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हिंदी हमारी राजभाषा

आज 21वी सदी का दौर है हर लोगो के जुबा में अंग्रेजी छाया हुआ है. इसी अंग्रेज़ी से समय निकाल कर आज हम ‘विश्व हिंदी दिवस’ मना रहे है.

जैसे जैसे सदी बदलता गया वैसे वैसे हिंदी में भी बदलाव आता गया. पहले फ़ेसबुक पे ट्विटर पे लोग ऐसे ही मोबाइल के कीबोर्ड वाली इंग्लिश से टाइप कर लिख देते थे. उस हिंदी को देख अधपकी हिंदी का एहसास होता था.

लेकिन जब से गूगल हिंदी इनपुट का और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का दौर आया है तब से हिंदी खुश मिजाज हो गयी.

विदेशी धरती पे जा नरेंद्र मोदी जी का हिंदी में भाषण देना, विदेशी धरती पे प्रवासीय भारतीयों से हिंदी में संवाद करना ये हमारे हिंदी को संबल प्रदान करता है. आज जिधर नजर घुमाओ उधर सिर्फ हिंदी ही हिंदी नजर आ रही है. चाहे वो फ़ेसबुक हो ट्विटर हो व्हाट्सएप हो हर जगह हिंदी की नई रंगमंच दिखाई दे रही है.

आज जितने भी नए ज़बाने के लेखक है वो सभी अपनी कहानियां कविताये हिंदी में लिख रहे है. मातृत्व प्रेम और हिंदी की सौंधी सुगंध सबको आकर्षित कर रही है. देश मे 78 % लोग हिंदी बोल रहे है.

लेकिन आज भी कुछ वर्ग है जो हिंदी से कटा हुआ है, ये बहुत ही चिंतनीय विषय है, इस विषय में सोचना होगा जो वर्ग हिंदी से कटा हुआ उनके अंदर हिंदी की हवा भरनी होगी.

हिंदी ही एक ऐसी भाषा है जो सब जगहों पे आसानी से बोली जा सकती है. 2015 के आंकड़ों के अनुसार यह दुनिया में सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा बन चुकी है.

2005 में दुनिया के 160 देशों में हिंदी बोलने वालों की अनुमानित संख्या 1,10,29,96,447 थी. उस समय चीन की मंदारिन भाषा बोलने वालों की संख्या इससे कुछ अधिक थी. लेकिन 2015 में दुनिया के सभी 206 देशों में करीब 1,30,00,00,000 (एक अरब तीस करोड़) लोग हिंदी बोल रहे हैं और अब हिंदी बोलनेवालों की संख्या दुनिया में सबसे ज्यादा हो चुकी है.

मुंबई विश्र्वविद्यालय के हिंदी विभाग के पूर्व अध्यक्ष डॉ. करुणाशंकर उपाध्याय अपनी पुस्तक ‘हिंदी का विश्र्व संदर्भ’ में सारणीबद्ध आंकड़े देते हुए कहते हैं कि भारत एक उभरती हुई अर्थव्यवस्था है. यहां के पेशेवर युवा दुनिया के सभी देशों में पहुंच रहे हैं और दुनिया भर की बहुराष्ट्रीय कंपनियां भारत में निवेश के लिए आ रही हैं. इसलिए एक तरफ हिंदीभाषी दुनिया भर में फैल रहे हैं, तो दूसरी ओर बहुराष्ट्रीय कंपनियों को अपना व्यवसाय चलाने के लिए अपने कर्मचारियों को हिंदी सिखानी पड़ रही है. तेजी से हिंदी सीखने वाले देशों में चीन सबसे आगे है.

फिलहाल चीन के 20 विश्र्वविद्यालयों में हिंदी पढ़ाई जा रही है. 2020 तक वहां हिंदी पढ़ाने वाले विश्र्वविद्यालयों की संख्या 50 तक पहुंच जाने की उम्मीद है. यहां तक कि चीन ने अपने 10 लाख सैनिकों को भी हिंदी सिखा रखी है. उपाध्याय के अनुसार अंतरराष्ट्रीय मंच पर बढ़ी भारत की साख के कारण भी दुनिया के लोगों की हिंदी और हिंदुस्तान में रुचि बढ़ाई है.

डॉ. करुणाशंकर उपाध्याय ने अपनी पुस्तक में दिए आंकड़ों में डॉ. जयंतीप्रसाद नौटियाल द्वारा 2012 में किए गए शोध अध्ययन के अलावा, 1999 की जनगणना, द व‌र्ल्ड आल्मेनक एंड बुक ऑफ फैक्ट्स, न्यूज पेपर एंटरप्राइजेज एसोसिएशन अंक, न्यूयार्क और मनोरमा इयर बुक इत्यादि को आधार बनाया है. पुस्तक के अनुसार हिंदी के बाद दुनिया में सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा चीन की मंदारिन है. लेकिन मंदारिन बोलने वालों की संख्या चीन में ही भारत में हिंदी बोलने वालों की संख्या से काफी कम है.

चीनी न्यूज एजेंसी सिन्हुआ की एक रिपोर्ट के अनुसार केवल 70 फीसद चीनी ही मंदारिन बोलते हैं। जबकि भारत में हिंदी बोलने वालों की संख्या करीब 78 फीसद है. दुनिया में 64 करोड़ लोगों की मातृभाषा हिंदी है. जबकि 20 करोड़ लोगों की दूसरी भाषा, एवं 44 करोड़ लोगों की तीसरी, चौथी या पांचवीं भाषा हिंदी है. भारत के अलावा मॉरीशस, सूरीनाम, फिजी, गयाना, ट्रिनिडाड और टोबैगो आदि देशों में हिंदी बहुप्रयुक्त भाषा है.

भारत के बाहर फिजी ऐसा देश है, जहां हिंदी को राजभाषा का दर्जा प्राप्त है. हिंदी को वहां की संसद में प्रयुक्त करने की मान्यता प्राप्त है. मॉरीशस में तो बाकायदा ‘विश्र्व हिंदी सचिवालय’ की स्थापना हुई है, जिसका उद्देश्य ही हिंदी को विश्र्वस्तर पर प्रतिष्ठित करना है.

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