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मेरी डायरी में रोहित वेमुला प्रसंग: संस्थागत हत्या से अब तक

17 जनवरी 2016

हैदराबाद विश्वविद्यालय से निष्कासित पांच दलित छात्रों में से कथित रूप से एक छात्र की आत्महत्या बेहद दु:खद है। प्रतिरोध का रास्ता आत्महत्या तक तो नहीं जाता! मन बहुत विचलित है।

19 जनवरी 2016

आज हैदराबाद विश्वविद्यालय में उमड़ा विशाल जनसमूह, आक्रोश और विरोध से अधिक तमाशे और अपनी-अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं को भुनाने का मंच बन गया है!

20 जनवरी 2016

[1.] स्मृति ईरानी जी आज की प्रेस आपके सुवचनों पर प्रतिक्रिया देते हुए आपसे ऐसा कहा जा सकता था कि आप क्या जाने कि कैंपस किन सपनों और किन उद्देश्यों के साथ जाया जाता है? आप क्या जाने कि कैंपस के छात्रों की समस्याएं क्या होती हैं, क्योंकि कैंपस में इन्हीं सपनों और उद्देश्यों के साथ जाने का आपको अवसर ही नहीं मिला।

लेकिन मेरी प्रतिक्रिया ऐसी नहीं हो सकती है। अपने अनुभवों से जानती हूं कि ऐसी बातें समझने के लिए शैक्षणिक योग्यता नहीं संवेदनशीलता ही पर्याप्त है।

[2.] स्मृति ईरानी दिल्ली में बैठकर प्रेस कॉन्फ्रेस के माध्यम से खाए-अघाए लोगों की तरह रोहित की हत्या पर जिस तरह के घटिया बयान दे रही हैं, अगर वो यह समझती हैं कि इस तरह से वो खुद को या अपनी सरकार को बचा ले जाएंगी तो कान खोलकर सुन लीजिए हमारी “आदरणीय शिक्षा मंत्री जी” ऐसा हम होने नहीं देंगे।

21 जनवरी 2017

रोहित का परिवार आर्थिक रूप से रोहित पर ही निर्भर था, ऐसा आज रोहित के छोटे भाई के बयान से पता चला। पिछले सात महीने से रोहित की स्कॉलरशिप रूकी हुई थी, जिसके चलते उस पर काफी कर्ज़ भी हो गया था।

अब जब रोहित नहीं है और बड़े-बड़े नेताओं के अतिरिक्त संस्थाएं, राजनीतिक पार्टियां उसके लिए न्याय की बात करते हुए लगातार सामने आ रही हैं, तब भी रोहित के परिवार के लिए अब तक किसी भी तरह की आर्थिक सहायता क्यों नहीं उपलब्ध कराई जा सकी है? कोई और नहीं तो यहां आज आए दिल्ली के मुख्यमंत्री तो ऐसी घोषणा कर ही सकते थे!

अभी तो आंदोलन चल रहा है जब कुछ दिन बाद आंदोलन शांत पड़ जाएगा, तब रोहित के परिवार की सुध लेने वाला, उनकी मदद करने वाला कौन होगा!

26 जनवरी 2016

हैदराबाद विश्वविद्यालय की ज्वॉइन्ट एक्शन कमेटी फॉर सोशल जस्टिस ने कल अॉल इन्डिया यूनिवर्सिटी स्ट्राइक का आह्वान किया है। रोहित वेमुला मामले में चल रहे आंदोलन के देशव्यापी होने की दिशा में यह महत्वपूर्ण दिन होगा।

लगातार चल रहे इस आंदोलन के जिस एक पक्ष पर बहुत कम चर्चा हो रही है, वह है अनिश्चित कालीन भूख हड़ताल पर बैठे छात्र-छात्राओं की बात। इनमें से दो को आज हॉस्पिटल में भर्ती किया गया है और दो लड़कियों की हालत भी चिंताजनक है। अनिश्चित काल की भूख हड़ताल पर बैठना नैतिक मजबूती और साहस से ही संभव होता है। हम सभी को न्याय की इस लड़ाई में इनके साथ खड़ा होना चाहिए। हालांकि मैं यह चाहूंगी कि भूख हड़ताल के कारण अपने जीवन को संकट मे डालने के बजाय प्रतिरोध के अन्य कारगर तरीकों को अपनाकर अन्यायी व्यवस्था के वजूद के समक्ष संकट खड़े किये जाएं।

28 जनवरी 2017

हैदराबाद विश्वविद्यालय का वह एक भी विद्यार्थी ‘लायक’ नहीं है जिसे ठीक ‘अभी’ क्लास जाकर पढ़ने-लिखने की बहुत अधिक चिंता सताने लगी है! जिस समय प्रोटेस्ट को लगातार चलाए रखने की ज़रूरत है, तब कुछ शिक्षक और विद्यार्थी औपचारिक कक्षाओं को बहाल करने की मांग करने लगे हैं। जबकि पढ़ने-पढ़ाने के लिए औपचारिक कक्षाओं की नहीं बल्कि इच्छाशक्ति की ज़रूरत होती है।

विश्वविद्यालय में ऐसी जगहों का अभाव नहीं है जहां अनौपचारिक तरीके से पढ़ने-पढ़ाने का काम किया जा सकता है। इस तरह से की जाने वाली पढ़ाई-लिखाई अपने आप में एक प्रतिरोध भी होगा। लाइब्रेरी, रीडिंग रूम, लेबोरेट्री जैसी जगहें ज़रूर खुली होनी चाहिए, जिनका दूसरा कोई विकल्प नहीं है। कुछ कार्यालयी गतिविधियां भी चलती रहनी चाहिए ताकि स्कॉलरशिप सहित विद्यार्थियों के अन्य बेहद ज़रूरी काम नहीं रूकें। लेकिन हमें औपचारिक कक्षाओं का लगातार बहिष्कार करना चाहिए। यह हमारे हाथ में है और यही हमारी ताकत भी है। ज़रूरी है कि हम इस समय स्वार्थी होने से बचें।

30 जनवरी 2016

काश रोहित आज अपने जन्मदिन की शुभकामनाएं लेने के लिए जीवित होते।

22 मार्च 2016

वीसी साहब, रोहित वेमुला की आत्महत्या के बाद पूरा विश्वविद्यालय शोक में डूबा हुआ था, आक्रोश में था। आप विद्यार्थियों से संवाद करने की कोशिश किए बिना अपने इस्तीफे की मांग के बरअक्स झांसा देने के लिए लंबी छुट्टी पर चले गए। जब आपको अपने विश्वस्त सूत्रों से पता चला होगा और आप आश्वस्त हो गये होंगे कि मामला शांत हो रहा है, तो चुपके से वापस आ गए। आपने इस बार भी संवाद करने और विद्यार्थियों का मूड भांपने की कोशिश नहीं की।

थोपी हुई ज़बरदस्ती की हुकूमत बन कर आएंगे तो क्या लोग फूल माला लिए खड़े मिलेंगे? क्या यहां के विद्यार्थी भेड़-बकरी हैं? ज़्यादा चतुर बनने के बजाय इस्तीफा दीजिए और नैतिक ताकत रखते हैं तो निर्दोष साबित होने तक किसी भी तरह के प्रशासनिक पद से दूर रहिए।

जैसी जानकारी आ रही है, खाना-पीना और इंटरनेट सुविधा बंद करने की ज़ुर्रत कर रहे हैं आप? पुलिसिया दमन की भी फिराक में हैं। आत्मघाती मत बनिए। इस बार गलती करेंगे तो माता स्मृति भी नहीं बचा पाएंगी आपको। छुपने तक की जगह नहीं मिलेगी।

24 मार्च 2016

विशाल विरोध सभा के बाद विद्यार्थियों के रोष भरे नारों से विश्वविद्यालय परिसर गूंज रहा है और जबरन वीसी बने बैठे क्रूर तानाशाह अप्पा राव का पुतला धू-धू कर जल रहा है।

25 मार्च 2016

“23 मार्च-शहीद दिवस। 23 मार्च- होली-रंगों का त्यौहार। इस दिन जिस आदमी ने आन्दोलन करते हुए छात्रों के खून से होली खेली है, उसे और उन शिक्षकों को जो विद्यार्थियों के बजाय प्रशासन के साथ खड़े हैं, चुल्लू भर पानी में डूब मरना चाहिए। जिस वीसी को यहां के विद्यार्थी प्यार नहीं करते, आदर नहीं करते यदि वह चुल्लू भर पानी में नहीं डूब सकता तो कम से कम उसे अपना पद तो छोड़ ही देना चाहिए। लेकिन ये पावर-हंग्री लोग कभी ऐसा नहीं करेंगे!”

[हैदराबाद विश्वविद्यालय में आज शाम की प्रतिरोध सभा में बोलते हुए प्रो. चमन लाल]

 26 मार्च 2016

आज शाम कैंडल मार्च के बाद चल रही प्रतिरोध सभा में एक साथी ने स्वीकार किया कि वह नरेन्द्र मोदी का घोर प्रशंसक था। उसने कहा कि विश्वविद्यालयों में दमन और इस पर सरकार का संवेदनहीन रुख उसे भीतर तक तोड़ गया है। उसने आगे जो कहा उसका आशय यह था कि वह अब मोदी के मायाजाल से बाहर आ गया है। वह साथी मोदी जी की शातिर भाषा में ‘दिव्यचक्षु’ है। उसने कल की प्रतिरोध सभा में वीसी अप्पा राव के अलावा नरेन्द्र मोदी और स्मृति ईरानी मुर्दाबाद के भी रोष भरे नारे लगाए थे।

अपनी ही करतूत से मोदी सरकार डूब रही है। मोदी की चमक फीकी पड़ रही है। यह अप्पाराव और विश्वविद्यालय प्रशासन फिर क्या ठहरा?

27 मार्च 2016

हैदराबाद विश्वविद्यालय के नॉर्थ कैंपस से साउथ कैंपस तक के कैंडल मार्च में आज विद्यार्थियों की ज़बरदस्त भागीदीरी रही। एक वक्ता ने आज की प्रतिरोध सभा को संबोधित करते हुए कहा, “पहले दिन प्रतिरोध सभा में लोगों की भागीदारी बहुत कम थी। पुलिसिया दमन और गिरफ्तारियों के बाद कैंपस के आम छात्रों में ज़बरदस्त भय का माहौल था। रोज़-ब-रोज़ यह संख्या बढ़ी और आज चौथे दिन इतनी संख्या में विद्यार्थियों का इकट्ठा होना तानाशाह अप्पा राव के खौफ से कैंपस के आज़ाद होते जाने का सबूत है।”

ऐसी उम्मीद की जा रही है कि गिरफ्तार साथियों को कल बेल मिल जाएगी। कैंपस उनकी अगवानी के लिए उत्साह के साथ तैयार है। उम्मीद है कि कल से आंदोलन की गति और भी तेज़ होगी।

कल फिज़िक्स डिपार्टमेंट में एक महत्वपूर्ण सेमिनार शुरू होने जा रहा है। यह सेमिनार निर्बाध चले, ऐसा सभी चाहते हैं। लेकिन आंदोलनकारी छात्र चाहते हैं कि इस सेमिनार के उद्घाटन समारोह से वीसी अप्पाराव को दूर रखा जाए। इस आशय का संदेश लेकर एक शांतिपूर्ण मार्च कल सुबह फिज़िक्स डिपार्टमेंट तक के लिए निकाला जाएगा।

न्याय, आत्मसम्मान और एक अनचाहे तानाशाह वीसी से मुक्ति के लिए चल रहे आंदोलन को मजबूत बनाने के लिए छात्रों से औपचारिक कक्षाओं के बहिष्कार की भी अपील की गयी है। गौरतलब है कि पिछले चार दिनों से प्रशासन ने खुद कक्षाएं स्थगित रखी थी।

28 मार्च 2016

आज सुबह विश्वविद्यालय के मुख्यद्वार के बाहर तक विद्यार्थियों की एक बड़ी रैली निकाली गयी। बाहर लम्बे समय तक प्रतिरोध के नारे लगे। किसी बाहरी व्यक्ति के कैंपस आने पर प्रतिबंध लगा हुआ है। ऐसे में यह रैली प्रतीकात्मक रूप से यह भी बताती है कि, चाह कर भी हमें बाहर की दुनिया से अलग नहीं किया जा सकता है।

किसी आंदोलन के क्रम में नुक्कड़ नाटक और अन्य सांस्कृतिक प्रतिरोध भी अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। कल प्रोग्रेसिव थियेटर ग्रुप की ओर से ‘एकलव्य’ नामक जिस नुक्कड़ नाटक का प्रदर्शन रात के 11:30 बजे गर्ल्स हॉस्टल के बाहर हुआ था, आज सुबह उसी का प्रदर्शन प्रशासनिक भवन के बाहर किया गया। आज रात 09:30 बजे दक्षिणी परिसर में भी इस नाटक का प्रदर्शन होगा।

गिरफ्तार सभी साथियों को आज शाम बेल मिल गयी है। संभवतः उन्हें कल रिहा किया जाएगा। आंदोलन में एक नया उत्साह आ गया है। प्रतिरोध की संस्कृति ज़िन्दाबाद।

17 जनवरी 2017

एक वर्ष बीत गया लेकिन न्याय का प्रश्न ज्यों का त्यों बरकरार है!!

17 जनवरी 2018

दलित छात्र रोहित वेमुला की ‘सांस्थानिक हत्या’ के दो साल बीत गए। उत्पीड़न के सभी आरोपी मज़े में हैं। वे पहले से अधिक निरंकुश और पहले से अधिक ताक़तवर हो गए हैं। रोहित वेमुला की मां और उसके परिजन ही नहीं, हम सभी अब भी न्याय के लिए इंतज़ार कर रहे हैं। लेकिन क्या इस नृशंस सत्ता संस्कृति के रहते यह हासिल हो सकेगा?

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