैं।कारण ,इससे बार बार चुनाव के झंझट से छुटकारा मिलेगा।चुनावी खर्चों में कमी आएगी।और बहुत सारी सकारात्मक बातें है इसके पीछे।

तो क्या ये सही समय है ,एकसाथ चुनाव करवाने का?ये जानने के लिए एक बहुत छोटा किन्तु महत्वपूर्ण घटना बताता हूं।

2014 के प्रारम्भ में ,जब लोकसभा चुनाव होने वाले थे ,और साथ मे राजस्थान के विधानसभा के चुनाव भी होने थे।मैं बीकानेर की एक दुकान पर बाल कटवा रहा था ।तो चुनाव की बात चलने पर ,जो नाई बाल काट रहा था मुझसे बोला ,

“वैसे टक्कर तो दोनों में है ,वसुंधरा राजे और मोदी में

लेकिन लगता है मोदी जीत जाएगा।”

उसकी ये बात ये साबित करने के लिए काफी है, कि अभी भी देश की जनता में राजनीतिक जागरूकता कितनी है या वो कितने समझदार वोटर हैं।

उस व्यक्ति को निश्चित तौर पे ये नही पता था कि राज्य में पहले विधानसभा के चुनाव होंगे जिससे प्रदेश का मुख्यमंत्री चुना जाएगा और बाद में लोकसभा के चुनावों से देश का प्रधानमंत्री।

और इससे मैं जरा सा भी आश्चर्यचकित नही हुआ,क्योंकि मेरे काफी शिक्षित यूुवा मित्रों को भी लोकसभा और विधानसभा चुनावों के बारे में उतनी जानकारी नही थी ,जितनी होनी चाहिए।

अब अगर 2019 में हम इस व्यवस्था को लागू करते है ,तो निश्चित तौर पे ये एक अलोकतांत्रिक कदम होगा।

हालांकि मोदी सरकार इसके लिए जल्दबाजी करना चाहेगी ,क्योंकि इससे उन्हें ही वर्तमान परिस्थितियों के हिसाब से फायदा मिलेगा।क्योंकि ज्यादातर राज्यों में उनकी सरकार है ,और विपक्ष भी लगभग न के बराबर है।तो एकसाथ चुनाव कराने पर केंद्र और राज्य दोनों में ही विपक्ष लगभग खत्म हो जाएगा जो सरकार को प्रजातंत्र से तानाशाही की तरफ धकेल देगा।

चुनाव सुधार देश के लिए आवश्यक है ,खासतौर से चुनाव खर्च और आपराधिक नेताओं का सदन में आना जरूर चिंता का विषय है ।असोसिएशन ऑफ डेमोक्रेटिक रिफार्म की एक रिपोर्ट के मुताबिक लोकसभा के एक तिहाई सदस्यों के खिलाफ आपराधिक केस है ,वहीं 85 प्रतिशत सदस्यों के पास एक करोड़ या अधिक की संपत्ति है।

तो क्या आम आदमी और साफ सुथरी छवि वाले व्यक्ति सदन नही जा सकता?तो इन मुद्दों पे जरूर चर्चा होनी चाहिए और सुधार के लिए कदम उठाए जाने चाहिए ,किंतु एकसाथ चुनाव करना फिलहाल जल्दबाजी होगी ।उससे पहले देश की जनता को चुनावों के बारे में जागरूक और शिक्षित करने की जरूरत है ।खासतौर पे युवा पीढ़ी को।

 

 

 

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