आज तकनीक के क्षेत्र में विश्र्व के अन्य देशों के साथ साथ भारत ने भी बहुत तरक्की की है। आज समृद्ध तकनीक के कारण ही बहुत से कार्य आसान हो गए हैं। सुबह उठने से लेकर रात को सोने तक हम तकनीक से अछूते नहीं हैं। बात अगर किसी से संपर्क करने की हो तो जब ग्राहम बेल ने टेलीफोन का आविष्कार नहीं किया था तब चिट्ठी लिखकर ही एक दिल का पैगाम दूसरे दिल तक पहुंचता था। उस समय मोबाइल फोन तो था नहीं कि नंबर डायल किया और बात करली बल्कि तब तो पहले चिट्ठी लिखो, फिर पोस्ट ऑफिस जाकर मोहर लगवाओ, उसपर टिकिट चिपकाओ और लाल रंग के लेटर बॉक्स में डालकर आओ… तब कहीं 3-4 दिन लगते थे उस चिट्ठी को पहुंचने में।
उस समय हमें इतना सारा ताम झाम भी अच्छा लगता था किसी अपने से बात करके, उसे अपने दिल की बात बताके दिल को एक अलग ही सुकून मिलता था। दूर दूर के रिश्तेदारों से भी तो प्यार कायम रखना होता था तभी तो चिट्ठियों का सिलसिला यूं ही चलता रहता था। खाकी वर्दी में आने वाले डाकिया का घर में हर कोई इंतज़ार करता था, डाकिया की एक आवाज़ पर पूरा घर दौड़ा चला आता था। चिट्ठियों के ज़रिये ही रिश्ते पक्के हुआ करते थे, निमंत्रण दिये जाते थे।
लेकिन आज हमारे पास टेलीफोन हैं, मोबाइल फोन हैं पर फिर भी दिलों में दूरियां हैं। आज हमें फेसबुक से पता चलता है कि हमारे दोस्त या रिश्तेदार का जन्मदिन कब है। चाहे हम उस इंसान के सामने से चार बार गुज़रें पर विश तो फेसबुक और वॉट्सऐप के ज़रिये ही करते हैं। बहुत कम ही ऐसा होता है कि कोई सामने से जाकर किसी को विश करे।
जब तकनीकी क्षेत्र से हमारा देश समृद्ध नहीं था तो शहर में जाकर कमाने वाले बच्चे भी अपने माता पिता को चिट्ठियां लिखा करते थे पर आज तो दिन में एक फोन भी करने वाले बच्चे बहुत कम हैं। अगर घर से फोन आ भी जाये तो बिज़ी हूं ये कहकर फोन काट देते हैं। वही तकनीक जिसे हम अपना समय बचाने वाला मानते हैं वही हमारा सबसे ज़्यादा समय बर्बाद करती है, घर में एक साथ बैठा हुआ परिवार भी फेसबुक पर अपना समय वयतीत करता है बजाय की एक दूसरे से बात करने में। आज घर में रहकर भी एक कमरे से दूसरे कमरे में जाने की बजाय मैसेज पर ही बात हो जाती है।