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बदलते साल के कुछ बदलती तस्वीरे

भारत में जब से सामाजिक जीवन की शुरुआत हुई है तब से कितनी सदियां आई और गई, समय ने लोगों की सोच और माहौल दोनों को बदलने में कामयाब रही है, मगर महिलाओं पर होती हिंसा को बदलने में कामयाब न रही। समय और साल दोंनो ने बेबस और लाचार महिलाओं को अलग अलग दुखों ( लिंग भेदभाव, रंग भेद, शारिरिक शोषण, दमन, छेड़छाड़, निरादर ) से दो चार होते देखा है।

21वी सदी के भारत में तकनीकी प्रगति और महिलाओं के विरूद्ध हिंसा दोनों ही साथ साथ चल रहे है। सेंसेक्स की सीढ़ियों के तरह हर महीने इसमें भी उतार चढ़ाव होते रहते है, कभी किसी महीने तकनीक आगे होता है तो कभी किसी रोज महिलाओं पर होती हिंसा। हर साल ये सीढिया नीचे जाने के बजाए बढ़ते ही जा रही है।

महिलाओं के प्रति होती यह हिंसा अब एक बड़ा मुद्दा बन चुकी है और इसे अब और ज्यादा अनदेखा नहीं किया जा सकता क्योंकि महिलाएं हमारे देश की आधी जनसंख्या का प्रतिनिधित्व करती है।

अगर हिंसा की बात करे तो साल 2017 के शुरूआत में नववर्ष की पूर्व संध्या पर बेंगलुरु में हुई सार्वजनिक छेड़खानी की घटना हो या बीएचयू हिंसा  हो इन सब से हम यही अंदाज़ा लगा सकते है कि सरकार महिलाओं पर आए दिन हो रही हिंसा पर पूरी तरह से क़ाबू नहीं कर पायी है। बदलते वक्त और हालातों ने इन्हें आत्मनिर्भर व सशक्त बनना सीखा दिया है। वे अपनी अधिकारों और सुविधाओं के प्रति जागरूक भी हो गयी है।

एक वक्त था जब औरतों को पर्दे के पीछे रहने की सख्त हिदायत दी जाती थी। जिसका उल्लंघन होने पर उनके साथ बहुत बुरा सुलूक किया जाता था। समाज में महिलाओं के लिए शिक्षा नाम की कोई चीज़ नहीं थी।

बदलते वक्त के साथ हमारा देश भी बदला और आज महिलाओं की स्थिति में सकारात्मक बदलाव देखा जा रहा है। अब वे बढ़ चढ़ कर सामाजिक कार्यों में हिस्सा ले रही है।

जाते जाते अगर साल 2017 को देखे तो जहाँ एक ओर शुरू होती साल बेहद पीड़ादायक रहा वहीं दूसरी ओर महिलाओं को छूते मुक़ाम का गवाह भी रहा है।

भारत में पहली बार कोई महिला ऑफिसर को फाइटर पॉयलेट बनाया गया है। अब वे घर और देश की कमान के साथ साथ जंग की कमान भी संभालते नज़र आएँगी। खेल जगत की बात करे तो पहली बार भारत महिला वर्ल्डकप 2017 में उपविजेता के तौर पर पाया गया है। वहीं दूसरी ओर 17 साल बाद फिर से मिस वर्ल्ड का ताज़ भारत के सर आया है।

इतना ही नहीं जाते जाते यह साल मुस्लिम महिलाओं के लिए ट्रिपल तलाक़ बिल को ध्वनिमत से पास कर के हर साल के तरह एक नया इतिहास रचने का गवाह भी रहा है।

शुरूआत में उठे प्रश्न को अंत से करारा जवाब मिला, पुरूष – महिला के भेद पर समाज को सही हिसाब मिला।

 

श्रुति ?

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