लिख रहा हूँ मैं जिसका अंजाम आज, कल उसका आगाज़ आएगा
मेरे लहू का हर एक कतरा इंकलाब लाएगा
मैं रहूँ ना रहूँ ये वादा है तुझसे मेरा
मरे बाद वतन पे मिटने वालों का सैलाब आएगा |
बंद करो ये तमाशा मुद्दा हुआ पुराना जो तब का है
हिंदुस्तान कल भी सबका था, हिंदुस्तान आज भी सबका है
नहीं तौड़ पाओगे देश तुम व्यर्थ की बातों पर, आघातों पर, प्रतिघातों पर
जो खून गिरा धरती पर वो हर मजहब का है |
यूँ कैद है जो पंछी पिजरों में, उड़ जाने दो इन्हें खुले आसमानों में
जरा भरोसा रखना जलती क्षमा के इन परवानों में
वक्त की तारीख बदल देंगे एक दिन ये नौजवाँ
लौट कर आने दो इन्हें तौड़ कर जाम मयखानों से मैदानों में |
मौसम कई और आयेंगे, प्रेम वशीभूत होकर प्रणय गीत गाने के
आँखों के मुस्कुराने के, होठों के गुनगुनाने के
दौर नहीं है ये साकी का, जामों का, महफिलों का, पैमानों का
ये ज़माने है अपने लहू में उबाल को आजमाने के