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लाभ का पद -जीजा

लाभ का पद -जीजा
सुनील जैन राही
एम-9810 960 285
सरकार में जीजा का पद नहीं होता, मान लिया जाता है। जो जीजा मान लिया जाता है, उसका उत्‍तरदायित्‍व सालों और सालियों के प्रति बढ़ जाता है।  सरकार में सालियों को लाभ माना जाता है। साले तो अपने आप ही जीजा की सरकार मान लेते हैं। सरकार में वैसे तो सभी जीजा ही होते है, लेकिन सालों की भूमिका में कई लोग पाए जाते हैं, जो केवल जीजा के लाभ के बारे में सोचते हैं और लाभ की स्थिति पैदा करते हैं। सरकार जीजा के बल पर नहीं सालों से चलती है। सरकार चलाने के लिए कुछ महानुभाव सालियों की भूमिका में भी पाए जाते हैं। उन कथित सालियों के माध्‍यम से विपक्ष को बांधे रखा जाता है। सरकार साली को शिखण्‍डी की तरह इस्‍तेमाल करती है, जिससे विपक्ष के भीष्‍म को साधा जा सके। विपक्ष, साली की आड़ में सरकार पर वार नहीं कर पाता और जीजा लाभ ले जाता हैं।
जीजा सरकार में हो या ससुराल में अथवा फिल्‍मों का, वह हमेशा लाभ के पद पर ही होता है। जीजा को जीजा ही कहते हैं, दामाद कहने पर कई और अर्थ सामने आने लगते हैं। सरकारी दामाद तो हो सकता है, लेकिन सरकारी जीजा नहीं। जीजा के आने के बाद ससुराल का खान-पान, रहन-सहन और तो  और घर पर आने वाले का अतिथियों से बातचीत का लहजा भी बदल जाता है।  साथ ही बदल जाता है घर का बजट। महीने का बजट दो दिन में समाप्‍त हो जाता है। जीजा कितना ही कमीना क्‍यों न हो उससे कोई पंगा नहीं लेता। वैसे जीजा अक्‍सर ही कमीने के रूप में पाए जाते हैं। जीजा बनते ही उसमें आदमी के गुण समाप्‍त हो जाते हैं। गठबंधन वही सफल होता है, जिसमें जीजा-साले की मिली भगत हो। जीजा की नजर माल पर और नियत साली पर। जब साली गरीब और जीजा अमीर होता है, तब ऐसा लगता है जैसे निर्दलीय को मंत्री पद मिल जाए और साली अमीर हो जीजा गरीब तो बहुमत प्राप्‍त पार्टी को निर्दलियेां का समर्थन जैसी स्थिति हो जाती है।
यह जरूरी नहीं कि ससुराल में जीजा की दुर्गति न होती हो। सरकार में भ्रष्‍टाचार में लिप्‍त जीजा और ससुराल में बेरोजगार जीजा एक ही थैली के चटटे-बटटे होते हैं। सरकार में उसी की इज्‍जत होती है जो भ्रष्‍ट हो और पकड़ा ना जाए तथा ससुराल में वही जीजा कामयाब होता है जो उच्‍च पदस्‍थ भले ही ना हो, लेकिन गांठ का पूरा और आंख अंधा अवश्‍य हो। जीजा लूटने के लिए मशूहर होते हैं, तो लुटने के लिए भी। साली सामने आते ही उसका बटुआ ऐसे खुल जाता है जैसे चुनाव में वोट बैंक के लिए नोट।
 लक्षण से जीजा की पहचान होती है। एक तो वह कभी सीधे नहीं चलता है, उसकी चाल में सांप का बांकपन, उसकी आंखें अपराधी की तरह झुकीं होती हैं। वह हमेशा नेता की तरह आश्‍वासन की मुद्रा में होता है। वैसे तो जीजा बनते ही जेहन अपराधी हो जाता है, जैसे पुलिस में आते ही न्‍योछावर। सावन के अंधे की तरह उसे हर तरफ हरियाली ही हरियाली नज़र आती है। मार्च के बाबू की तरह फूल जाता है, चुनावी सड़क की तरह चमक जाता है, उसकी खाल मोटी और बेशर्म हो जाती है।
जैसे ही जीजा का नाम आता है, सालियों की मां कंगारू की तरह अपने आंचल में छिपा लेती है, कहीं गलती से भी जीजा की नजर न पड़ जाए। सालियों को जीजा अमरूद पर लगे नमक की तरह लगता है। जीजा को साली चाय की प्‍याली। सामने आते ही सुड़क जाने की इच्‍छा हो जाती है। यह भी तय है कि साला भी जीजा के माल को अपना समझता है। सरकार में या घर में जीजा कम साले की मौज ज्‍यादा होती है। जब भी घोटाला होता है, पकड़ा जीजा ही जाता है। आज तक किसी साले को जेल जाते नहीं सुना होगा। जेल और जीजा का रिश्‍ता पुलिस और न्‍योछावर का है। जेल सरकारी हो या घर की। सरकारी जेल में भी जली रोटी मिलती है और घर में जलीकटी के बाद रोटी मिल जाती है। साले तो वैसे भी मशहूर है-दीवार खाई आलो (तिखाल) ने और घर खाया सालों ने।
जीजा सरकारी हो या निजी या फिर पराया जीजा, कोई सा भी जीजा, साली के लिए विश्‍वास योग्‍य नहीं है और ना ही दूध का धुला।
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