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जनता की अदालत मे‌ं जज

हमारे देश भारत में जो भी संवैधानिक संस्थाएँ  हैं सर्वोच्च न्यायालय की प्रतिष्ठा उनमे सर्वोपरि मानी जाती रही है। इक्के दुक्के उदाहरणों को छोड़ दें तो इसने हमेशा अपनी गरिमा के अनुरूप काम किया है और यही कारण है कि हर भारतीय को, चाहे वो आम हो या खास, यह उम्मीद रहती है कि  किसी भी मसले पर जब  कोई उपाय नहीं निकलेगा तब सर्वोच्च न्यायालय इसे जरूर सुलझाएगा। ऐसी स्थिति में इसे विडम्बना ही कहेंगे कि देश की जिस सबसे बड़ी अदालत से हर कोई न्याय की आस लगाए रहता है उसी के चार वरिष्ठ न्यायाधीश न्याय मांगने के लिए जनता के बीच नजर आएं। जी हाँ, मैं बात कर रहा हूँ सुप्रीम कोर्ट के चार वरिष्ठ न्यायाधीशों के हालिया प्रेस कांफ्रेंस की।

बीते शुक्रवार को पूरा देश हैरान रह गया जब सुप्रीम कोर्ट के चार न्यायाधीशों ने आनन् फानन में एक संवाददाता सम्मलेन बुलाया और मुख्य न्यायाधीश पर सही तरीके से काम न करने का आरोप लगाया। हम भारतीयों के लिए ये घटना किसी झटके से कम नहीं था। जिस अदालत से हम कठिन से कठिनतम मामलों के समाधान की आस लगाए रहते हैं वही अदालत अपने अंदरूनी मसलों को लेकर जनता के बीच उपस्थित था। हमने अभी तक कभी-कभार केंद्रीय बार काउंसिल और राज्य बार एसोसिएशनो द्वारा जजो के खिलाफ व्यक्तिगत मामलों में आरोप लगाते देखा-सुना था लेकिन यह अपने तरह की पहली ही घटना थी जब सुप्रीम कोर्ट के चार वरिष्ठ न्यायाधीश अपने मुख्य न्यायाधीश के खिलाफ प्रेस कांफ्रेंस करें।

प्रेस कांफ्रेंस में चारों न्यायाधीशों ने चीफ जस्टिस पे यह आरोप लगाया कि वो केस आवंटित करने का काम न्यायसंगत तरीके से नहीं कर रहे हैं। यहाँ पर एक बात गौर करने लायक है कि विभिन मामलों के आवंटन का अधिकार मुख्य न्यायाधीश का ही होता है। तो क्या यह मान लिया जाए कि इन न्यायाधीशों की नाराजगी मनपसंद केस ना मिलने को लेकर थी ! अगर ऐसा था भी तो क्या इस मसले को मीडिया के मार्फ़त सार्वजिक करने का फैसला उचित था ? बेहतर तो यही होता कि इस आतंरिक मतभेद को आपसी बातचीत के जरिये दूर करने के प्रयास किये जाते। अगर यह प्रयास सफल नहीं हुआ, जैसा की इन्होने प्रेस कांफ्रेंस के दौरान संकेत दिए, तब भी इस मुद्दे को यूँ उछालने से किसी का भला नहीं हुआ। ये न्यायाधीश मुख्य न्यायाधीश की कार्यप्रणाली के खिलाफ स्वतः संज्ञान लेकर कोई फैसला सुना सकते थे अथवा अपनी बात लेकर राष्ट्रपति के पास जा सकते थे। लेकिन इन सबके बजाए इन्होने प्रेस कांफ्रेंस करना उचित समझा।

इस प्रेस कांफ्रेंस से इस समस्या का किस हद तक समाधान निकलेगा यह तो किसी को मालूम नहीं है लेकिन इस घटना ने एक उदाहरण जरूर प्रस्तुत किया है। आने वाले समय में यह संभव है कि अन्य अदालतों के जज़ भी इसका अनुकरण करें और हर छोटे बड़े आपसी मतभेद पर प्रेस कांफ्रेंस बुलाने लगें। जो सुप्रीम कोर्ट खुद किसी भी मामले के मीडिया ट्रायल का विरोधी है उसी के चार सीनियर जज मुख्य न्यायाधीश से अपने मतभेद के मुद्दे को मीडिया के समक्ष क्यों लेकर गए , यह बात फ़िलहाल तो मेरी समझ से परे है। इस घटना ने ना केवल सुप्रीम कोर्ट की प्रतिष्ठा को धूमिल करने का काम किया है वरन देश के जनमानस का इस सर्वोच्च अदालत पर जो भरोसा है उसे भी एक हद तक डिगा दिया है।

बहरहाल यह उम्मीद करनी चाहिए कि यह विवाद जल्द ही सुलझेगा और हमारी शीर्षस्थ न्यायिक संस्था अपनी और किरकिरी नहीं करवाएगा।

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