प्यारी ब्रिंदा,
मैं जानता हूं कि जब तुम ये चिट्ठी पढ़ रही होगी तो इसे लिखे कई साल बीत गए होंगे, लेकिन मेरी बात के मायने उस वक्त भी उतने ही होंगे जितने अब हैं।
अभी तो तुम मेरे स्पर्श की भाषा ही समझती हो, पर जैसे-जैसे उस उम्र में आओगी जहां बहुत कुछ और समझना होगा, तब ये चिट्ठी तुम्हारे काम आएगी।
तब तुम वो बातें समझ पाओ, उसके लिए आज जो बातें हो रही है वो तुम्हें बता रहा हूं। लोग अभी से कह रहे हैं ज्यादा लाड मत करना, ज्य़ादा छूट मत देना, कहीं बिगड़ ना जाए। मेरे दोस्त तो अभी से तुम्हें अपनी बहू बनाने की सोचे बैठे हैं। तुमने ठीक से आंखें तक खोली नहीं और उनकी सोच देखो, कहां तक चली गई। किसी ने कहा, “अरे, बेटी पापा जितनी गोरी नहीं है।”
मुझे समझ नहीं आता कि चेहरे पर इतनी मासूमियत के बावजूद, उनका ध्यान तुम्हारे रंग पर चला कैसे गया? तभी एक दोस्त बोला, “मां-बाप दोनों आर्टिस्ट हैं, बेटी को भी आर्टिस्ट ही बनाएंगे।” मतलब पैदा होते ही, इतने सारे ‘टर्म्स एंड कंडीशन्स’ अप्लाई। और ये सिलसिला रुकने वाला नहीं है।
रुकना तुम भी नहीं, चलती रहना। दुनिया की इन बातों में फंसना नहीं। अपनी शर्तों पर रहना, अपने रास्ते खुद चुनना।
लोगों को ये बात हज़म नहीं होगी, वो बोलेंगें तुम्हें कि बिगड़ गई हो। तुम्हारे पापा को भी कहा था, ऐसे ही रोका था मुझे भी। पर मैंने भी तो वही किया जो मन में था।
तो इस नए साल पर ये वादा है तुमसे कि मेरा हाथ थामकर तुम वो हर लक्ष्मण रेखा पार करोगी जिसमें दुनिया तुम्हें कैद करना चाहेगी। और अगर इसे ही बिगड़ना कहते हैं तो बनना तुम बिगड़े हुए पापा की बिगड़ी हुई बेटी।
तुम्हारा पापा